Sunday, July 20, 2008

एहसास हो रहा है.......

पहले भी तेरे दर्द का,
एहसास था मुझे,
आज भी उस दर्द का,
एहसास हो रहा है।
आखों में नमी थी,
उस वक्त भी मेरे,
आज भी उस नमी का,
एहसास हो रहा है।
जो खा़ब कल तेरे थे,
आज मेरी आखों में नजर आते है।
जिन एवानों को तूने बनाया था,
उनको आज हम सजाते हैं।
ख्वाहिश है तेरे मंका में,
एक तस्वीर ही बन जाऊं।
कभी तो तेरी नजरें करम होंगी,
और मैं भी एक बार संवर जाऊं।
रात के तसव्वुर में,
ये सफर हो रहा है।
आखों में नमी थी,
उस वक्त भी मेरे,
आज भी उस नमी का,
एहसास हो रहा है।
...........
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

14 comments:

  1. बहुत खूब।
    जो खा़ब कल तेरे थे,
    आज मेरी आखों में नजर आते है।

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  2. पूरी की पूरी कविता एक एहसास ही है.... एकदम चेतन जैसे अभी आँखों से पसीना निकल आएगा

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  3. अपने मनोभावों को बहुत खूबसूरती से पेश किया है।

    जो खा़ब कल तेरे थे,
    आज मेरी आखों में नजर आते है।

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  4. bahut badhiya likha...baht khuab

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  5. बहुत उम्दा..वाह!! ऐसे ही लिखते रहें, शुभकामनाऐं.

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  6. ख्वाहिश है तेरे मंका में,
    एक तस्वीर ही बन जाऊं।
    कभी तो तेरी नजरें करम होंगी,
    और मैं भी एक बार संवर जाऊं।

    bahut khoobsoorat likhtii hein aap...aise hii likhtii rahein...
    merii shubhkaamna ...

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  7. khwaab isi tarah aankh dar aankhon me ghumte hin,
    nami hi zindagi ka falsafa hai......
    bhut achha likhti ho

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  8. प्रीती जी बहुत उम्दा नज़्म है..लिखती रहे ...बधाई

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  9. ख्वाहिश है तेरे मकान में,
    एक तस्वीर ही बन जाऊं।

    ख़्याल को तोड़कर जीवन के धागे में फिर पिरो दिया! वाह!

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  10. प्रीती, भावो के उतार चढाव को अच्छे से आपने अपनी कलम से पेश किया है। अति सुन्दर शुभकामनायें।

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  11. lagataar likhti rahein. aapki rachnayein anant sambhaavnayei jaga rahi hain. Badhai.

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  12. वाह मुझे बहुत अच्‍छा लगा यहां पर आना बहुत अच्‍छी रचनाओं का संसार

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