खामोश निगाहों का सपना तुम हो,
जिसको भुला न सकूं, वो अपना तुम हो,
जिसकी हर बात, मेरी तन्हाईयों को छू ले,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो, वो तुम हो।
जिसकी धङकन की आवाज़,
सिर्फ मैं सुनूं ,दिन और रात,
जिसके आने की राह तकें,
ये आंखे बार-बार,
जिसकी खुशबू का पता,
बहारें मुझको दें जांए,
सच ऐ ख्वाब वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।
जिसको भुला न सकूं, वो अपना तुम हो,
जिसकी हर बात, मेरी तन्हाईयों को छू ले,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो, वो तुम हो।
जिसकी धङकन की आवाज़,
सिर्फ मैं सुनूं ,दिन और रात,
जिसके आने की राह तकें,
ये आंखे बार-बार,
जिसकी खुशबू का पता,
बहारें मुझको दें जांए,
सच ऐ ख्वाब वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।
जिसका अफसाना मेरे हयात के,
पैमाने में भरा हो,
जिसको पी कर मेरा गम भी,
दीवाना बन गया हो,
मेरे माज़ी के हर पन्ने पे,
लिखी जिसकी दास्तां,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
सुंदर....अति उत्तम।।।।।
ReplyDeleteबेहत संवेदन शील रचना...आप शब्दों से जादू करती हैं...और चित्र तो कमाल का है...कमाल याने...बेमिसाल समझिये.
ReplyDeleteनीरज
बहुत बढिया संवेदनशील रचना! बहुत बधाई!!
ReplyDeleteजिसकी धङकन की आवाज़,
ReplyDeleteसिर्फ मैं सुनूं ,दिन और रात,
जिसके आने की राह तकें,
ये आंखे बार-बार,
जिसकी खुशबू का पता,
बहारें मुझको दें जांए,
सच ऐ ख्वाब वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।
बहुत सुंदर
sunder, nahi bahut sunder
ReplyDeleteजिसका अफसाना मेरे हयात के,
ReplyDeleteपैमाने में भरा हो,
जिसको पी कर मेरा गम भी,
दीवाना बन गया हो,
मेरे माज़ी के हर पन्ने पे,
लिखी जिसकी दास्तां,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।
एक रूमानियत का एहसास
मन में बसे ख्वाब को शब्दों का बढिया जामा पहनाया है।
ReplyDeletebehad samvedan sheel rachna bhaut bhaut badhayi aapko
ReplyDeleteजिसकी खुशबू का पता,
ReplyDeleteबहारें मुझको दें जांए,
सुन्दरतम ! लाजवाब !
शुभकामनाएं !
kaash khwaab poore ho paate..
ReplyDeletehttp://kavikulwant.blogspot.com