खोये-खोये से चांद पर,
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
तब फिसल कर गाल पर,
एक तब्बसुम खिलने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।
कुछ मंद-मंद मुस्कान सी,
आंखें चमक बिखेरती,
हाथों की लकीरों पे हो जैसे,
नाम अम्बर फेरती,
यूं धरा का रंग जैसे,
अम्बर के रंग रंगने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।
जब प्यार का अमृत बरस के,
गिरता धरा की गोद पर,
और हवाएं छू के बदन को,
भीनी-सी खुशबू बिखेरती,
तब कहीं, रंगीन कलियों का बिछौना,
इस धरा पर बिछने लगे,
देखो चांदनी रात में, “तारिका”
अम्बर धरा, फिर मिलने लगे।
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
तब फिसल कर गाल पर,
एक तब्बसुम खिलने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।
कुछ मंद-मंद मुस्कान सी,
आंखें चमक बिखेरती,
हाथों की लकीरों पे हो जैसे,
नाम अम्बर फेरती,
यूं धरा का रंग जैसे,
अम्बर के रंग रंगने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।
जब प्यार का अमृत बरस के,
गिरता धरा की गोद पर,
और हवाएं छू के बदन को,
भीनी-सी खुशबू बिखेरती,
तब कहीं, रंगीन कलियों का बिछौना,
इस धरा पर बिछने लगे,
देखो चांदनी रात में, “तारिका”
अम्बर धरा, फिर मिलने लगे।
...............
प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र-साभार गूगल)
देखो चांदनी रात में, “तारिका”
ReplyDeleteअम्बर धरा, फिर मिलने लगे।
-बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति, बधाई!!!
गजब-गजब की कल्पनायें हैं। वाह बधाई!
ReplyDeleteअम्बर धरा, फिर मिलने लगे।
ReplyDeleteखूबसूरत कल्पना तारिका जी। वाह - बधाई।
सुन्दर प्रणय गीत !
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति को लिए,
ReplyDeleteबधाई!!!
behad khubsurat nazm,alfaaz kum hai tariff ke liye.waah
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..एक बेहतरीन रचना है यह आपकी .शुक्रिया
ReplyDeleteरचनात्मक सुकून देती है आपकी रचना
ReplyDelete--->
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
खोये-खोये से चांद पर,
ReplyDeleteजब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
तब फिसल कर गाल पर,
एक तब्बसुम खिलने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।
bahut khoob aur sunder
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteरचना बेहतरीन है, बहुत शुभकामनाएं!!!!
एक बेहतरीन रचना है यह....बहुत पसंद आई
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना, बेमिसाल कल्पनाओं के संग.
ReplyDeleteबधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
क्या खूब संवारा है आपने अपने मखमली ख्याल को शब्दों के खुबसूरत वरन से .... आपकी कवितायेँ भी बेहद नाजुकी लिए होती है ... ढेरो बधाई
ReplyDeleteअर्श
इस अद्भुत रचना पर आपको ढेरों बधईयाँ...अप्रतिम रचना है...और जो चित्र आपने लगाया है...वाह...शब्द हीन कर गया...लाजवाब
ReplyDeleteनीरज
खोये-खोये से चांद पर,
ReplyDeleteजब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
तब फिसल कर गाल पर,
एक तब्बसुम खिलने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलनेलगे।
अति सुन्दर बधाई
खूबसूरत कल्पना... सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह आप की कविता तो सच मै चांदनी रात सी सुंदर है.्निखरी निखरी
ReplyDeleteधन्यवाद
जैसा सुंदर चित्र वैसी ही सुंदर रचना। बहुत खूब।
ReplyDeleteजब प्यार का अमृत बरस के,
ReplyDeleteगिरता धरा की गोद पर,
और हवाएं छू के बदन को,
भीनी-सी खुशबू बिखेरती,
तब कहीं, रंगीन कलियों का बिछौना,
इस धरा पर बिछने लगे,
its a beautiful thought....
touch my heart...
meet
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, आज 26 अक्तूबर 2015 को में शामिल किया गया है।
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
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