Monday, August 11, 2008

सच ऐ ख्वाब...वो तुम हो...

खामोश निगाहों का सपना तुम हो,
जिसको भुला न सकूं, वो अपना तुम हो,
जिसकी हर बात, मेरी तन्हाईयों को छू ले,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो, वो तुम हो।

जिसकी धङकन की आवाज़,
सिर्फ मैं सुनूं ,दिन और रात,
जिसके आने की राह तकें,
ये आंखे बार-बार,
जिसकी खुशबू का पता,
बहारें मुझको दें जांए,
सच ऐ ख्वाब वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।

जिसका अफसाना मेरे हयात के,
पैमाने में भरा हो,
जिसको पी कर मेरा गम भी,
दीवाना बन गया हो,
मेरे माज़ी के हर पन्ने पे,
लिखी जिसकी दास्तां,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

10 comments:

  1. सुंदर....अति उत्तम।।।।।

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  2. बेहत संवेदन शील रचना...आप शब्दों से जादू करती हैं...और चित्र तो कमाल का है...कमाल याने...बेमिसाल समझिये.
    नीरज

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  3. बहुत बढिया संवेदनशील रचना! बहुत बधाई!!

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  4. जिसकी धङकन की आवाज़,
    सिर्फ मैं सुनूं ,दिन और रात,
    जिसके आने की राह तकें,
    ये आंखे बार-बार,
    जिसकी खुशबू का पता,
    बहारें मुझको दें जांए,
    सच ऐ ख्वाब वो तुम हो,
    वो तुम हो वो तुम हो।

    बहुत सुंदर

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  5. जिसका अफसाना मेरे हयात के,
    पैमाने में भरा हो,
    जिसको पी कर मेरा गम भी,
    दीवाना बन गया हो,
    मेरे माज़ी के हर पन्ने पे,
    लिखी जिसकी दास्तां,
    सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
    वो तुम हो वो तुम हो।


    एक रूमानियत का एहसास

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  6. मन में बसे ख्वाब को शब्दों का बढिया जामा पहनाया है।

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  7. behad samvedan sheel rachna bhaut bhaut badhayi aapko

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  8. जिसकी खुशबू का पता,
    बहारें मुझको दें जांए,


    सुन्दरतम ! लाजवाब !
    शुभकामनाएं !

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  9. kaash khwaab poore ho paate..
    http://kavikulwant.blogspot.com

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