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Monday, March 23, 2009

तुझको मैने याद किया है, और कुछ किया भी नहीं.......

मैंने हमेशा तुझे,
इस जिंदगी में खुश ही देखा,
या तेरी रहगुजर में,
दुःखों को तलाशा ही नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।


जब कभी शाम की तन्हाई में,
तू रहा भी हो,
मैने अपनी तन्हाई में,
तुझको पुकारा भी नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।

जाने क्यों?...अपने से ही,
छुपा रही हूं तुझको,
तू मेरे पास है,
और मैं इंकार कर रही हूं,
अपने यंकी को यंकी न होने दूं,
कि मैं तेरा इंतजार कर रही हूं।

सुन रहीं हैं, ये हवाएं और फिज़ा,
मेरा कहना,
और खुद मुझको,
इसका एहसास भी नहीं,
ये कहूं तो,
सच भी है और झूठ भी है,
तुझको मैने याद किया है,
और कुछ किया भी नहीं।
....
......
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)