मैंने हमेशा तुझे,
इस जिंदगी में खुश ही देखा,
या तेरी रहगुजर में,
दुःखों को तलाशा ही नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
जब कभी शाम की तन्हाई में,
तू रहा भी हो,
मैने अपनी तन्हाई में,
तुझको पुकारा भी नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
जाने क्यों?...अपने से ही,
छुपा रही हूं तुझको,
तू मेरे पास है,
और मैं इंकार कर रही हूं,
अपने यंकी को यंकी न होने दूं,
कि मैं तेरा इंतजार कर रही हूं।
सुन रहीं हैं, ये हवाएं और फिज़ा,
मेरा कहना,
और खुद मुझको,
इसका एहसास भी नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
..........
इस जिंदगी में खुश ही देखा,
या तेरी रहगुजर में,
दुःखों को तलाशा ही नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
जब कभी शाम की तन्हाई में,
तू रहा भी हो,
मैने अपनी तन्हाई में,
तुझको पुकारा भी नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
जाने क्यों?...अपने से ही,
छुपा रही हूं तुझको,
तू मेरे पास है,
और मैं इंकार कर रही हूं,
अपने यंकी को यंकी न होने दूं,
कि मैं तेरा इंतजार कर रही हूं।
सुन रहीं हैं, ये हवाएं और फिज़ा,
मेरा कहना,
और खुद मुझको,
इसका एहसास भी नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
..........
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)
बहुत सुन्दरता से मन की बात लिखी है, प्रीति जी!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
saral shabdon me man kee bat, narayan narayan
ReplyDeleteसुन्दर! शानदार!
ReplyDeleteअच्छा शब्दों का जाल बुना है...अच्छी रचना लगी..धन्यवाद...
ReplyDeleteजाने क्यों?...अपने से ही,
ReplyDeleteछुपा रही हूं तुझको,
तू मेरे पास है,
और मैं इंकार कर रही हूं,
अपने यंकी को यंकी न होने दूं,
कि मैं तेरा इंतजार कर रही हूं।
बहुत सुन्दरता से मन की बात लिखी है
BAHOT HI KHUBSURATI SE HAK ADAA KIYA HAI AAPNE... BAHOT KHUB JI...
ReplyDeleteARSH
और मैं इंकार कर रही हूं,
ReplyDeleteअपने यंकी को यंकी न होने दूं,
कि मैं तेरा इंतजार कर रही हूं।,
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
रामराम.
bahut sunder rachana
ReplyDeleteachcha kikha hai...
ReplyDeleteये कहूं तो,
ReplyDeleteसच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
pahle se kamjor rahi ye rchna . ye mera apna vichar hai aanyatha na le . subhkamnaye
अच्छी रचना ...
ReplyDeleteअच्छा इसलिए नही कि आपने बहुत सुंदर ढंग से लिखा है बल्कि इसलिए क्योंकि इस लिख कर उसी तरह से दिल से छलकाया गया है जैसे सबकुछ कहके भी तुमने कुछ नही कहा ,अब मैं क्या कहूं
ReplyDeleteसच्चाई .....
ये कैसी प्रेम की ज्वाला जलाती है जो अंतर्मन
मिली मथुरा तो राधा मिल सकी न फिर कभी मोहन
यही है सत्य जीवन का यहां सबकुछ नही मिलता
कभी झूले नही मिलते कभी मिलता नही सावन
acchhi abhivaykti sahbdo me.
ReplyDeleteHi , was wondering if you are aware of the Delhi NCR IndiBlogger Meet 2009 scheduled for the 4th of April. Would be great if you can make it and blog about the event too.
ReplyDeletePlease send in your ideas for the agenda in the comments section.
RSVP - http://www.indiblogger.in/bloggermeet.php?id=33
Cheers,
Anwin
IndiBlogger.in
सुन रहीं हैं, ये हवाएं और फिज़ा,
ReplyDeleteमेरा कहना,
और खुद मुझको,
इसका एहसास भी नहीं,
... अतिसुन्दर।
सच भी है और झूठ भी है,
ReplyDeleteतुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
very nice
ReplyDeletei like this thod