ग़म जो लिखे थे क़िस्मत में,
तो खुशियां कहां से आनी थी,
ख़ाबों को हक़ीकत समझ बैठे,
यही तो हमारी नादानी थी,
मिट्टी का घरौंदा था जिसमें,
ख़ाबों को हमने सजोया था,
पल-पल की खुशियों को जिसमें,
मोतियों जैसे पिरोया था,
शायद तक़दीर को उसमें,
लिखनी, और ही कहानी थी,
छोटे-छोटे उन ख्वाबों की,
बङी-सी कब्र बनानी थी,
ग़म जो लिखे थे क़िस्मत में,
तो खुशियां कहां से आनी थी।
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तो खुशियां कहां से आनी थी,
ख़ाबों को हक़ीकत समझ बैठे,
यही तो हमारी नादानी थी,
मिट्टी का घरौंदा था जिसमें,
ख़ाबों को हमने सजोया था,
पल-पल की खुशियों को जिसमें,
मोतियों जैसे पिरोया था,
शायद तक़दीर को उसमें,
लिखनी, और ही कहानी थी,
छोटे-छोटे उन ख्वाबों की,
बङी-सी कब्र बनानी थी,
ग़म जो लिखे थे क़िस्मत में,
तो खुशियां कहां से आनी थी।
.....................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
सुंदर रचना अच्छी लगी....अति उत्तम।।।।
ReplyDeleteख़ाबों को हक़ीकत समझ बैठे,
ReplyDeleteयही तो हमारी नादानी थी,
मिट्टी का घरौंदा था जिसमें,
ख़ाबों को हमने सजोया था,
बहुत ही जज्बाती अहसास । बहुत उम्दा।
ग़म जो लिखे थे क़िस्मत में,
ReplyDeleteतो खुशियां कहां से आनी थी,
ख़ाबों को हक़ीकत समझ बैठे,
यही तो हमारी नादानी थी
बहुत सुंदर.
बहुत बढिया.लिखते रहें.
ReplyDeleteअच्छी रचना है, बधाई स्वीकारें..
ReplyDelete***राजीव रंजन प्रसाद
sundar kavita...keep it up.
ReplyDeletesundar kavita...keep it up.
ReplyDeleteअच्छी रचना है, बधाई स्वीकारें..
ReplyDeleteग़म जो लिखे थे क़िस्मत में,
ReplyDeleteतो खुशियां कहां से आनी थी।
अरे..निराशावादी नहीं...आशा से भरपूर कवितायें लिखा कीजिये...जीवन संघर्ष का नाम है बैठ कर आंसू बहाने का नहीं...बहरहाल आप की रचना बहुत सुंदर है, शब्द और भाव तो हैं ही इसमें लेकिन आप ने जो चित्र लगाया है वो सबसे कमाल का है...
नीरज