Monday, September 1, 2008

तेरी याद के आंसू रह गये


तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये,
फूलों के मंका बनाये थे,
जो रेत के घरौंदों में ढह गये।
तू मुसाफिर नहीं था,
मेरी मन्जिल का,
जो इस तरहा से चला गया,
मेरी हर हंसी का तू ख्वाब था,
जो बिखर-बिखर के रह गये।
अभी दूर तक ही न गया था तू,
तेरे पांव रुक कर ठहर गये,
मेरे ख्वाब ने एक आस की,
होंठ मुस्कुराते रह गये।

तू रुका था एक पल के लिए,
फिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

23 comments:

  1. अच्छी रचना, लिखते रहें। तस्वीर भी चुनके लगाई है आंख से टपकता आंसू।

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  2. आंसुओं को भी सुन्दरता से व्यक्त करना सिर्फ़ एक कवि-ह्रदय के बस की ही बात है. बधाई!

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  3. तू रुका था एक पल के लिए,
    फिर धुंध में कंही खो गया,
    मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
    मुस्कुरा कर बह गये।
    तू न रहा मेरे संग मगर,
    तेरी याद के आंसू रह गये।


    बहुत नही अति सुंदर कहूंगा ! धन्यवाद !
    और ये फोटो कही भीम ताल की तो नही है ?
    मुझे ऐसा ही लग रहा है पर उसमे ये निर्माण
    कब हवा ? खैर ... बहुत सुंदर है , इसके लिए
    एक धन्यवाद अलग से दे रहा हूँ ! :)

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  4. ख़याल अच्छे हैं.

    "मेरे आंसुओं पे न मुस्कुरा, कुछ ख्वाब थे जो मचल गए ...."

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  5. achha shabd aur chitra sanyojan.badhai achhi post ki

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  6. आपने बहुत गहरे ज़ज़्बातों से भरी यह रचना लिखी। बहुत ही पसंद आई। आपके लिखने के टाईम से आपके लिखने के जुनून का पता चलता है। आज निगाह गई तो पता चला।

    तू रुका था एक पल के लिए,
    फिर धुंध में कंही खो गया,
    मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
    मुस्कुरा कर बह गये।
    तू न रहा मेरे संग मगर,
    तेरी याद के आंसू रह गये।

    आंसू मुस्करा कर बह गये। क्या भाव आया है कमाल।

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  7. मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
    मुस्कुरा कर बह गये।


    khoob.....

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  8. तू रुका था एक पल के लिए,
    फिर धुंध में कंही खो गया,
    मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
    मुस्कुरा कर बह गये।
    lazawaab likha hai...
    jari rahe

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  9. ताऊ जी राम राम, नहीं ये भीम ताल नहीं जयपुर का जल महल है। आपको मेरी कविता और चित्र पसंद आई आपका धन्यवाद

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  10. प्रीती जी मुझे भी ये जलमहल ही लगा था ! पर मैंने इसमे पानी नही देखा काफी समय से ! इसलिए भीम ताल का धोखा हो गया !
    और ताई ने जोर देकर जलमहल बताया था ! क्योकी ताई जयपुर की हैं ! अब मैं दो लट्ठ खाने की शर्त फ़िर हार गया ! आप झूँठ मूंठ ही भीमताल
    लिख देती ? पर शायद आप भी ताई से मिली हुई हो ? ठीक है ताऊ को लट्ठ खिलाये जाओ ! :)

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  11. जितनी सुंदर रचना उतना ही सुंदर चित्र...मुख्या रूप से ब्लॉग पर आपने जयपुर के जल महल की फोटो लगाई है लेकिन अब तो उसमें बहुत परिवर्तन हो गया है...
    नीरज

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  12. तू रुका था एक पल के लिए,
    फिर धुंध में कंही खो गया,
    मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
    मुस्कुरा कर बह गये।
    तू न रहा मेरे संग मगर,
    तेरी याद के आंसू रह गये।
    सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

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  13. तू रुका था एक पल के लिए,
    फिर धुंध में कंही खो गया,
    मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
    मुस्कुरा कर बह गये।
    तू न रहा मेरे संग मगर,
    तेरी याद के आंसू रह गये।
    bahut sunder bhav hai...man ko chu gae

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  14. एक नाजुक सपने की तरह, जि‍सका टूटना तय था। एक सुंदर ख्‍वाब, जि‍से देखा जाना बाकी है....

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  15. ek umda koshish...nazm behtar hain...aur behtarin aap likh sakte hian...

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  16. Bahut Achchhi kavita hai, Ashesh Badhai

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