नेताओं ने, फेंका जाल,
फसी है जनता, बुरे हाल,
महंगाई की, पङी है मार,
देखो-देखो, ये महाकाल।
लूटपाट का, बना माहोल,
बाद में लूटे, पहले मांगे वोट,
बाहर खोलें, एक दूजे की पोल,
अन्दर सबका, डब्बा गोल।
तुम भी पेट भरो रे भैया,
हम भी माल दबायेंगे,
जनता भोली बहकादेंगे,
मिलके माल उङायेंगे।
फसी है जनता, बुरे हाल,
महंगाई की, पङी है मार,
देखो-देखो, ये महाकाल।
लूटपाट का, बना माहोल,
बाद में लूटे, पहले मांगे वोट,
बाहर खोलें, एक दूजे की पोल,
अन्दर सबका, डब्बा गोल।
तुम भी पेट भरो रे भैया,
हम भी माल दबायेंगे,
जनता भोली बहकादेंगे,
मिलके माल उङायेंगे।
...........
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)
अभी देखते चलो..
ReplyDeletewaah ...kya likha hai :)
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
तुम भी पेट भरो रे भैया,
ReplyDeleteहम भी माल दबायेंगे,
जनता भोली बहकादेंगे,
मिलके माल उङायेंगे।
बिलकुल सच लिखा है...
मीत
BAHOT KHUB KAHI AAPNE... WAAH
ReplyDeleteARSH
sach jankar khushhi huii
ReplyDeletegood one. Try to write something new .. Good luck
ReplyDeleteBahut sahi kaha...
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteहा हा !! आपने तो पहचान लिया इनको :)
ReplyDeleteबेजोड़ अभिव्यक्ति....
ReplyDelete:-)
वोट तो ले लिया है अब लूटना बाकी है थोडा आराम करने के बाद ये महा कार्य भी शुरू होगा ही
ReplyDeleteसुन्दर कविता
वीनस केसरी
बहुत ही चुटीली अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअच्छा कटाक्ष, सही लिखा है आपने।
ReplyDeletesahee hai.
ReplyDeletebilkul sach kaha aapne....
ReplyDeleteवाह, क्या सही लिखा है!
ReplyDeleteघुघूती बासूती