अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे,
खुद लहू हो जाएंगे,
जो अब, हम इसे सवारें,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
बिखरे हुए ख्वाबों की,
एक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
दिल जानता था वो लम्हा,
मेरे आस-पास ही कहीं था,
वो, न दूर होगा मुझसे,
इस बात का यंकी था,
पर फिर भी उसके एहसास को हमने,
अन्धेरों में गुजारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
............
अब ये रास्ते हमारे,
खुद लहू हो जाएंगे,
जो अब, हम इसे सवारें,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
बिखरे हुए ख्वाबों की,
एक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
दिल जानता था वो लम्हा,
मेरे आस-पास ही कहीं था,
वो, न दूर होगा मुझसे,
इस बात का यंकी था,
पर फिर भी उसके एहसास को हमने,
अन्धेरों में गुजारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र-सभार गुगल)
प्रीति जी आप की जितनी भी रचनाएं पढी है सभी लाजवाब है। शब्द चयन बहुत ही प्रभावित करता है
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है। खास तौर पर-
ReplyDeleteदिल जानता था वो लम्हा,
मेरे आस-पास ही कहीं था,
वो, न दूर होगा मुझसे,
इस बात का यंकी था,
पर फिर भी उसके एहसास को हमने,
अन्धेरों में गुजारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
बिखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
प्रीती जी बहुत ही अच्छा लिखा है अति सुंदर
खूबसूरत...
ReplyDeleteअजनबी ही रहने दो..
बहुत बढ़िया...
जारी रहे..
िखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
बहुत सुंदर लिखा है
बिखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
बहुत खूब..
बिखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
बहुत सुंदर लिखा है
बिखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
बहुत सुन्दर। अच्छा लगा पढकर।
बिखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।............
bahot hi sundar bhav dala hai ,bahot hi sundar rachana ka liye aapko dhero badhai.........
regards
पर फिर भी उसके एहसास को हमने,
ReplyDeleteअन्धेरों में गुजारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई। वैसे बशीर बद्र साहब भी कहते हैं कि- "मैं अपने जेब में अपना पता नहीं रखता"
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बिखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
बहुत सुंदर लिखा ! शुभकामनाएं !
Har bar lajawab hoti hai aapki rachna. bahut khoob
ReplyDeleteअजनबी ही रहने दो,
ReplyDeleteअब ये रास्ते हमारे।.......
bahut hi aantarik anubhuti ko shabdon me dhaala hai,
sundar
क्या बात हे बहुत ही खुब सुरत कविता हे...
ReplyDeleteबिखरे हुए ख्वाबों की,
एक किताब लिख रही थी,
धन्यवाद
बिखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
बहुत अच्छा लिखा है आप ने ..बधाई
एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteवीनस केसरी
सुन्दर रचना,
ReplyDeleteअच्छा लगा पढकर।
ReplyDeleteनहीं रहने देंगे हम
ReplyDeleteअजनबी
ढूंढ लेंगे पता आपका
कहीं भी छिप जाइएगा
आप
बाज की सी नजर
रखते हैं हम।
प्रीती जी बहुत खूब बात दिल तक उतर गई।
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteBaakamaal ! vah vah !!
ReplyDeleteज़मी से लेकर उन रास्तों की,
ReplyDeleteहर बात लिख रही थी
good work. keep it up.
hey baalike
ReplyDeletekabhi doosro par jakar bhi comment karo.
बिखरे हुए ख्वाबों की,
ReplyDeleteएक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
सुन्दर अभिव्यक्ति है तारिका जी ..
शुभकामानायें.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमोहन वशिष्ठ नाकि मनोज
ReplyDeleteप्रीती बहुत ही सुंदर भाव और शब्द ।
ReplyDeleteआप सभी का आभार।
ReplyDeleteder se aane ke liye kshamaa ki kya baat beta,han amma niyam se nahi aa pati, tumhaari kalam ,tumhare vichaaron ki sashaktata ko mera aashirwaad,bahut bhaw bheeni rachnayen hain
ReplyDeletepreetiji,
ReplyDeletebahut sundar shabdon mein dil key jazbaton ko bayan kiya hai. ye panktiyan to dil per gahrai sey dastak deti hain.
दिल जानता था वो लम्हा,
मेरे आस-पास ही कहीं था,
वो, न दूर होगा मुझसे,
इस बात का यंकी था,
पर फिर भी उसके एहसास को हमने,
अन्धेरों में गुजारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
achchi kavita key liye badhai. kabhi mere blog per bhi aayein.
http://www.ashokvichar.blogspot.com
achchi rachna hai
ReplyDeleteअजनबी ही रहने दो,
ReplyDeleteअब ये रास्ते हमारे,
खुद लहू हो जाएंगे,
जो अब, हम इसे सवारें,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
bahut hi umda bhavapoorn .