सुबह हुई तो देखा,
बारिश भीग रही थी,
हम भी भीग रहे थे,
तन्हाई भीग रही थी।
जब-जब देखूं उसको,
वो शरमा-शरमा जाती,
लाली सी हो जाती,
बिजली चमका जाती।
मन देख-देख यूं उसको,
मयूरा डोल रहा था,
हरी-हरी धरा पर,
हर पत्थर बोल रहा था।
सूरज की आंखे कैसे,
धुंधला-धुंधला सी जाती,
जब काली-काली बदरा,
सूरज के आगे आती।
बारिश भीग रही थी,
हम भी भीग रहे थे,
तन्हाई भीग रही थी।
जब-जब देखूं उसको,
वो शरमा-शरमा जाती,
लाली सी हो जाती,
बिजली चमका जाती।
मन देख-देख यूं उसको,
मयूरा डोल रहा था,
हरी-हरी धरा पर,
हर पत्थर बोल रहा था।
सूरज की आंखे कैसे,
धुंधला-धुंधला सी जाती,
जब काली-काली बदरा,
सूरज के आगे आती।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)