Monday, July 14, 2008

ये वो जिन्दगी......

विराने में कंही खो गई थी,

शायद ये वो जिन्दगी थी,
जो उदास बैठी, कंही रो रही थी।
रेत के समन्दर में, जिसका घरौंदा था,
समय की आन्धियों ने जिसको,
बार-बार, पैरों तले रौंदा था,
आज फिर वो, आशियाने की तलाश में थी,
आज फिर वो, मस्ती में थी, बहार में थी,
आज फिर उसकी आखों में, नमी थी खुशी की,
आज फिर वो, किसी के इंतज़ार में थी,
नन्हें सपनों को जिसने, आखों में संजोया था,
अपनी खुशियों को जिसने, बार-बार खोया था,
आखों में सपने लिए, आज फिर वो राह में खङी थी,
उसकी आखों में आंसू नहीं,.....
टूटे सपनों की बिखरती लङी थी,
दर्द की स्याही से, जिसने कहानी लिखी थी,
बीते लम्हों की दास्तां, बेजुबानी कही थी,
आज फिर उसकी कहानी में, नया मोङ आया था,
कांटों में जैसे, गुलाब का फूल खिल आया था,
रात भी तारों की लङी लेकर आई थी,
शायद आज फिर, उसकी किस्मत मुस्कुराई थी,
इन्तजार की घङीयां खत्म हुई, परछाई साफ हो गई,
शायद “तारिका” जिन्दगी तेरी,.......
एक प्यारा-सा ख़ाब हो गई।

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प्रीती बङथ्वाल “तारिका”








3 comments:

  1. Considering the fact that it could be more accurate in giving informations.

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  2. शायद आज फिर, उसकी किस्मत मुस्कुराई थी,
    इन्तजार की घङीयां खत्म हुई, परछाई साफ हो गई,
    शायद “तारिका” जिन्दगी तेरी,.......
    एक प्यारा-सा ख़ाब हो गई।

    --bahut sunder.

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  3. kashmakash nazar aata hain kavita mein...par tarika-e-anjam behtarin tha...

    शायद “तारिका” जिन्दगी तेरी,
    एक प्यारा-सा ख़ाब हो गई।

    bahot khub...

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