वो डबडबाती आंखे,
वो बिलखती आंखे,
खून से सनी वो,
हैं किस बच्चे की सांसे।
जो पुकारता किसी अपने को,
जो ढूढंता किसी अपने को,
जिसे देख कर कोई भी,
जान न पाये उसे,और उसके अपने को।
मां...आ...मां...आ...का रूदन करता वो,
बिना सांस लिए दोहराये,
वो प्रश्न लिए आंखों में,
सब ओर यूं तकता जाये,
शायद, कोई अपना देख रहा हो,
जो पास उसके आ जाये,
और गोदी में उसे उठा कर,
बस, मां के पास ले जाये।
बस, मां के पास.............
..........
वो बिलखती आंखे,
खून से सनी वो,
हैं किस बच्चे की सांसे।
जो पुकारता किसी अपने को,
जो ढूढंता किसी अपने को,
जिसे देख कर कोई भी,
जान न पाये उसे,और उसके अपने को।
मां...आ...मां...आ...का रूदन करता वो,
बिना सांस लिए दोहराये,
वो प्रश्न लिए आंखों में,
सब ओर यूं तकता जाये,
शायद, कोई अपना देख रहा हो,
जो पास उसके आ जाये,
और गोदी में उसे उठा कर,
बस, मां के पास ले जाये।
बस, मां के पास.............
..........
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
bahut accha likha hai
ReplyDeleteअति मार्मिक!! भावुक कर दिया, क्या कहें.
ReplyDeleteसच ही है
ReplyDeleteभावुक कर दिया आपने.
नग्न सत्य.
शायद, कोई अपना देख रहा हो,
ReplyDeleteजो पास उसके आ जाये,
और गोदी में उसे उठा कर,
बस, मां के पास ले जाये।
बस, मां के पास.............
..........
bahut sundar.
भावुक अति भावुक, मार्मिक!
ReplyDeleteमां...आ...मां...आ...का रूदन करता वो
ReplyDeleteसिर्फ़ और सिर्फ़ एक शब्द कहूंगा " कमाल"
शुभकामनाएं !