Monday, May 18, 2009

देखो-देखो ये महाकाल..........

नेताओं ने, फेंका जाल,
फसी है जनता, बुरे हाल,
महंगाई की, पङी है मार,
देखो-देखो, ये महाकाल।


लूटपाट का, बना माहोल,
बाद में लूटे, पहले मांगे वोट,
बाहर खोलें, एक दूजे की पोल,
अन्दर सबका, डब्बा गोल।


तुम भी पेट भरो रे भैया,
हम भी माल दबायेंगे,
जनता भोली बहकादेंगे,
मिलके माल उङायेंगे।
...........
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)

16 comments:

  1. अभी देखते चलो..

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  2. तुम भी पेट भरो रे भैया,
    हम भी माल दबायेंगे,
    जनता भोली बहकादेंगे,
    मिलके माल उङायेंगे।
    बिलकुल सच लिखा है...
    मीत

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  3. हा हा !! आपने तो पहचान लिया इनको :)

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  4. बेजोड़ अभिव्यक्ति....
    :-)

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  5. वोट तो ले लिया है अब लूटना बाकी है थोडा आराम करने के बाद ये महा कार्य भी शुरू होगा ही

    सुन्दर कविता
    वीनस केसरी

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  6. बहुत ही चुटीली अभिव्यक्ति.

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  7. अच्छा कटाक्ष, सही लिखा है आपने।

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  8. वाह, क्या सही लिखा है!
    घुघूती बासूती

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