आखों में पाने की प्यास लिए
लिए ढूंढ रहा भाई को संग
इधर-उधर बदहवास लिए
अभी हुआ नही मैं दस बर्ष का भी
पूछ रहा हर एक से वो........
क्या किसी ने देखा है, मां-बाबा को
और होंठ सूख रहे हैं...
प्रकृति का प्रकोप ये देखो
मां-बाप से नन्हें बिछङ रहें हैं।
................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका "
"यह कविता सच्ची घटना पर है। बिहार में स्टेशन पर एक बच्चा, जिसकी मां पानी में बह गई और पिता का कुछ पता नही चल रहा है। वो अपने छोटे भाई के साथ स्टेशन पर बने राहत शिविर में रह रहा है। यहां पर खाने के लिए जो खिचङी मिल रही है उससे अपना और अपने छोटे भाई का पेट भर रहा। वहीं स्टेशन से मिली जानकारी से ये पुष्टि हो गई है कि उसकी मां का देहांत हो चुका है, लेकिन पिता के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला है। वो स्टेशन पर सभी से यही पूछता रहता है कि उसके मां-बाबा कहां हैं? किसी ने उन्हें देखा है क्या? "
चित्र के लिए नितीश राज जी का आभार ये मेने उन्हीं के ब्लॉग से लिया है।
क्या किसी ने देखा है, मां-बाबा को
ReplyDeleteआंखों से बहती जल की धारा है
और होंठ सूख रहे हैं...
प्रकृति का प्रकोप ये देखो
मां-बाप से नन्हें बिछङ रहें हैं।
badh ne jo tabahi failayee hai..
usme wakai aisa kar diya hai
bahut hi mamrmik rachna hai...
jari rahe...
bahut sundar...vyatha ko sahi ukera hai aapne....
ReplyDeletebahut badhia. badhai
ReplyDeleteexcellent.......a very amazing poem teach us a great lesson...we will have to do something for flood affected area.......
ReplyDeleteनिशब्द हूँ प्रीती ओंर हालात से स्तब्ध भी....
ReplyDeleteरचना के साथ साथ दर्द बयान करता चित्र सचमुच दिल को स्पंदित कर गया. कोसी का कहर सोच कर मन डूबने लगता है क्या हाल होगा बिहार में बाढ़ से पीडितों का .......ईश्वर भला करे सबका न किसी का भाई जुदा हो न माँ-बाप
ReplyDeleteyatharth ka bhwprawan warnan hai aur chitr bhee wahee bol raha hai.
ReplyDeleteबिछुड़ने का क्या दर्द होता है, बयॉं कर पाना मुमकिन नहीं। भावुक रचना।
ReplyDeleteबहुत ही दर्द हे आप की इस कविता मे, क्या गुजर रही होगी इन लोगो पर, केसे यह सब सहन करते होगे.....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Maa ki mamta aur pita ka pyar jab bachpan men bichud jaye to nanhen bachpan ke manaspatal par kya kuchh ubharta hoga use aapne bahut achhe se prastut kiya hai preetiji. excellent presentation.
ReplyDeleteBahut hi marmik rachna hai.
ReplyDeleteसुन्दर, पर भावुक गम्भीर एवं चिंतनीय
ReplyDeleteआभार
बहुत अच्छा लीखा है और ईसे सोच कर लीखने मे बहुत टाईम लगा होगा। क्यो की मैने भी लीख कर देखा है पर मूझसे कवीता बनता ही नही है।
ReplyDeleteबहुत दूख है और मै ईनके लीये कूछ कर सक्ता तो जरूर करता।
बिहार की बाढ़ के द्र्श्य टी वी पर देख हमारा भी दिल दहल गया है। भगवान इन बच्चो को अपने मां बाप से जल्दी मिलवाये
ReplyDeleteमेरे ब्लोग पर आने के लिए धन्यवाद
मर्मस्पर्शी शब्द-चित्रण !
ReplyDeleteअच्छा लेखन है, जारी रखें, ब्लाग भी सुन्दर बनाया है, शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteaapke blog header me tasveer kahaan ki hai?
ReplyDeleteतस्वीर आपने मेरे ब्लॉग से ली इस के लिए धन्यवाद। सच ये एक त्रासदी है और क्या कहूं। सिर्फ उस बच्चे के लिए संवेदना ही है कि उनका बाबा उन्हें मिल जाए।
ReplyDeleteSo sad!
ReplyDeleteक्या किसी ने देखा है, मां-बाबा को
ReplyDeleteभयानक त्रासदी है ! सभी गमगीन हैं !
आपके कवि मन ने इसको शिद्दत से
महसूस किया है और एक धारा बह निकली है !
इस त्रासदी पर आपके शब्द बहुत कुछ
ReplyDeleteकह गए ! आप जो कहना चाहती थी
वो कह पाई ! तिवारी साहब को भी
अत्यन्त गहरा सदमा पहुंचा है !
प्रकृति की मार सहने को विवश मानवता !
ReplyDeleteगहन शोक की घडी है ! आप के शब्दों
ने गहराई तक झकझोरा है !
subah-subah rula diya aapne.
ReplyDeleteप्रीती जी,
ReplyDeleteदर्द और संवेदना से भरी आपकी कविता 'क्या तुमने देखा है मेरे माँ बाबा को' सुप्तात्मा को झकझोरने वाली है.
इसके लिए आपका तहे दिल से साधुवाद!
उदय केसरी
www.sidhibat.blogspot.com
आर सी मिश्रा जी, आप मेरे ब्लॉग पर आए, आप का आभार। मेरे ब्लॉग हेडर पर तस्वीर जल महल, जयपुर की है। जिसके बारे में मैंने पिछली पोस्ट में भी एक टिप्पणी में जवाब दिया था।
ReplyDeletePreeti
ReplyDeletetasveer to dehlaati hai hi, kavita is dard ko aur gehraa kar deti hai.
behad maarmik paristhityaan hain wahan.
apne such mein baut acha lika h. jivan ke ek sangarsh ko dikhaya.padh kar man paseeg gya
ReplyDeleteमेरे पास शब्द नही आपकी रचना की तारीफ के लिए। मै ऐसा पढ, देख कर भावुक हो जाता हूँ।
ReplyDeleteक्या किसी ने देखा है, मां-बाबा को
आंखों से बहती जल की धारा है
और होंठ सूख रहे हैं...
प्रकृति का प्रकोप ये देखो
मां-बाप से नन्हें बिछङ रहें हैं।
मन के तारों को झकझोर देने वाली कविता है। इस सार्थक कविता के लिए बधाई।
ReplyDeleteऔर हाँ, आपने सागर की फोटो लगाकर बीते दिनों की याद दिला दी। मैंने वर्ष 1998 में डा0 हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से बी0सी0जे0 किया था।
Preeti ji bhut hi marmik rachana kar di aapne. ati uttam.
ReplyDeletebahot hi dard hai rachana me ,logon ka logon se bichadane ka gham muje pata hai...........
ReplyDeleteregards
Arsh
So Sad :-(
ReplyDeletekahane ke liye shabd nahi rahe.
ReplyDeletehanuman nahi jo man kee baat dikh saku.kam like ko adhik samjhana.
--naradmunig
खोयी हँसी खोयी खुशी सब खो गयीं बातें वहां
ReplyDeleteबह गए हैं घर बहुत अब बह रहीं आँखें वहां
dukhad hain....
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावों की सुंदर शब्द संयोजना द्वारा प्रस्तुति बधाई . मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
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