नेताओं ने, फेंका जाल,
फसी है जनता, बुरे हाल,
महंगाई की, पङी है मार,
देखो-देखो, ये महाकाल।
लूटपाट का, बना माहोल,
बाद में लूटे, पहले मांगे वोट,
बाहर खोलें, एक दूजे की पोल,
अन्दर सबका, डब्बा गोल।
तुम भी पेट भरो रे भैया,
हम भी माल दबायेंगे,
जनता भोली बहकादेंगे,
मिलके माल उङायेंगे।
फसी है जनता, बुरे हाल,
महंगाई की, पङी है मार,
देखो-देखो, ये महाकाल।
लूटपाट का, बना माहोल,
बाद में लूटे, पहले मांगे वोट,
बाहर खोलें, एक दूजे की पोल,
अन्दर सबका, डब्बा गोल।
तुम भी पेट भरो रे भैया,
हम भी माल दबायेंगे,
जनता भोली बहकादेंगे,
मिलके माल उङायेंगे।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)