Monday, August 31, 2009

देखो चांदनी रात में..........





खोये-खोये से चांद पर,
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
तब फिसल कर गाल पर,
एक तब्बसुम खिलने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।



कुछ मंद-मंद मुस्कान सी,
आंखें चमक बिखेरती,
हाथों की लकीरों पे हो जैसे,
नाम अम्बर फेरती,
यूं धरा का रंग जैसे,
अम्बर के रंग रंगने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।



जब प्यार का अमृत बरस के,
गिरता धरा की गोद पर,
और हवाएं छू के बदन को,
भीनी-सी खुशबू बिखेरती,
तब कहीं, रंगीन कलियों का बिछौना,
इस धरा पर बिछने लगे,
देखो चांदनी रात में, “तारिका”
अम्बर धरा, फिर मिलने लगे।
...............
प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र-साभार गूगल)

Saturday, August 29, 2009

कुछ प्यार की बातें होती............





सबसे पहले तो बहुत दिनों बाद आने के लिए आप सभी से माफी चाहूंगी। अब क्या करें कम्प्यूटर ही चलने को राजी नहीं था। जैसे ही ऑन करते शुरू होने से पहले ही बन्द हो जाता। बहुत हाथ जोङने के बाद अब इसका मूड ठीक हुआ है तो इससे पहले कि ये दुबारा बिदके अपनी पोस्ट डाल रही हूं ।




कुछ प्यार की बातें होती,
तो अच्छा था,
कुछ टकरार की बातें होती,
तो अच्छा था,
मन मचल-मचलता होता,
तो अच्छा था,
कुछ दिल भी थिरकता होता,
तो अच्छा था,
कहना तुम भी चाहते,
और हम भी थे,
बस बात शुरू तो होती,
तो अच्छा था,
यूं बीत गया चुपके से,
ये सारा दिन,
ये दिन ना बीता होता,
तो अच्छा था।
कुछ प्यार की बातें होती,
तो अच्छा था।
..............
प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र- साभार गूगल)

Friday, August 7, 2009

कहीं खोया हुआ अपना, वो सामान मिल जाए............






कहीं खामोश पन्नों पे,
बीते लम्हों की कहानी,
बदलते वक्त की हसरत,
बदलती जिन्दगानी।



मुसाफिर भी बने इसमें,
हमसफर भी बनने आये,
मुकद्दर में ही, न था जो,
वो, दर से ही लौट आये।



पत्थर के मकां भी थे,
मिट्टी की मजारें भी,
दरारें उसमें भी उतनी ही,
दरारें इसमें थी जितनी।



पिघलती रूह में अक्सर,
अक्श अपना दिखाई दें,
मचलते दिल की वो हसरत,
दबी चीखें सुनाई दें।



फिर से, यूं ही चलेंगे हम,
लेके अपने, ख्वाबों का पिटारा,
शायद यूं ही “तारिका”
कोई खोया हुआ अपना,
कहीं सामान मिल जाए।
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प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र - साभार गूगल)