मेरे ख्वाब ने ही,
मुझको रुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था,
मुस्कुराते उसके कदम,
मुझसे ही पनाह मांगते थे,
मुझको रुलाकर गये थे,
तभी तो हंसना जानते थे,
बन्द पलकों के तले,
आज उनकों, फिर सुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था।
.............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(फोटो-सभार गुगल )
सपने रुलाते हैं, हॅसाते है, जीना सिखाते है, डराते भी हैं, मगर इसे देखे बिना न जिन्दगी का सफर तय होता है, न जीने का। बहुत अच्छी बात लगी कि सपनों को पलकों में फिर से पनाह मिली-
ReplyDeleteबन्द पलकों के तले,
आज उनकों, फिर सुलाया था,
Bahut acche lage aap ke spne.
ReplyDeleteएक बात पूछना चाहूँगा- इतनी अच्छी तस्वीरें आप ढ़ुढती कहॉं से है जो आपकी पोस्ट पर खुद एक कविता बनकर गुनगुनाती है।
ReplyDeletebadhiya abhivyakti.
ReplyDeleteiske pahale wali poem v kafi achhi thi aapki isme v bejod ki gahari thinking mili hai muje bahot khub shandar rachana hai....
ReplyDeleteबन्द पलकों के तले,
आज उनकों, फिर सुलाया था,
bahot achha likha hai aapne...badhai,.....
regards
Arsh
मुझको रुलाकर गये थे,
ReplyDeleteतभी तो हंसना जानते थे,
बहुत बेहतरीन ! बधाई !
Mohatrama aapse hum clearcut naraz hain. Ek to aapkee itnee sunder abhivyakti aur ooper se usmain tasveerain paristaan ka gumaan paida kartee hui. Is sub ke bavajood aap itnee der baad sampark main aain. Khair jaiye maaf kiya. Aainda aapkee khoobsoorat poston se hamain mahroom nahin rakha kijiyega. Jaise hee nai post daliyega apne blog par hamain zaroor batlaiye. Aapke blog ke dheere dheere fan hote hue.
ReplyDeletepalkein bhi chamak uthti hain sote main hamari
ReplyDeleteaakhon ko abhi khawab chipaney nhin aatey.
बहुत ही सुंदर कविता.. मेरे ख्वाब ने ही .....
ReplyDeleteधन्यवाद, लेकिन ख्वाब तो ख्वाब ही होते हे
वाह बहुत अच्छा लीखा है "फिर मुझे ख्वाब आया था।" एन्ड भी बहुत अच्छा है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा-बेहतरीन!!!!
ReplyDeletekhwaabon ki taseer badi dilkash hoti hai,
ReplyDeletephir ek khwaab-hansaye ya rulaye,
saath to hai
bahut sundar
मुझको रुलाकर गये थे,
ReplyDeleteतभी तो हंसना जानते थे....
आपकी अधिकतर कविताओं में उदासी का सैलाव छिपा रहता है ....इससे कवितायें जीवित लगती है!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमेरे ख्वाब ने ही,
ReplyDeleteमुझको रुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था,
मुस्कुराते उसके कदम,
मुझसे ही पनाह मांगते थे,
मुझको रुलाकर गये थे,
तभी तो हंसना जानते थे,
बन्द पलकों के तले,
आज उनकों, फिर सुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था।
बहुत ही सुंदर कविता लिखी हे आपने प्रीती जी बधाई
उम्दा-बेहतरीन
ReplyDeleteअब थोड़ा अपना ख्वाब भी बाँटता चलूँ..
आज, एक सफ़र के बाद,
मुझे भी ख्वाब आया था।
वो डरावना चेहरा कमबख्त
ना जाने किसका नजर आया था
bahut hi khoobsoorat likha hai........
ReplyDeletekabhi fursat me mere blog pe bhi padhare......
आज, एक सफ़र के बाद,
ReplyDeleteफिर मुझे ख्वाब आया था।
sunder...
bahut sunder
वाह.......... क्या सलीके से अपनी बात कही है आपने.........
ReplyDeleteसाधुवाद..........
वाह क्या सलीके से अपनी बात कही है आपने
ReplyDeleteसाधुवाद
बन्द पलकों के तले,
ReplyDeleteआज उनकों, फिर सुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था।
bhut sundar preeti ji. jari rhe.
बन्द पलकों के तले,
ReplyDeleteआज उनकों, फिर सुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था।
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bahut khubsurat .........
आज उनकों, फिर सुलाया था,
ReplyDeleteआज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था।
u envisage great emotions
thanks
sach khati hai ye sapne baut dukh dete hain
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