Tuesday, September 16, 2008

फिर मुझे ख्वाब आया है...



मेरे ख्वाब ने ही,
मुझको रुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था,
मुस्कुराते उसके कदम,
मुझसे ही पनाह मांगते थे,
मुझको रुलाकर गये थे,
तभी तो हंसना जानते थे,
बन्द पलकों के तले,
आज उनकों, फिर सुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था।
.............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(फोटो-सभार गुगल )

24 comments:

  1. सपने रुलाते हैं, हॅसाते है, जीना सि‍खाते है, डराते भी हैं, मगर इसे देखे बि‍ना न जि‍न्‍दगी का सफर तय होता है, न जीने का। बहुत अच्‍छी बात लगी कि‍ सपनों को पलकों में फि‍र से पनाह मि‍ली-

    बन्द पलकों के तले,
    आज उनकों, फिर सुलाया था,

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  2. एक बात पूछना चाहूँगा- इतनी अच्‍छी तस्‍वीरें आप ढ़ुढती कहॉं से है जो आपकी पोस्‍ट पर खुद एक कवि‍ता बनकर गुनगुनाती है।

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  3. iske pahale wali poem v kafi achhi thi aapki isme v bejod ki gahari thinking mili hai muje bahot khub shandar rachana hai....
    बन्द पलकों के तले,
    आज उनकों, फिर सुलाया था,

    bahot achha likha hai aapne...badhai,.....

    regards
    Arsh

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  4. Mohatrama aapse hum clearcut naraz hain. Ek to aapkee itnee sunder abhivyakti aur ooper se usmain tasveerain paristaan ka gumaan paida kartee hui. Is sub ke bavajood aap itnee der baad sampark main aain. Khair jaiye maaf kiya. Aainda aapkee khoobsoorat poston se hamain mahroom nahin rakha kijiyega. Jaise hee nai post daliyega apne blog par hamain zaroor batlaiye. Aapke blog ke dheere dheere fan hote hue.

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  5. palkein bhi chamak uthti hain sote main hamari
    aakhon ko abhi khawab chipaney nhin aatey.

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  6. बहुत ही सुंदर कविता.. मेरे ख्वाब ने ही .....
    धन्यवाद, लेकिन ख्वाब तो ख्वाब ही होते हे

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  7. वाह बहुत अच्छा लीखा है "फिर मुझे ख्वाब आया था।" एन्ड भी बहुत अच्छा है।

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  8. बहुत उम्दा-बेहतरीन!!!!

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  9. khwaabon ki taseer badi dilkash hoti hai,
    phir ek khwaab-hansaye ya rulaye,
    saath to hai
    bahut sundar

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  10. मुझको रुलाकर गये थे,
    तभी तो हंसना जानते थे....

    आपकी अधिकतर कविताओं में उदासी का सैलाव छिपा रहता है ....इससे कवितायें जीवित लगती है!!

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  12. मेरे ख्वाब ने ही,
    मुझको रुलाया था,
    आज, एक सफ़र के बाद,
    फिर मुझे ख्वाब आया था,
    मुस्कुराते उसके कदम,
    मुझसे ही पनाह मांगते थे,
    मुझको रुलाकर गये थे,
    तभी तो हंसना जानते थे,
    बन्द पलकों के तले,
    आज उनकों, फिर सुलाया था,
    आज, एक सफ़र के बाद,
    फिर मुझे ख्वाब आया था।

    बहुत ही सुंदर कविता लिखी हे आपने प्रीती जी बधाई

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  13. उम्दा-बेहतरीन

    अब थोड़ा अपना ख्वाब भी बाँटता चलूँ..


    आज, एक सफ़र के बाद,
    मुझे भी ख्वाब आया था।
    वो डरावना चेहरा कमबख्त
    ना जाने किसका नजर आया था

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  14. bahut hi khoobsoorat likha hai........
    kabhi fursat me mere blog pe bhi padhare......

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  15. आज, एक सफ़र के बाद,
    फिर मुझे ख्वाब आया था।
    sunder...
    bahut sunder

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  16. वाह.......... क्या सलीके से अपनी बात कही है आपने.........
    साधुवाद..........

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  17. वाह क्या सलीके से अपनी बात कही है आपने
    साधुवाद

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  18. बन्द पलकों के तले,
    आज उनकों, फिर सुलाया था,
    आज, एक सफ़र के बाद,
    फिर मुझे ख्वाब आया था।
    bhut sundar preeti ji. jari rhe.

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  19. बन्द पलकों के तले,
    आज उनकों, फिर सुलाया था,
    आज, एक सफ़र के बाद,
    फिर मुझे ख्वाब आया था।
    .............

    bahut khubsurat .........

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  20. आज उनकों, फिर सुलाया था,
    आज, एक सफ़र के बाद,
    फिर मुझे ख्वाब आया था।
    u envisage great emotions
    thanks

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