Friday, August 22, 2008

जो मेरा नाम लिखा करता था


वो आईना,
जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था,
अपने हाथों पे जो,
मेरा नाम लिखा करता था,
जाने कहां गई ,वो,
लकीरें मेरे हाथों से,
जिन लकीरों को,
वो हर शाम पढ़ा करता था।
अब शाम क्या,
सहर भी तन्हा थी,
रात की आंखों में सिर्फ,
डूबी हुई दास्तां थी,
गुम हुई है या वो,
मेरी आंखों का धोखा था,
अपनी ख्वाहिशों में क्या,
स्वप्न तस्वीरें डुबोता था,
वो आईना,
जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था।
....................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका "

26 comments:

  1. Well for me its better to be more realistic.

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  2. Thanks. Im Inspired again.

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  3. अपनी ख्वाहिशों में क्या,
    स्वप्न तस्वीरें डुबोता था,
    bahut acha likha hai...
    very painful...
    drd mahsus hota hai padh kar...
    keep it up

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  4. अब शाम क्या,
    सहर भी तन्हा थी,
    रात की आंखों में सिर्फ,
    डूबी हुई दास्तां थी,


    बहुत गहराई से कही गई है बात !
    शुभकामनाएं !

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  5. वो आईना,
    जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था,
    अपने हाथों पे जो,
    मेरा नाम लिखा करता था,
    जाने कहां गई ,वो,
    लकीरें मेरे हाथों से,
    जिन लकीरों को,
    वो हर शाम पढ़ा करता था।
    बहुत खूब ...लिखा है आप ने .अच्छा लगा पढ़ के शुक्रिया ..

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  6. jaane kahan gai,wo, lakeern mere hathon se............ bahut sunder

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  7. प्रीती जी बहुत ही सुंदर रचना, सुंदर...अति उत्तम।।

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  8. Preeti ji bhut sundar sachhai ko likha hai. aapki rachanaye bhut achhi hai. kisi din fursat se baith kar achhe se padhugi. kuch tabiyat kharab hone ki vajah se aap ko tipani karne me bhi late ho gayi. aap jari rhe.

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  9. वो आईना,
    जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था।

    क्या कमाल की बात की, वाह!

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  10. वो आईना,
    जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था,
    अपने हाथों पे जो,
    मेरा नाम लिखा करता था,
    जाने कहां गई ,वो,
    लकीरें मेरे हाथों से,
    जिन लकीरों को,
    वो हर शाम पढ़ा करता था।
    achha likha hai. badhayi

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  11. वो आईना,
    जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था।


    -वाह! बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.

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  12. अच्छा लिखा है.

    "तसव्वुरात की परछाइयां उभरती हैं ... कभी गुमान की सूरत, कभी यकीं की तरह ....."

    बहुत खूब !!

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  13. लिखा अच्छा है लेकिन उदासी की झलक भी।

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  14. तारिका को तो चमकते ( प्रफुल्लित रहना चाहिए फिर यह उदास सी रचना क्यों भला,
    वैसे है बढ़िया इसमे कोई शक नही।

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  15. well said ...quite similar to one written by gulzar.

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  16. आपका ब्लाग अच्छा है प्रीति ! इसके शीर्षक को भी देवनागरी में बदल लें तो और सुंदर दिखेगा - इस लिंक से आप यह कर सकती हैं -

    http://www.rajneesh-mangla.de/unicode.php

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  17. रात की आंखों में सिर्फ,
    डूबी हुई दास्तां थी,
    गुम हुई है या वो,
    मेरी आंखों का धोखा था,
    bahut achcha hai...

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  18. जाने कहां गई ,वो,
    लकीरें मेरे हाथों से,
    जिन लकीरों को,
    वो हर शाम पढ़ा करता था।...


    किन यादों की ओर खींच कर ले गयीं आप ?
    इन लाइनों को पढ़कर एक दर्द उभर आया है...अच्छी कविता।

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  19. परिवार एवं इष्ट मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की
    बधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी
    समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना
    कृष्ण-कन्हैया से है !

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  20. अब शाम क्या,
    सहर भी तन्हा थी,
    रात की आंखों में सिर्फ,
    डूबी हुई दास्तां थी,
    गुम हुई है या वो,
    मेरी आंखों का धोखा था,
    अपनी ख्वाहिशों में क्या,
    स्वप्न तस्वीरें डुबोता था,
    वो आईना,
    जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था।

    bahut bahut dilkash nazm....

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  21. जाने कहां गई ,वो,
    लकीरें मेरे हाथों से

    बहुत खूब! Looks like right time to get new ones!

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  22. वो आईना,
    जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था,
    अपने हाथों पे जो,
    मेरा नाम लिखा करता था,

    बहुत अच्छी रचना है !!!

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  23. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।

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  24. bahut hi sundar aur dard bhari rachana.
    asha hai aapki agli rachnao me bhi ye sundarta kayam rahegi

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