इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना,
मैं तो, सिर्फ काग़ज हूं,
मुझे आंसुओं के सागर में,
मत डुबाना।
मुझपे जो लिखी थी,
कभी कहानी तुम ने,
तुमसे गुज़ारिश है,
उसे फिर न दोहराना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।
खा़मोश पलकें थी,
दर्द की तन्हाईयों में,
कोई ख्वाब टूटा था शायद,
इन आईनों में,
ख्वाब में आके जरा तुम,
तन्हाईयों को सहलाना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।
मुश्किल हो हंस पाना,
मैं तो, सिर्फ काग़ज हूं,
मुझे आंसुओं के सागर में,
मत डुबाना।
मुझपे जो लिखी थी,
कभी कहानी तुम ने,
तुमसे गुज़ारिश है,
उसे फिर न दोहराना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।
खा़मोश पलकें थी,
दर्द की तन्हाईयों में,
कोई ख्वाब टूटा था शायद,
इन आईनों में,
ख्वाब में आके जरा तुम,
तन्हाईयों को सहलाना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।
..............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(फोटो-सभार गुगल )
Bahut accha lika hai.
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यंजना-
ReplyDeleteखा़मोश पलकें थी,
दर्द की तन्हाईयों में,
कोई ख्वाब टूटा था शायद,
इन आईनों में,
ख्वाब में आके जरा तुम,
ReplyDeleteतन्हाईयों को सहलाना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
bhaut ghari rachna hai aapki preeti
ReplyDeleteise padh kar dil bheeg hi gaya
kaagaz ka rona......dil ko chhu gai yah vedna
ReplyDeleteइतना मत रुलाओ कि,
ReplyDeleteमुश्किल हो हंस पाना।
बहुत खुब बहुत सुन्दर रचना
धन्यवाद
abhivyakti bahut prakhar hai.
ReplyDeleteachha likha aapne,
ReplyDeleteख्वाब में आके जरा तुम,
ReplyDeleteतन्हाईयों को सहलाना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।
गहरे भाव व्यक्त किए हैं आपने !
शुभकामनाएं !
पंक्तियां तो खू्बसूरत है ही लेकिन ये चेहरा तो ………
ReplyDeleteमुश्किल है कह पाना …
इतना मत रुलाओ कि,
ReplyDeleteमुश्किल हो हंस पाना।
--बहुत खूब कहा!! वाह!
मनीष जी ,अपनी बात पूरी करते तो जवाब देना आसान हो जाता। आपको क्या मुश्किल लगा? चेहरा पढ़ना या....कुछ और बात है।
ReplyDeleteमुझपे जो लिखी थी,
ReplyDeleteकभी कहानी तुम ने,
तुमसे गुज़ारिश है,
उसे फिर न दोहराना,
bahut khoob.....
मैं तो, सिर्फ काग़ज हूं,
ReplyDeleteमुझे आंसुओं के सागर में,
मत डुबाना।
par kitne hi kagaz sanivar ke dhamako ke bad doob gaye...
उम्दा उच्च कोटि की कविता है।
ReplyDeleteप्रीति जी क्या आप मीडिया में कार्यरत हैं?
bahut sundar abhivyakti hai.....
ReplyDeleteइतना मत रुलाओ कि,
ReplyDeleteमुश्किल हो हंस पाना।
Bahut sundar rachna ke liye badhai.
sundar rachna....
ReplyDeletepalkein jo bheegi..
ReplyDeleteaansuyon ka sailaab ruk na saka
bhavna ko shabd mile
man ko thhaharav mila..
kore kagaz ki kismat badli
usko koi rang mila..
my first time on your blog..must say amazing writing...will be regular on your blog now!!
wah!wah!wah!wah!wah!wah!wah!wah!!!!
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteटूट गये स्वप्न आंखों के
ReplyDeleteइस बात से आंख क्यों नम है
प्यार मे खुशियों के बदले मिला गम
दिल को इस बात से क्यों गम है
रंज है सिर्फ़ यादें देकर चले गये हो
लेकिन तुम थे मेरे कभी
इस बात का अहसास क्या कम है
मुझे इन्तज़ार है फिर भी,
ReplyDeleteकि तू आएगा।
khub likha karo isi tarah.....
achha likhti ho....
fursat me
www.kkavita.blogspot.com
pe apni rai jarur dena....
इतना मत रुलाओ कि,
ReplyDeleteमुश्किल हो हंस पाना,
मैं तो, सिर्फ काग़ज हूं,
मुझे आंसुओं के सागर में,
मत डुबाना।
kya baat hai. ati uttam.
बहुत सुन्दर लिखा है आपने...मै भी एक शेर पेस करना चाहुगा ...
ReplyDeleteअगर आंसू न होते आँखों मे तो आखेँ इतनी खुबशुरत न होती ,
अगर दर्द न होता दिल मे तो खुशी की किमत पता न होती,
अगर न वेबफाई न की होती वक्त ने ,तो वक्त की कभी चाहत न होती
अगर मांगने से पुरी हो जाती मुरादें तो उस खुदा की कभी ज़रूरत ना होती .
बहुत अच्छी रचना.अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteआलोक सिंह "साहिल"
खा़मोश पलकें थी,
ReplyDeleteदर्द की तन्हाईयों में,
कोई ख्वाब टूटा था शायद,
इन आईनों में,
ख्वाब में आके जरा तुम,
तन्हाईयों को सहलाना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।
ur composition is good
keep on thinking