Monday, September 28, 2009

कुछ कहते हुए.....ख़्वाब





कुछ कहते हुए....ख़्वाब, 
कुछ सुनते हुए....ख़्वाब, 
चलो इन ख़्वाबों को, 
आज अपना बनालूं,



कहदूं इन्हें दिल के,
 वो सारे जज़्बात, 
और आंखों में अपनी, 
मैं इनको सजा लूं,



 जब खोल के देखूं, 
मूंदी हुई पलकें, 
और सामने बैठे हो, 
कुछ कीमती सपनें,


कह दूं उन्हें भी, 
हैं ये भी कुछ अपने, 
लो संग इन्हें भी, 
दर्पण में समा लो,



 कुछ कहते हुए......ख़्वाब, 
कुछ सुनते हुए......ख़्वाब,
 चलो इन ख्वाबों को, 
आज अपना बना लूं।

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प्रीती बङथ्वाल तारिका 
(चित्र- साभार गूगल)


Monday, September 21, 2009

मां पार लगा दे नैया....




शुभ नवरात्रि

मां तेरे रंग में रंग जांएगे,
मां तेरे ही हम गुण गाएंगे,
हम बच्चें तेरे हैं, तू है मैया,
मां पार लगा दे नैया, मां पार लगा दे नैया।




तू दर आये की सुनती,
तू हर खुशियों को बुनती,
मेरी  इक आस है मैया,
मेरे घर भी आये मैया,
मां पार लगा दे नैया, मां पार लगा दे नैया।





इस जगत में भटक रहें हैं,
किस बात को तरस रहें हैं,
ये समझ में आये कहीं ना,
तू अब राह दिखादे मैया,
मां पार लगा दे नैया, मां पार लगा दे नैया।




भक्तों की आस तुम्हीं हो,
भक्तों की आवाज़ तुम्हीं हो,
भगती को ऐसे, ठुकराओ नहीं मां,
हमें गले लगा ले मैया,
मां पार लगा दे नैया, मां पार लगा दे नैया।

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प्रीती बङथ्वाल तारिका
(चित्र साभार गूगल)

Tuesday, September 8, 2009

“शिवा”


हमारे घर में एक नये मेहमान का आगमन हुआ। वो अभी सिर्फ एक महीना नौ दिन का ही है। बहुत ही प्यारा है। जब से घर में आया है तब से ही सबका चहेता बना हुआ है। सभी उसके साथ खेलते है, उसकी हर हरकत पर खुश होते हैं। वैसे वो अधिकतर मेरे पास ही रहता है, मेरी आवाज को पहचानता है। अब अपना नाम भी पहचानने लगा है। उसका नाम शिवा है।


पहली बार जब उसे देखा था तो वो केवल तेरह दिन का था। बहुत ही छोटा, आंखे भी नहीं खुली थी शिवा की, और चलना, तो दूर की बात। उसे जब अपने हाथों में लिया तो उस पर प्यार छलक उठा, बस यही वाला पसन्द है ये सोच कर मैने इनकी ओर देखा। ये मुझे देखते ही समझ गये कि मुझे ये पसन्द आ गया है। उसने उसी दिन मेरे हाथों में पहली बार आंखे खोली थी। मेरा मन उस पर आ चुका था मैने उसे लेने का फैसला कर लिया।


उसे हम अपने साथ नहीं ला सकते थे क्योंकि वो अभी बहुत छोटा था। उसे छोङ कर आने का मन नहीं कर रहा था, लेकिन जैसे-तैसे मन को समझा कर हम घर लौट आये। लेकिन घर आने के बाद भी मेरी जुबान पर उसकी ही बातें चल रही थी। वो कितना प्यारा था, उसने मेरी हाथों पर ही पहली बार अपनी आंखे खोली थी। हम उसका नाम क्या रखेगें। मैं तो जैसे उस नन्हें के बारे में सोच-सोच कर ही दिन काट देती थी। ये सारी बातें मेरे पतिदेव को बार-बार सुनने को मिल रही थी।


मेरी उत्सुकता को देखते हुए पतिदेव ने जल्द ही उसे लाने का फैसला कर लिया। जब वो बीस दिन का हो गया तो हम उसे लेने के लिए गये उसकी हलचलों में थोङा फर्क था वो गिर-गिर के चलने लगा था। अभी शुरुवात थी चलने की और मां के दूध के साथ बोतल से भी दूध पीने लगा था। इसका मतलब था कि अब हम उसे अपने साथ ला सकते थे और हम उसे अपने साथ ले आए। उसका नाम मैंने शिवा रखा। घर में सभी को (पतिदेव और बेटे को) ये नाम पसन्द आया।

जिस दिन हमने शिवा को लाने का फैसला किया, सुबह बेटा स्कूल जा चुका था। बेटे को सरप्राइज गिफ्ट के रूप में हम शिवा देना चाहते थे। अभी तक शिवा का नाम तो बेटा जानता था, पर ये शिवा है क्या, इस बारे में उसे कुछ नहीं मालूम था। यहां बेटा स्कूल गया वहां हम भी शिवा को लेने निकल लिए। छोटा होने की वजह से उसके लिए व्हीट सैरेलैक, फोरेक्स मिल्क पाउडर, दवाइयां और सीरींज सब लेकर आए थे।


बेटू जी स्कूल से आए तो हमने शिवा को ऐसे ही जमीन पर दरी के ऊपर लिटा दिया। बेटू अपनी मस्ती में आए और फिर बिना ध्यान दिए ही घर में अपने खेलकूद में जुट गए। हमें बड़ी निराशा हो रही थी कि बेटू शिवा को देख ही नहीं पा रहा था। फिर मैंने उसे बहाने से उस तरफ भेजा जिधर शिवा सो रहा था। अचानक वो वहां जाकर रुका, अरे मम्मी, ये क्या है? मम्मी ये रीयल पपि है! अरे मम्मी ये तो हिलता है!’ ऐसे ही विस्मयसूचक संबोधनों को इस्तेमाल करते हुए वो वहीं पर बैठ गया और उसके साथ खेलने लगा। आज भी दोनों को खेलता हुआ देखती हूं तो अच्छा लगता है।

शिवा एक काले रंग का लेब्राडॉर पपि है। शिवा के बारे में बाकी बातें अगली बार।

खैल रहें है उसके संग,

बन गया वो अपना,

छोटा सा आया है घर में,

एक चंचल सपना।



प्रीती बङथ्वाल तारिका

Friday, September 4, 2009

जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं..........

आज नितीश राज जी (मेरे सपने मेरे अपने) का जन्मदिन है। उन्हें इस अवसर पर जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई । सोचा आज के इस शुभ दिन में अपनी रचना उन्हें तोहफे के रूप में दूं आशा है पसन्द आएगी।









मीठे पल, मीठी यादों का,
साथ हो हरदम, मीठे वादों का,
पलभर को भी गर आए आंसू,
स्वाद हो उनमें, मीठी सांसों का।



ग़म घेरे कभी तुम्हें यूं,
कि अन्धकार आंखों में छाए,
खुशियों की थाली में तुमको,
खिले फूलों की, खुशबू आए।



तुम्हें हो हासिल, सागर की खुशियां,
मिले वो मोती, हो जिनमें दुनियां,
देखे ख्वाब सच्चे हो जाएं,
कुछ खुशियों में मुस्कुराए,
और कुछ खिलखिलाए।



हो तुम्हें मुबारक, साल का ये दिन,
रहे अपनों का साथ हमेशा,
जब भी मुङ कर पीछे देखो,
पाओ अपनों को पास हमेशा।

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प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र- साभार गूगल)