Monday, August 31, 2009

देखो चांदनी रात में..........





खोये-खोये से चांद पर,
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
तब फिसल कर गाल पर,
एक तब्बसुम खिलने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।



कुछ मंद-मंद मुस्कान सी,
आंखें चमक बिखेरती,
हाथों की लकीरों पे हो जैसे,
नाम अम्बर फेरती,
यूं धरा का रंग जैसे,
अम्बर के रंग रंगने लगे,
देखो चांदनी रात में,
अम्बर धरा मिलने लगे।



जब प्यार का अमृत बरस के,
गिरता धरा की गोद पर,
और हवाएं छू के बदन को,
भीनी-सी खुशबू बिखेरती,
तब कहीं, रंगीन कलियों का बिछौना,
इस धरा पर बिछने लगे,
देखो चांदनी रात में, “तारिका”
अम्बर धरा, फिर मिलने लगे।
...............
प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र-साभार गूगल)

23 comments:

  1. देखो चांदनी रात में, “तारिका”
    अम्बर धरा, फिर मिलने लगे।

    -बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति, बधाई!!!

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  2. गजब-गजब की कल्पनायें हैं। वाह बधाई!

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  3. अम्बर धरा, फिर मिलने लगे।

    खूबसूरत कल्पना तारिका जी। वाह - बधाई।

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  4. सुन्दर प्रणय गीत !

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  5. खूबसूरत अभिव्यक्ति को लिए,
    बधाई!!!

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  6. behad khubsurat nazm,alfaaz kum hai tariff ke liye.waah

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  7. लाजवाब अभिव्यक्ति. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..एक बेहतरीन रचना है यह आपकी .शुक्रिया

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  9. रचनात्मक सुकून देती है आपकी रचना

    --->
    गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम

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  10. खोये-खोये से चांद पर,
    जब बारिश की बूंदे बैठती,
    और बादल की परत,
    घूंघट में हो, उसे घेरती,
    तब फिसल कर गाल पर,
    एक तब्बसुम खिलने लगे,
    देखो चांदनी रात में,
    अम्बर धरा मिलने लगे।



    bahut khoob aur sunder

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  11. सुन्दर अभिव्यक्ति
    रचना बेहतरीन है, बहुत शुभकामनाएं!!!!

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  12. एक बेहतरीन रचना है यह....बहुत पसंद आई

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  13. बहुत अच्छी रचना, बेमिसाल कल्पनाओं के संग.
    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  14. क्या खूब संवारा है आपने अपने मखमली ख्याल को शब्दों के खुबसूरत वरन से .... आपकी कवितायेँ भी बेहद नाजुकी लिए होती है ... ढेरो बधाई
    अर्श

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  15. इस अद्भुत रचना पर आपको ढेरों बधईयाँ...अप्रतिम रचना है...और जो चित्र आपने लगाया है...वाह...शब्द हीन कर गया...लाजवाब
    नीरज

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  16. खोये-खोये से चांद पर,
    जब बारिश की बूंदे बैठती,
    और बादल की परत,
    घूंघट में हो, उसे घेरती,
    तब फिसल कर गाल पर,
    एक तब्बसुम खिलने लगे,
    देखो चांदनी रात में,
    अम्बर धरा मिलनेलगे।
    अति सुन्दर बधाई

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  17. खूबसूरत कल्पना... सुन्दर रचना

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  18. वाह आप की कविता तो सच मै चांदनी रात सी सुंदर है.्निखरी निखरी
    धन्यवाद

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  19. जैसा सुंदर चित्र वैसी ही सुंदर रचना। बहुत खूब।

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  20. जब प्यार का अमृत बरस के,
    गिरता धरा की गोद पर,
    और हवाएं छू के बदन को,
    भीनी-सी खुशबू बिखेरती,
    तब कहीं, रंगीन कलियों का बिछौना,
    इस धरा पर बिछने लगे,
    its a beautiful thought....
    touch my heart...
    meet

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  21. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, आज 26 अक्तूबर 2015 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

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