Friday, July 31, 2009

शायद ये ख्वाब वाली, नई उम्र हो जैसे..........





जिस रात में, मिली थी,
मुझसे मेरी महोब्बत,
उस रात ही कहीं पे,
दिल खो दिया था मैंने।



बन फूल, खिल रही थी,
तितली-सी उङ रही थी,
होठों की एक हंसी ने,
मन छू लिया हो जैसे।



बिन घुंघरूओं के बजती,
पैरों में अब तो पायल,
मैं नाचती थिरकती,
दिल झूमता है ऐसे।



लगने लगा है सबकुछ,
अब तो नया-नया सा,


शायद ये ख्वाब वाली,
नई उम्र हो जैसे।

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प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र - साभार गूगल)

Wednesday, July 29, 2009

जैसे अमावस का चांद हो.........



समीर जी (उङनतश्तरी) को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाऐं। आप हमेशा हमारी होसला अफजाई करते रहे और हमें टिपियाते रहें। मोतीचूर का बहुत बङा लड्डू हमारी और से आपके लिए।









हम ढूंढते रहते है,
नज़रें उठाके उसको,
जाने कहां छुपके बैठा है,
वो, बादल की ओट में।



पत्थरा गई ये आंखे,
इंतज़ार में उसकी,
वो फिर भी बनके बैठा है,
जैसे अमावस का चांद हो।



जो हम भी रूठ जाएं,
तो न खिल सकोगे तुम भी,
आखिर तेरी खुशबू का,
वो खिलता फूल, मैं ही हूं।



मुश्किल से ही मिली है,
दिल को धङकने की महोलत,
तू देर न कर अब आजा,
ये सांस थम रही है।



बस ये आखरी सदा है,
आना है तो आ जा,
न फिर जवाब होगा,
तेरे, किसी भी सवाल का।


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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"


(चित्र- साभार गूगल)

Tuesday, July 28, 2009

.......मेरी आशायें.......





अपनी मुठ्ठी में,
बादलों को बांधती हूं,
क्योंकि मैं उङना चाहती हूं।


अपनी उंगलियों में,
सितारें सजाती हूं,
क्योंकि मैं उनको छूना चाहती हूं।


अपने होंठों पे,
मोतियों को थामती हूं,
क्योंकि मैं लव्ज़ों को सजाना चाहती हूं।


अपनी आंखों में,
चांद छुपाती हूं,
क्योंकि मैं तारों सा चमकना चाहती हूं।

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प्रीती बङथ्वाल तारिका
(चित्र- सभार गूगल)

Saturday, July 25, 2009

कुछ बातें यादों के झरोखों से.....





कुछ बातें हमेशा याद आती हैं, कुछ खट्टी...कुछ मीठी यादें। यादों के झरोखे उन एहसासों को याद करा देते हैं जो कभी आवेग में लिए गए एक निर्णय को सालों बाद बचकाना कहने पर मजबूर कर देते हैं तो कभी गर्व की अनुभूति करा देते हैं।

आज शाम घर के अंदर की उमस और गर्मी से निजात पाने के लिए मैं अपनी बैडरूम से लगी बाल्कॉनी में आ खड़ी हुई। हवा कम चल रही थी बाहर भी कोई राहत नहीं मिली। बाल्कॉनी से खड़े होकर जब मैंने नीचे देखा तो याद आया पिछला साल। आज ही तीज के दिन पिछले साल हमारी सोसाइटी में इस वक्त तीज का कार्यक्रम हो रहा था। तीज क्वीन जिसे चुना गया था वो थी प्रेसीडेंट की बहू जो बिना अच्छी लुक और परफोर्मेंस (दूसरे प्रतियोगियों के मुकाबले) और बिना कुछ लाग लपेट के तीज क्वीन बना दिया गया था। बाद में कितना विरोध हुआ था इसका। सभी लेडीज और साथ ही पब्लिक तक ने बाद में इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। पर उस विरोध ने इस बार सोसाइटी को उस कार्यक्रम से महरूम कर दिया। इस बार सोसाइटी में तीज पर झूले, झूले गए पर बच्चों के पार्क में। छोटे-छोटे मासूम भी सोच रहे होंगे कि आज आंटियों को हुआ क्या है।

ये सोचते हुए मैं अंदर चली आई। तभी सामने रखा एक कार्ड देखा, कार्ड हाथ में लिया और पता नहीं कैसे उसे छूते ही पिछली याद से निकलकर यादों ने इस तरफ का रुख कर लिया।

कुछ दिन पहले, रात बारह बजने में महज एक मिनट बाकी था। एक मिनट की दूरी पर था मेरा जन्मदिन लेकिन कंप्यूटर पर पति देव चिपके हुए थे और बेटा मस्त था अपने कार के खिलौनों के साथ। मैं किताब पढ़ रही थी और साथ ही टीवी पर गाने लगा रखे थे। ठीक एक मिनट बाद दिल में एक लहर सी उठी। पर वो लहर दिल तक ही सीमित रही। कोई भी हिला ही नहीं। मैंने पांच-दस मिनट इंतजार किया पर ये क्या अब भी कोई नहीं हिला। जबकि हर बार काउंटडाउन शुरू हुआ करता था और दोनों विश करते थे। मैंने गुस्से में टीवी बंद किया, किताब रखी, लाइट बंद की और सोने लगी। थोड़ी देर बाद दोनों को याद आया और दोनों बड़ी देर तक मुबारकबाद देते रहे।

सुबह से ही लगा था कि कोई ना कोई सरप्राइज मिलेगा ही पर सुबह से शाम होगई और कुछ गिफ्ट क्या दोनों ने बात तक नहीं की इस सिलसिले में। बस सुबह से अपनों के फोन जरूर आए। गुस्सा तो बहुत आया पर शाम को दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा खोला तो देखा कि मेरा बेटा हाथ में चॉकलेट सेलिब्रेशन पैक लेकर खड़ा हुआ है, बोला हैप्पी बर्थ डे मम्मा। जब तक अपनी आंखों की नमी को संभालती तब तक पति देव ने मेरी मनपसंद मिठाई का डिब्बा मेरे सामने करते हुए मुझे बधाई दी। थोड़ा रुक कर, संभलकर खुशी का पता चला...सुबह से बुझा-बुझा था मन अब जाकर कुछ प्रफुल्लित हुआ। मैंने दोनों के कान पकड़े और बोली कि क्या ये सब सुबह नहीं कर सकते थे मेरा दिन तो सही गुजरता।

दोनों ने कहा कि ये तो कुछ भी नहीं, अभी तो फिल्म बाकी है मेरे दोस्त....।....और भी सरप्राइज ! मैं अब ज्यादा सरप्राइज थी। लेकिन मुझे क्या पता था कि दोनों के दोनों सच में मुझे सरप्राइज करने वाले थे। हम निकल पड़े घूमने के लिए, हम काफी घूमें और फिर जब खाने की बात आई तो हम अपनी मनपसंद जगह पर गए और एक यादगार डिनर किया। जब बिल आया, तो ये क्या, बिल मेरे सामने कर दिया गया। ऐसा लगा कि सब मुझे ही देख रहे हैं, अब करती क्या ना करती, मुझे बिल पे करना पड़ा। दोनों मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे और उनकी इस शरारत ने मेरे चहरे पर हंसी बिखेर दी।
मैंने चॉकलेट की लास्ट बाइट ली और सेलिब्रेशन पैक में रैपर को वापस डालकर डिब्बे को एक बार फिर से देखा। अभी तक लग रहा था कि बेटे के हाथों की खुशबू उसमें बसी हुई है। कभी-कभी यादों के वो पल, अच्छे, बड़े अपने से लगते हैं।

प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

(चित्र- साभार गूगल)

Friday, July 10, 2009

यूं ख्वाब रोज सजाया करो...........

जो होंठो को मुस्कान दे,
उन्हीं लम्हों को,
आंखों में बसाया करो,
सलवटें न पङ जाए,
उनमें कभी,
इन्हें रोज सुलझाया करो,
ख्वाब ही तो हैं मासूम से,
धुंधले न हो जाए कहीं,
ये ख्वाब रोज,
पलकों पे सजाया करो।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)

Thursday, July 2, 2009

जब बारिश भीग रही थी..........

सुबह हुई तो देखा,
बारिश भीग रही थी,
हम भी भीग रहे थे,
तन्हाई भीग रही थी।



जब-जब देखूं उसको,
वो शरमा-शरमा जाती,
लाली सी हो जाती,
बिजली चमका जाती।



मन देख-देख यूं उसको,
मयूरा डोल रहा था,
हरी-हरी धरा पर,
हर पत्थर बोल रहा था।


सूरज की आंखे कैसे,
धुंधला-धुंधला सी जाती,
जब काली-काली बदरा,
सूरज के आगे आती।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)