कुछ बातें हमेशा याद आती हैं, कुछ खट्टी...कुछ मीठी यादें। यादों के झरोखे उन एहसासों को याद करा देते हैं जो कभी आवेग में लिए गए एक निर्णय को सालों बाद बचकाना कहने पर मजबूर कर देते हैं तो कभी गर्व की अनुभूति करा देते हैं।
आज शाम घर के अंदर की उमस और गर्मी से निजात पाने के लिए मैं अपनी बैडरूम से लगी बाल्कॉनी में आ खड़ी हुई। हवा कम चल रही थी बाहर भी कोई राहत नहीं मिली। बाल्कॉनी से खड़े होकर जब मैंने नीचे देखा तो याद आया पिछला साल। आज ही तीज के दिन पिछले साल हमारी सोसाइटी में इस वक्त तीज का कार्यक्रम हो रहा था। तीज क्वीन जिसे चुना गया था वो थी प्रेसीडेंट की बहू जो बिना अच्छी लुक और परफोर्मेंस (दूसरे प्रतियोगियों के मुकाबले) और बिना कुछ लाग लपेट के तीज क्वीन बना दिया गया था। बाद में कितना विरोध हुआ था इसका। सभी लेडीज और साथ ही पब्लिक तक ने बाद में इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। पर उस विरोध ने इस बार सोसाइटी को उस कार्यक्रम से महरूम कर दिया। इस बार सोसाइटी में तीज पर झूले, झूले गए पर बच्चों के पार्क में। छोटे-छोटे मासूम भी सोच रहे होंगे कि आज आंटियों को हुआ क्या है।
ये सोचते हुए मैं अंदर चली आई। तभी सामने रखा एक कार्ड देखा, कार्ड हाथ में लिया और पता नहीं कैसे उसे छूते ही पिछली याद से निकलकर यादों ने इस तरफ का रुख कर लिया।
कुछ दिन पहले, रात बारह बजने में महज एक मिनट बाकी था। एक मिनट की दूरी पर था मेरा जन्मदिन लेकिन कंप्यूटर पर पति देव चिपके हुए थे और बेटा मस्त था अपने कार के खिलौनों के साथ। मैं किताब पढ़ रही थी और साथ ही टीवी पर गाने लगा रखे थे। ठीक एक मिनट बाद दिल में एक लहर सी उठी। पर वो लहर दिल तक ही सीमित रही। कोई भी हिला ही नहीं। मैंने पांच-दस मिनट इंतजार किया पर ये क्या अब भी कोई नहीं हिला। जबकि हर बार काउंटडाउन शुरू हुआ करता था और दोनों विश करते थे। मैंने गुस्से में टीवी बंद किया, किताब रखी, लाइट बंद की और सोने लगी। थोड़ी देर बाद दोनों को याद आया और दोनों बड़ी देर तक मुबारकबाद देते रहे।
सुबह से ही लगा था कि कोई ना कोई सरप्राइज मिलेगा ही पर सुबह से शाम होगई और कुछ गिफ्ट क्या दोनों ने बात तक नहीं की इस सिलसिले में। बस सुबह से अपनों के फोन जरूर आए। गुस्सा तो बहुत आया पर शाम को दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा खोला तो देखा कि मेरा बेटा हाथ में चॉकलेट सेलिब्रेशन पैक लेकर खड़ा हुआ है, बोला हैप्पी बर्थ डे मम्मा। जब तक अपनी आंखों की नमी को संभालती तब तक पति देव ने मेरी मनपसंद मिठाई का डिब्बा मेरे सामने करते हुए मुझे बधाई दी। थोड़ा रुक कर, संभलकर खुशी का पता चला...सुबह से बुझा-बुझा था मन अब जाकर कुछ प्रफुल्लित हुआ। मैंने दोनों के कान पकड़े और बोली कि क्या ये सब सुबह नहीं कर सकते थे मेरा दिन तो सही गुजरता।
दोनों ने कहा कि ये तो कुछ भी नहीं, अभी तो फिल्म बाकी है मेरे दोस्त....।....और भी सरप्राइज ! मैं अब ज्यादा सरप्राइज थी। लेकिन मुझे क्या पता था कि दोनों के दोनों सच में मुझे सरप्राइज करने वाले थे। हम निकल पड़े घूमने के लिए, हम काफी घूमें और फिर जब खाने की बात आई तो हम अपनी मनपसंद जगह पर गए और एक यादगार डिनर किया। जब बिल आया, तो ये क्या, बिल मेरे सामने कर दिया गया। ऐसा लगा कि सब मुझे ही देख रहे हैं, अब करती क्या ना करती, मुझे बिल पे करना पड़ा। दोनों मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे और उनकी इस शरारत ने मेरे चहरे पर हंसी बिखेर दी।
मैंने चॉकलेट की लास्ट बाइट ली और सेलिब्रेशन पैक में रैपर को वापस डालकर डिब्बे को एक बार फिर से देखा। अभी तक लग रहा था कि बेटे के हाथों की खुशबू उसमें बसी हुई है। कभी-कभी यादों के वो पल, अच्छे, बड़े अपने से लगते हैं।
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
आज शाम घर के अंदर की उमस और गर्मी से निजात पाने के लिए मैं अपनी बैडरूम से लगी बाल्कॉनी में आ खड़ी हुई। हवा कम चल रही थी बाहर भी कोई राहत नहीं मिली। बाल्कॉनी से खड़े होकर जब मैंने नीचे देखा तो याद आया पिछला साल। आज ही तीज के दिन पिछले साल हमारी सोसाइटी में इस वक्त तीज का कार्यक्रम हो रहा था। तीज क्वीन जिसे चुना गया था वो थी प्रेसीडेंट की बहू जो बिना अच्छी लुक और परफोर्मेंस (दूसरे प्रतियोगियों के मुकाबले) और बिना कुछ लाग लपेट के तीज क्वीन बना दिया गया था। बाद में कितना विरोध हुआ था इसका। सभी लेडीज और साथ ही पब्लिक तक ने बाद में इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। पर उस विरोध ने इस बार सोसाइटी को उस कार्यक्रम से महरूम कर दिया। इस बार सोसाइटी में तीज पर झूले, झूले गए पर बच्चों के पार्क में। छोटे-छोटे मासूम भी सोच रहे होंगे कि आज आंटियों को हुआ क्या है।
ये सोचते हुए मैं अंदर चली आई। तभी सामने रखा एक कार्ड देखा, कार्ड हाथ में लिया और पता नहीं कैसे उसे छूते ही पिछली याद से निकलकर यादों ने इस तरफ का रुख कर लिया।
कुछ दिन पहले, रात बारह बजने में महज एक मिनट बाकी था। एक मिनट की दूरी पर था मेरा जन्मदिन लेकिन कंप्यूटर पर पति देव चिपके हुए थे और बेटा मस्त था अपने कार के खिलौनों के साथ। मैं किताब पढ़ रही थी और साथ ही टीवी पर गाने लगा रखे थे। ठीक एक मिनट बाद दिल में एक लहर सी उठी। पर वो लहर दिल तक ही सीमित रही। कोई भी हिला ही नहीं। मैंने पांच-दस मिनट इंतजार किया पर ये क्या अब भी कोई नहीं हिला। जबकि हर बार काउंटडाउन शुरू हुआ करता था और दोनों विश करते थे। मैंने गुस्से में टीवी बंद किया, किताब रखी, लाइट बंद की और सोने लगी। थोड़ी देर बाद दोनों को याद आया और दोनों बड़ी देर तक मुबारकबाद देते रहे।
सुबह से ही लगा था कि कोई ना कोई सरप्राइज मिलेगा ही पर सुबह से शाम होगई और कुछ गिफ्ट क्या दोनों ने बात तक नहीं की इस सिलसिले में। बस सुबह से अपनों के फोन जरूर आए। गुस्सा तो बहुत आया पर शाम को दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा खोला तो देखा कि मेरा बेटा हाथ में चॉकलेट सेलिब्रेशन पैक लेकर खड़ा हुआ है, बोला हैप्पी बर्थ डे मम्मा। जब तक अपनी आंखों की नमी को संभालती तब तक पति देव ने मेरी मनपसंद मिठाई का डिब्बा मेरे सामने करते हुए मुझे बधाई दी। थोड़ा रुक कर, संभलकर खुशी का पता चला...सुबह से बुझा-बुझा था मन अब जाकर कुछ प्रफुल्लित हुआ। मैंने दोनों के कान पकड़े और बोली कि क्या ये सब सुबह नहीं कर सकते थे मेरा दिन तो सही गुजरता।
दोनों ने कहा कि ये तो कुछ भी नहीं, अभी तो फिल्म बाकी है मेरे दोस्त....।....और भी सरप्राइज ! मैं अब ज्यादा सरप्राइज थी। लेकिन मुझे क्या पता था कि दोनों के दोनों सच में मुझे सरप्राइज करने वाले थे। हम निकल पड़े घूमने के लिए, हम काफी घूमें और फिर जब खाने की बात आई तो हम अपनी मनपसंद जगह पर गए और एक यादगार डिनर किया। जब बिल आया, तो ये क्या, बिल मेरे सामने कर दिया गया। ऐसा लगा कि सब मुझे ही देख रहे हैं, अब करती क्या ना करती, मुझे बिल पे करना पड़ा। दोनों मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे और उनकी इस शरारत ने मेरे चहरे पर हंसी बिखेर दी।
मैंने चॉकलेट की लास्ट बाइट ली और सेलिब्रेशन पैक में रैपर को वापस डालकर डिब्बे को एक बार फिर से देखा। अभी तक लग रहा था कि बेटे के हाथों की खुशबू उसमें बसी हुई है। कभी-कभी यादों के वो पल, अच्छे, बड़े अपने से लगते हैं।
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)
बढ़िया संस्मरण!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
ऐसी ऐसी प्यारी प्यारी यादों से जीवन रह रहकर रूमानी होता जाता है
ReplyDeletekoi bat nahi mai us janamdin ke liye aap ko badhai deta hun aur sath me hee ye gift
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acchi rachana hai
बीते पलों की यादें ऐसी ही होती है,
ReplyDeleteजब याद आती है..मन फिर से उस सुखद पल मे खो जाना चाहता है.
खूबसूरत यादें ..धन्यवाद..
बहुत बढिया -- देर आयद दुरूस्त आयद
ReplyDeletekuchh nahi hai siwaye yaadon ke
ReplyDeleteaaj inse hi baat ki jaye ...
bahot badhiya sasmaran preetee ji..
arsh
बढ़िया संस्मरण..यादें संजोये रहिये, यह सौगातें हैं जीवन भर मुस्कराते रहने के लिए.
ReplyDeleteyaade hi to jiwan jine ka sahara banate hai ........
ReplyDeleteSahi kaha.....ye sukhad smritiyan man ko vishad ke kshano me khila jaya karti hain...
ReplyDeleteyahi mithi yaadien zindagi ki anmol dharohar hai,sunder yaad
ReplyDeleteसुखद पलों को बार बार जीने को दिल चाहता है !!
ReplyDeleteहां जहां तक मुझे याद पडता है शायद आपने एक पोस्ट भी सोसाईटी की इस तीज सेलेब्रेशन पर लिखी थी?
ReplyDeleteयादें कितनी सुखद होती हैं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत अच्छा लिखा है आपने-
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
अच्छा संस्मरण लिखा है आपने
ReplyDeleteअपने जन्मदिन के खूबसूरत लम्हे हमसे बांटने के लिए शुक्रिया...
ReplyDeleteऔर देरी से ही सही हमारी तरफ से भी जन्मदिन की ढेरो शुभकामनायें....
मीत
इसका अपना अलग आनन्द है।
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