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ये आईने भी........
जब सबने बेवफाई की, तो
आईने से दोस्ती कर ली,
मगर ये आईने भी,
दुश्मनी निभाते हैं,
जिन ख्वाबों से,
मैं डरती हूं,
उन ख्वाबों को ही,
दिखाते हैं,
पल-भर भी जो,
न ठहर सकें,
वो आशियां बनाते हैं,
फिर टूट कर,
बिखर जाते,
जो ख्वाब हम सजातें हैं। ..............प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
ये अच्छा है .. ये बहुत अच्छा है ....
ReplyDeleteदरअस्ल, वो शायद आप को आईना दिखाते हैं.
बहुत ख़ूब .
जिन ख्वाबों से,
ReplyDeleteमैं डरती हूं,
उन ख्वाबों को ही,
दिखाते हैं,
सही है , जिन्दगी एक आइना ही तो है !
बहुत ह्रदय स्पर्शी रचना ! बल्कि यथार्थ परक !
धन्यवाद !
bahut hi achhi rachna,aaina sach me darata hai..........
ReplyDeletekalam me shabdon,bhawnaaon ka adbhut mel hai
आईना किसी का सगा हुआ है? जो सामने आ जाए उसी का हो जाए!
ReplyDeleteवो गीत याद आ गई-
आइने के सौ टुकड़े करके हमने देखे हैं
एक में भी तन्हॉं था, सौ में भी अकेले हैं।
-(अच्छी कविता।)
इसमें आईने का क्या दोष
ReplyDeleteजब ख्वाब ही बुरे हों
बहुत अच्छी रचना .
अच्छा लिखा हर बार की तरह। एक चीज की और तारीफ करना चाहूँगा कि आप फोटो भी सुन्दर लगाती है। कहाँ से लाती ये सब फोटो।
ReplyDeleteजिन ख्वाबों से,
मैं डरती हूं,
उन ख्वाबों को ही,
दिखाते हैं,
बहुत उम्दा।
एक यह आईना ही तो हे जो हमे हमारा असली रुप दिखाता हे,इसी लिये तो हम आईने से डरते हे, अपने सच से...
ReplyDeleteधन्यवाद, एक सुन्दर कविता के लिये
वाह!! बधाई इतनी सुन्दर रचना के लिए.
ReplyDeleteजिन ख्वाबों से
ReplyDeleteमैं डरती हूं
उन ख्वाबों को ही
दिखाते हैं
बहुत खूब!
rachana achhi hai ....wastavikata batati hai .......magar aapke anya rachanawon ki tarah utna wazan nahi laga wese bahot hi badhiya likha hai aapne........badhai........
ReplyDeleteregards
Arsh
जिन ख्वाबों से,
ReplyDeleteमैं डरती हूं,
उन ख्वाबों को ही,
दिखाते हैं,
पल-भर भी जो,
न ठहर सकें,
bahut khoobsurat likha hai...
jari rahe
accha prayas hai, mujhe lagta hai aaina khuwab nahi haqeeqat dikhta hai aur hum apni haqeeqt se toh waqaai darte hai,
ReplyDeletekeep it up
Achhi lagi rachna.
ReplyDeletebahut khoob.....
ReplyDeleteअति सुंदर रचना....
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूब!
ReplyDeleteजब भाव अच्छे हो
ReplyDeleteसोंच गहरी हो
दिल में जज्बात हों
हाँथ में कलम हो और हो.....
सामने सादा कागज
तो कविता कैसी बनती है ?
जी हाँ इस प्रश्न का उत्तर है यह कविता
वीनस केसरी
aah ! kya likhoon aaj to jaise mere man ka dard hi aap ki kavita me samaya dikha. aap ki lekhni yu hi bhavo ko roop dete rahe .bahut badhiya .likhti rahiye
ReplyDeleteबहुत अच्छी नज़्म है...खासकर ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी !!!!!!
ReplyDeleteजब सबने बेवफाई की, तो
आईने से दोस्ती कर ली,
मगर ये आईने भी,
दुश्मनी निभाते हैं,
प्रीति जी,
ReplyDeleteपहले तो धन्यवाद, आपको 'मजाक है क्या पृथ्वी का अंत!!!' पसंद आया.
इसी बहाने मैंने आपकी कविता 'ये आईने भी...'पढी़, अच्छी लगी.
वैसे,
आईने को दोष देकर क्या हासिल
वह तो,
निस्कपट निःस्वार्थ होता है,
वही दिखाता है जो यथार्थ होता है.
एक गीत है
ReplyDeleteआईने के सौ-सौ टुकड़े
करके हमने देखे हैं
एक में भी तन्हा थे
सौ में भी अकेले हैं
अच्छी रचना के लिए बधाई
preety ji aap ka geet bahut hi achchha hai. aasha hai ki aap isi tarah likhti rahegi
ReplyDeleteअच्छी कोशिश है
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