Friday, September 5, 2008

ये आईने भी........



जब सबने बेवफाई की, तो
आईने से दोस्ती कर ली,
मगर ये आईने भी,
दुश्मनी निभाते हैं,
जिन ख्वाबों से,
मैं डरती हूं,
उन ख्वाबों को ही,
दिखाते हैं,
पल-भर भी जो,
न ठहर सकें,
वो आशियां बनाते हैं,
फिर टूट कर,
बिखर जाते,
जो ख्वाब हम सजातें हैं।

..............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

23 comments:

  1. ये अच्छा है .. ये बहुत अच्छा है ....
    दरअस्ल, वो शायद आप को आईना दिखाते हैं.

    बहुत ख़ूब .

    ReplyDelete
  2. जिन ख्वाबों से,
    मैं डरती हूं,
    उन ख्वाबों को ही,
    दिखाते हैं,

    सही है , जिन्दगी एक आइना ही तो है !
    बहुत ह्रदय स्पर्शी रचना ! बल्कि यथार्थ परक !
    धन्यवाद !

    ReplyDelete
  3. bahut hi achhi rachna,aaina sach me darata hai..........
    kalam me shabdon,bhawnaaon ka adbhut mel hai

    ReplyDelete
  4. आईना कि‍सी का सगा हुआ है? जो सामने आ जाए उसी का हो जाए!
    वो गीत याद आ गई-
    आइने के सौ टुकड़े करके हमने देखे हैं
    एक में भी तन्‍हॉं था, सौ में भी अकेले हैं।

    -(अच्‍छी कवि‍ता।)

    ReplyDelete
  5. इसमें आईने का क्या दोष
    जब ख्वाब ही बुरे हों
    बहुत अच्छी रचना .

    ReplyDelete
  6. अच्छा लिखा हर बार की तरह। एक चीज की और तारीफ करना चाहूँगा कि आप फोटो भी सुन्दर लगाती है। कहाँ से लाती ये सब फोटो।

    जिन ख्वाबों से,
    मैं डरती हूं,
    उन ख्वाबों को ही,
    दिखाते हैं,

    बहुत उम्दा।

    ReplyDelete
  7. एक यह आईना ही तो हे जो हमे हमारा असली रुप दिखाता हे,इसी लिये तो हम आईने से डरते हे, अपने सच से...
    धन्यवाद, एक सुन्दर कविता के लिये

    ReplyDelete
  8. वाह!! बधाई इतनी सुन्दर रचना के लिए.

    ReplyDelete
  9. जिन ख्वाबों से
    मैं डरती हूं
    उन ख्वाबों को ही
    दिखाते हैं

    बहुत खूब!

    ReplyDelete
  10. rachana achhi hai ....wastavikata batati hai .......magar aapke anya rachanawon ki tarah utna wazan nahi laga wese bahot hi badhiya likha hai aapne........badhai........


    regards
    Arsh

    ReplyDelete
  11. जिन ख्वाबों से,
    मैं डरती हूं,
    उन ख्वाबों को ही,
    दिखाते हैं,
    पल-भर भी जो,
    न ठहर सकें,
    bahut khoobsurat likha hai...
    jari rahe

    ReplyDelete
  12. accha prayas hai, mujhe lagta hai aaina khuwab nahi haqeeqat dikhta hai aur hum apni haqeeqt se toh waqaai darte hai,
    keep it up

    ReplyDelete
  13. अति सुंदर रचना....
    नीरज

    ReplyDelete
  14. जब भाव अच्छे हो
    सोंच गहरी हो
    दिल में जज्बात हों
    हाँथ में कलम हो और हो.....
    सामने सादा कागज
    तो कविता कैसी बनती है ?
    जी हाँ इस प्रश्न का उत्तर है यह कविता

    वीनस केसरी

    ReplyDelete
  15. aah ! kya likhoon aaj to jaise mere man ka dard hi aap ki kavita me samaya dikha. aap ki lekhni yu hi bhavo ko roop dete rahe .bahut badhiya .likhti rahiye

    ReplyDelete
  16. बहुत अच्छी नज़्म है...खासकर ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी !!!!!!

    जब सबने बेवफाई की, तो
    आईने से दोस्ती कर ली,
    मगर ये आईने भी,
    दुश्मनी निभाते हैं,

    ReplyDelete
  17. प्रीति जी,
    पहले तो धन्‍यवाद, आपको 'मजाक है क्या पृथ्वी का अंत!!!' पसंद आया.
    इसी बहाने मैंने आपकी कविता 'ये आईने भी...'पढी़, अच्‍छी लगी.
    वैसे,
    आईने को दोष देकर क्‍या हासिल
    वह तो,
    निस्‍कपट निःस्‍वार्थ होता है,
    वही दिखाता है जो यथार्थ होता है.

    ReplyDelete
  18. एक गीत है
    आईने के सौ-सौ टुकड़े
    करके हमने देखे हैं
    एक में भी तन्हा थे
    सौ में भी अकेले हैं
    अच्छी रचना के लिए बधाई

    ReplyDelete
  19. preety ji aap ka geet bahut hi achchha hai. aasha hai ki aap isi tarah likhti rahegi

    ReplyDelete

मेरी रचना पर आपकी राय