Wednesday, May 20, 2009

मासूम-सा दिल है ऐ "तारिका".......

कितनी बदल गई तस्वीरें,
क्या थी खुशियां क्या थे गम,
खुद को ही न पहचान सके,
जब टकराये खुद से ही हम।


जब-जब याद करें वो लम्हें,
आंखें भूल गई ज्योती,
टूटे माला के मनको-सी,
टपक रहे मन के मोती।



सपने रह-रह तङपाते हैं,
अफसाने....बस बन जाते हैं,
जैसे कोरे कागज में रखी हो,
अपनी कोरी बात कोई।



दीवारों मे चिन जाए यादें,
कोई तो ऐसा जतन करें,
मासूम-सा दिल है,
बहल जाएगा, ऐ “तारिका”
फिर कुछ मीठा सुन करके।
.............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका "
(चित्र - साभार गूगल)

23 comments:

  1. जब-जब याद करें वो लम्हें,
    आंखें भूल गई ज्योती,
    टूटे माला के मनको-सी,
    टपक रहे मन के मोती।

    -बहुत सुन्दर!!

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  2. प्रश्न अनूठा सामने अपनी क्या पहचान।
    खुशी मिले गम से टकराकर बढ़ता है सम्मान।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. जैसे कोरे कागज में रखी हो,
    अपनी कोरी बात कोई।

    भावनाओ का सशक्त प्रयोग ----

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  4. bhut sundar bhavo ke sath rchi gai rchna
    bdhai.

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  5. वाह !! सुन्दर भावपूर्ण प्रवाहमयी रचना मन में उतर गयी.....वाह !!

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  6. बहुत सुंदर और गहरे भाव. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. बहुत खूब मैम..."खुद को ही न पहचान सके,
    जब टकराये खुद से ही हम"

    चुस्त छंद में सुंदर रचना

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  8. vicharon ki abhivyakti bahut hi sundar hai.

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  9. कितनी बदल गई तस्वीरें,
    क्या थी खुशियां क्या थे गम,
    खुद को ही न पहचान सके,
    जब टकराये खुद से ही हम।...high emotions...

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  10. बहुत सुंदर और गहरे भाव

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  11. भावपूर्ण,अति सुंदर रचना,

    भाव भारी इस रचना को,
    सागर की संरचना को,
    "खुद को ही न पहचान सके,
    जब टकराये खुद से ही हम।"
    कितना अच्छा भाव दिया है,
    जितना बोलूं उतना कम|

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  12. namaskar ,

    aapne itni acchi baat likhi hai ki kya kahun .. virah ke saare rang maujud hai aapki kavita men..

    itni acchi kavita ke liye badhai ..

    meri nayi kavita padhiyenga , aapke comments se mujhe khushi hongi ..

    www.poemsofvijay.blogspot.com

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  13. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ और यकीन जानिए अच्छा लग रहा है................कवितायें सुंदर भावाभिव्यक्ति से परिपूर्ण हैं. स्वयं भी थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ....इसलिए कह रहा हूँ....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  14. Preeti ji, main yaha aaj pehli baar aayi, man prasann ho gaya aapki rachna padh ke. Bahut hi sunder kavita hai.

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  15. बहुत सुन्दर अभिवयक्ति

    "जब-जब याद करें वो लम्हें,
    आंखें भूल गई ज्योती,
    टूटे माला के मनको-सी,
    टपक रहे मन के मोती"
    शुभकामनाओ सहित
    www.barthwal-barthwal.blogspot.com

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  16. दीवारों मे चिन जाए यादें,
    कोई तो ऐसा जतन करें,
    मासूम-सा दिल है,
    बहल जाएगा, ऐ “तारिका”
    फिर कुछ मीठा सुन करके।
    बेहद खूबसूरत...
    मीत

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  17. दिल की बातों को बखूबी बयां किया है आपने। बधाई।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  18. खुद को ही न पहचान सके,
    जब टकराये खुद से ही हम।
    बहुत सुन्दर पन्क्तियां हैं |
    बधाई।

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  19. BAHUT HI GEHRE BHAVON KE SATH LIKHI GAI RACHNA ........

    EK EK SHABD BOLTA HAI.

    BAHUT HI UMDA LEKHNI.......
    अक्षय-मन

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  20. सपने रह-रह तङपाते हैं,
    अफसाने....बस बन जाते हैं,
    जैसे कोरे कागज में रखी हो,
    अपनी कोरी बात कोई।

    BAHUT BADHIYA KRITI HAI....

    ITNI SUNDAR KRITI K LIYE SADHUVAAD...

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