तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये,
फूलों के मंका बनाये थे,
जो रेत के घरौंदों में ढह गये।
तेरी याद के आंसू रह गये,
फूलों के मंका बनाये थे,
जो रेत के घरौंदों में ढह गये।
तू मुसाफिर नहीं था,
मेरी मन्जिल का,
जो इस तरहा से चला गया,
मेरी हर हंसी का तू ख्वाब था,
जो बिखर-बिखर के रह गये।
मेरी मन्जिल का,
जो इस तरहा से चला गया,
मेरी हर हंसी का तू ख्वाब था,
जो बिखर-बिखर के रह गये।
अभी दूर तक ही न गया था तू,
तेरे पांव रुक कर ठहर गये,
मेरे ख्वाब ने एक आस की,
होंठ मुस्कुराते रह गये।
तू रुका था एक पल के लिए,
फिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये।
तेरे पांव रुक कर ठहर गये,
मेरे ख्वाब ने एक आस की,
होंठ मुस्कुराते रह गये।
तू रुका था एक पल के लिए,
फिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
Bahut khub.
ReplyDeleteअच्छी रचना, लिखते रहें। तस्वीर भी चुनके लगाई है आंख से टपकता आंसू।
ReplyDeleteआंसुओं को भी सुन्दरता से व्यक्त करना सिर्फ़ एक कवि-ह्रदय के बस की ही बात है. बधाई!
ReplyDeleteतू रुका था एक पल के लिए,
ReplyDeleteफिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये।
बहुत नही अति सुंदर कहूंगा ! धन्यवाद !
और ये फोटो कही भीम ताल की तो नही है ?
मुझे ऐसा ही लग रहा है पर उसमे ये निर्माण
कब हवा ? खैर ... बहुत सुंदर है , इसके लिए
एक धन्यवाद अलग से दे रहा हूँ ! :)
ख़याल अच्छे हैं.
ReplyDelete"मेरे आंसुओं पे न मुस्कुरा, कुछ ख्वाब थे जो मचल गए ...."
ek achhi rachna.
ReplyDeleteachha shabd aur chitra sanyojan.badhai achhi post ki
ReplyDeleteआपने बहुत गहरे ज़ज़्बातों से भरी यह रचना लिखी। बहुत ही पसंद आई। आपके लिखने के टाईम से आपके लिखने के जुनून का पता चलता है। आज निगाह गई तो पता चला।
ReplyDeleteतू रुका था एक पल के लिए,
फिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये।
आंसू मुस्करा कर बह गये। क्या भाव आया है कमाल।
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
ReplyDeleteमुस्कुरा कर बह गये।
khoob.....
तू रुका था एक पल के लिए,
ReplyDeleteफिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
lazawaab likha hai...
jari rahe
बहुत खूब।
ReplyDeleteताऊ जी राम राम, नहीं ये भीम ताल नहीं जयपुर का जल महल है। आपको मेरी कविता और चित्र पसंद आई आपका धन्यवाद
ReplyDeleteप्रीती जी मुझे भी ये जलमहल ही लगा था ! पर मैंने इसमे पानी नही देखा काफी समय से ! इसलिए भीम ताल का धोखा हो गया !
ReplyDeleteऔर ताई ने जोर देकर जलमहल बताया था ! क्योकी ताई जयपुर की हैं ! अब मैं दो लट्ठ खाने की शर्त फ़िर हार गया ! आप झूँठ मूंठ ही भीमताल
लिख देती ? पर शायद आप भी ताई से मिली हुई हो ? ठीक है ताऊ को लट्ठ खिलाये जाओ ! :)
जितनी सुंदर रचना उतना ही सुंदर चित्र...मुख्या रूप से ब्लॉग पर आपने जयपुर के जल महल की फोटो लगाई है लेकिन अब तो उसमें बहुत परिवर्तन हो गया है...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteतू रुका था एक पल के लिए,
ReplyDeleteफिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये।
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
तू रुका था एक पल के लिए,
ReplyDeleteफिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये।
bahut sunder bhav hai...man ko chu gae
एक नाजुक सपने की तरह, जिसका टूटना तय था। एक सुंदर ख्वाब, जिसे देखा जाना बाकी है....
ReplyDeleteek umda koshish...nazm behtar hain...aur behtarin aap likh sakte hian...
ReplyDeleteBahut Achchhi kavita hai, Ashesh Badhai
ReplyDeleteआप सभी का आभार
ReplyDeleteआप सभी का आभार
ReplyDeletebhut badhiya rachana. very nice. jari rhe.
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