Friday, March 6, 2009

मेरा हर शब्द है,...........


मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां,
रेखाओं में छिपे जज़बात,
उस गुलाब की तरहां,
जिसकी हर पंखुङी,
दर्द के कांटों से बनी,
जिसके आंसू हैं,
प्यालों में शराब की तरहां,
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां।।

कहीं पर कुछ छूट गया,
और कहीं अफसाने हैं बने,
मासूम सूरत पे अभी तक,
गम के निशाने हैं बने,
उठता है हर ख्वाब जहां,
एक खु़मार की तरहां,
खुश्क पन्नों पे रहता है,
जो एक, किरदार की तरहां,
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां।।

............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र - साभार गूगल)

19 comments:

  1. प्रीति जी बहुत ही मनोहारी छवि वाली रचना है

    ReplyDelete
  2. aapki rachna kee tarif ke liye naye shabd khoj raha hu. tab tak narayan narayan

    ReplyDelete
  3. accha laga koi garhwali itni achi kavitayen likhti aur wo bhi koi mahila

    ReplyDelete
  4. मेरा हर शब्द है,
    मेरी ही किताब की तरहां,
    रेखाओं में छिपे जज़बात,
    उस गुलाब की तरहां,
    प्रीती जी
    बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना . आभार

    ReplyDelete
  5. बहुत ही बढ़िया कविता
    ""खुश्क पन्नों पे रहता है,
    जो एक, किरदार की तरहा""

    कहीं कहीं तो कविता बहुत गहरी है और कहीं अल्हड़, आप बहुत ही अच्छा लिख रही हैं जारी रखिए।

    ReplyDelete
  6. और यह कविता है आपकी तरह।

    ReplyDelete
  7. उठता है हर ख्वाब जहां,
    एक खु़मार की तरहां,
    खुश्क पन्नों पे रहता है,
    जो एक, किरदार की तरहां,
    मेरा हर शब्द है,
    मेरी ही किताब की तरहां।।
    क्या खूब लिखा है आपने...
    बहुत सुंदर...अभिव्यक्ति...
    मीत

    ReplyDelete
  8. बेहद भावपुर्ण रचना.

    रामराम.

    ReplyDelete
  9. मेरा हर शब्द है,
    मेरी ही किताब की तरहां।।
    .........
    हमेशा की तरह एक करीबी एहसास....

    ReplyDelete
  10. खुश्क पन्नों पे रहता है,
    जो एक, किरदार की तरहां,
    मेरा हर शब्द है,
    मेरी ही किताब की तरहां।।

    बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता। अच्छी लगी।

    ReplyDelete
  11. एक भावपूर्ण रचना।
    उठता है हर ख्वाब जहां,
    एक खु़मार की तरहां,
    खुश्क पन्नों पे रहता है,
    जो एक, किरदार की तरहां,

    लाजवाब। काफी दिनों के बाद नजर आई आपकी रचना।

    ReplyDelete
  12. उठता है हर ख्वाब जहां,
    एक खु़मार की तरहां,
    खुश्क पन्नों पे रहता है,
    जो एक, किरदार की तरहां,
    मेरा हर शब्द है,
    मेरी ही किताब की तरहां।।

    achha hai preeti ji....par udaasi ??

    ReplyDelete
  13. कभी शब्दों में गहराई है
    कभी उदासी छाई है
    इस सुनी हुई बगिया में
    कभी खुशबु , कभी पतझड़ ,
    कभी बहार ,कभी आवाज
    खिलखिलाती आई है
    चंचल तितली, मस्त पवन
    शीतल जल ,चहकता मन ,
    ये सब देख आस भर आई है
    हमें अंधियारा उजाला लगे
    शाम भी अब सबेरा लगे
    जबसे एक परी
    इस उजड़ी बगियाँ में आई है
    कोमल कोमल स्पर्श उसके
    अब दुःख भी सुख लगने लगे
    हर जगह ऐसी खुशी छाई है

    भावपूर्ण रचना........

    ReplyDelete
  14. rachna k liye bdhai priti ji..............

    ReplyDelete
  15. आप की रचनाये पड़कर मुझे तारीफ की लिए शब्द नहीं मिल रहे,
    लकिन एक शैर याद आ रहा है शायद डॉ. बशीर बद्र का है.
    एक गुलाब धूप की पत्तियों मे हरे रिबिन से बंधा हुआ,
    आप का अंदाज नया न कहा हुआ न सुना हुआ.
    सभी रचनाये अति सुंदर है .

    ReplyDelete

मेरी रचना पर आपकी राय