मुझसे मेरी तन्हाइयों के,
खाब भी भुलाये न गए,
दिल में जो ज़ख्म थे,
आखों से छुपाए न गए,
महफिलों में रहकर भी,
जिन्हें भूलना चाहा,
यादें ऐसी थी कि,
जो भूल कर भी भुलाये न गए।
टीस के मोती बन गये हैं,
दिल के आस-पास,
अब वो तूफान उबल रहे हैं,
दिल के आस-पास,
जिनकी रूहों को हमने,
तारीक़ में छुपाया,
मगर फिर भी वो,
हमसे छुपाये न गए,
यादें ऐसी थी कि,
जो भूल कर भी भुलाये न गए।
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खाब भी भुलाये न गए,
दिल में जो ज़ख्म थे,
आखों से छुपाए न गए,
महफिलों में रहकर भी,
जिन्हें भूलना चाहा,
यादें ऐसी थी कि,
जो भूल कर भी भुलाये न गए।
टीस के मोती बन गये हैं,
दिल के आस-पास,
अब वो तूफान उबल रहे हैं,
दिल के आस-पास,
जिनकी रूहों को हमने,
तारीक़ में छुपाया,
मगर फिर भी वो,
हमसे छुपाये न गए,
यादें ऐसी थी कि,
जो भूल कर भी भुलाये न गए।
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प्रीती बङथ्वाल "तारीका"
dil me jo zakhm the......wah kya baat hai
ReplyDeleteवाह बहुत खूब!
ReplyDeletebahut accha likha hai
ReplyDeletekya baat hai, dil ke jakhm chupaye na gaye....
ReplyDeleteIsn't it Barthwal basically from Uttaranchal? Am I right.
बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteमुझसे मेरी तन्हाइयों के,
खाब भी भुलाये न गए,
दिल में जो ज़ख्म थे,
आखों से छुपाए न गए,
वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.
ReplyDeleteab ham bhee na bhool payenge
ReplyDeletebehatareen
जिनकी रूहों को हमने,
ReplyDeleteतारीक़ में छुपाया,
मगर फिर भी वो,
हमसे छुपाये न गए,
बेहद खूबसूरत....
वाह! क्या बात है! बढ़िया कविता!
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