मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां,
रेखाओं में छिपे जज़बात,
उस गुलाब की तरहां,
जिसकी हर पंखुङी,
दर्द के कांटों से बनी,
जिसके आंसू हैं,
प्यालों में शराब की तरहां,
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां।।
कहीं पर कुछ छूट गया,
और कहीं अफसाने हैं बने,
मासूम सूरत पे अभी तक,
गम के निशाने हैं बने,
उठता है हर ख्वाब जहां,
एक खु़मार की तरहां,
खुश्क पन्नों पे रहता है,
जो एक, किरदार की तरहां,
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां।।
............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र - साभार गूगल)
अच्छा है!
ReplyDeleteप्रीति जी बहुत ही मनोहारी छवि वाली रचना है
ReplyDeleteaapki rachna kee tarif ke liye naye shabd khoj raha hu. tab tak narayan narayan
ReplyDeleteaccha laga koi garhwali itni achi kavitayen likhti aur wo bhi koi mahila
ReplyDeleteमेरा हर शब्द है,
ReplyDeleteमेरी ही किताब की तरहां,
रेखाओं में छिपे जज़बात,
उस गुलाब की तरहां,
प्रीती जी
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना . आभार
बहुत ही बढ़िया कविता
ReplyDelete""खुश्क पन्नों पे रहता है,
जो एक, किरदार की तरहा""
कहीं कहीं तो कविता बहुत गहरी है और कहीं अल्हड़, आप बहुत ही अच्छा लिख रही हैं जारी रखिए।
और यह कविता है आपकी तरह।
ReplyDeletebahut bhavpurna rachna.
ReplyDeleteउठता है हर ख्वाब जहां,
ReplyDeleteएक खु़मार की तरहां,
खुश्क पन्नों पे रहता है,
जो एक, किरदार की तरहां,
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां।।
क्या खूब लिखा है आपने...
बहुत सुंदर...अभिव्यक्ति...
मीत
बेहद भावपुर्ण रचना.
ReplyDeleteरामराम.
मेरा हर शब्द है,
ReplyDeleteमेरी ही किताब की तरहां।।
.........
हमेशा की तरह एक करीबी एहसास....
खुश्क पन्नों पे रहता है,
ReplyDeleteजो एक, किरदार की तरहां,
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां।।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता। अच्छी लगी।
मनमोहक है जी ....
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
एक भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteउठता है हर ख्वाब जहां,
एक खु़मार की तरहां,
खुश्क पन्नों पे रहता है,
जो एक, किरदार की तरहां,
लाजवाब। काफी दिनों के बाद नजर आई आपकी रचना।
उठता है हर ख्वाब जहां,
ReplyDeleteएक खु़मार की तरहां,
खुश्क पन्नों पे रहता है,
जो एक, किरदार की तरहां,
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां।।
achha hai preeti ji....par udaasi ??
कभी शब्दों में गहराई है
ReplyDeleteकभी उदासी छाई है
इस सुनी हुई बगिया में
कभी खुशबु , कभी पतझड़ ,
कभी बहार ,कभी आवाज
खिलखिलाती आई है
चंचल तितली, मस्त पवन
शीतल जल ,चहकता मन ,
ये सब देख आस भर आई है
हमें अंधियारा उजाला लगे
शाम भी अब सबेरा लगे
जबसे एक परी
इस उजड़ी बगियाँ में आई है
कोमल कोमल स्पर्श उसके
अब दुःख भी सुख लगने लगे
हर जगह ऐसी खुशी छाई है
भावपूर्ण रचना........
rachna k liye bdhai priti ji..............
ReplyDeleteआप की रचनाये पड़कर मुझे तारीफ की लिए शब्द नहीं मिल रहे,
ReplyDeleteलकिन एक शैर याद आ रहा है शायद डॉ. बशीर बद्र का है.
एक गुलाब धूप की पत्तियों मे हरे रिबिन से बंधा हुआ,
आप का अंदाज नया न कहा हुआ न सुना हुआ.
सभी रचनाये अति सुंदर है .
bahut badhiya hia
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