Thursday, August 28, 2008

फिर भी जीवन जी रहा


ये हवाऐँ छेङती है,
क्यों मुझे कुछ इसतरहां
सिमटा हुआ आँचल मेरा,
मचल उठता है बादलों में।

खुल रहे केसू भी,
जो अब तक कैद थे.
इन चोटियों में,
और लटें गुदगुदाने लगीं हैं,
कोमल कपोलों को मेरे।


दुर से आती हवाऐं,
ला रही पैगाम किसका,
जिसकी खुशबू की महक,
इन वादियों में बिखरी हुई है।

मैं करुं इंतज़ार उसका,
जो तसव्वुर में ही रहा,
न स्वप्न है न ही हक़ीकत,
फिर भी जीवन जी रहा।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

16 comments:

  1. वाह! बहुत सुन्दर.

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  2. न स्वप्न है न ही हक़ीकत,
    फिर भी जीवन जी रहा ।


    सुंदर अति सुंदर ! कमाल की रचना !
    न स्वप्न है न ही हक़ीकत.. भई वाह ..वाह ..!

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  3. मैं करुं इंतज़ार उसका,
    जो तसव्वुर में ही रहा,
    न स्वप्न है न ही हक़ीकत,
    फिर भी जीवन जी रहा।

    अच्छा है.

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  4. मैं करुं इंतज़ार उसका,
    जो तसव्वुर में ही रहा,
    न स्वप्न है न ही हक़ीकत,
    फिर भी जीवन जी रहा।

    बहुत ही उम्दा, सुंदर रचना।

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  5. ये हवाऐँ छेङती है,
    क्यों मुझे कुछ इसतरहां
    सिमटा हुआ आँचल मेरा,
    मचल उठता है बादलों में।

    क्या बात है ? बधाई !

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  6. बहुत सुन्दर्!

    ये हवाऐँ छेङती है,
    क्यों मुझे कुछ इसतरहां
    सिमटा हुआ आँचल मेरा,
    मचल उठता है बादलों में।

    बहुत खूब!

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  7. मैं करुं इंतज़ार उसका,
    जो तसव्वुर में ही रहा,
    न स्वप्न है न ही हक़ीकत,
    फिर भी जीवन जी रहा।

    बहुत अच्छी रचना है !!!!!!!!!!

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  8. bahut hi achi rachna badhai aap ko

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  9. रोमानी आैर दार्शनिक अंदाज है आपका। जमीनी हकीकत पर भी आपकी सशक्त लेखनी चले। शुभकामनाएं।

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  10. "दुर से आती हवाऐं,
    ला रही पैगाम किसका,
    जिसकी खुशबू की महक,
    इन वादियों में बिखरी हुई है।"

    उत्तम..

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  11. आपने हवाओं के पैगाम को भी लिख दिया- बहुत ही खूबसूरत कविता है !!

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  13. संवेदना जताने का शुक्रिया

    ...कविता सुंदर है.

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  14. वाह अति सुन्दर। आपके लेखन की जितनी तारीफ की जाए कम ही होगी।

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