कितनी बदल गई तस्वीरें,
क्या थी खुशियां क्या थे गम,
खुद को ही न पहचान सके,
जब टकराये खुद से ही हम।
क्या थी खुशियां क्या थे गम,
खुद को ही न पहचान सके,
जब टकराये खुद से ही हम।
जब-जब याद करें वो लम्हें,
आंखें भूल गई ज्योती,
टूटे माला के मनको-सी,
टपक रहे मन के मोती।
सपने रह-रह तङपाते हैं,
अफसाने....बस बन जाते हैं,
जैसे कोरे कागज में रखी हो,
अपनी कोरी बात कोई।
दीवारों मे चिन जाए यादें,
कोई तो ऐसा जतन करें,
आंखें भूल गई ज्योती,
टूटे माला के मनको-सी,
टपक रहे मन के मोती।
सपने रह-रह तङपाते हैं,
अफसाने....बस बन जाते हैं,
जैसे कोरे कागज में रखी हो,
अपनी कोरी बात कोई।
दीवारों मे चिन जाए यादें,
कोई तो ऐसा जतन करें,
मासूम-सा दिल है,
बहल जाएगा, ऐ “तारिका”
फिर कुछ मीठा सुन करके।
बहल जाएगा, ऐ “तारिका”
फिर कुछ मीठा सुन करके।
.............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका "
(चित्र - साभार गूगल)
जब-जब याद करें वो लम्हें,
ReplyDeleteआंखें भूल गई ज्योती,
टूटे माला के मनको-सी,
टपक रहे मन के मोती।
-बहुत सुन्दर!!
प्रश्न अनूठा सामने अपनी क्या पहचान।
ReplyDeleteखुशी मिले गम से टकराकर बढ़ता है सम्मान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जैसे कोरे कागज में रखी हो,
ReplyDeleteअपनी कोरी बात कोई।
भावनाओ का सशक्त प्रयोग ----
bahut beautiful poem hai
ReplyDeletebhut sundar bhavo ke sath rchi gai rchna
ReplyDeletebdhai.
वाह !! सुन्दर भावपूर्ण प्रवाहमयी रचना मन में उतर गयी.....वाह !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहरे भाव. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब मैम..."खुद को ही न पहचान सके,
ReplyDeleteजब टकराये खुद से ही हम"
चुस्त छंद में सुंदर रचना
vicharon ki abhivyakti bahut hi sundar hai.
ReplyDeleteकितनी बदल गई तस्वीरें,
ReplyDeleteक्या थी खुशियां क्या थे गम,
खुद को ही न पहचान सके,
जब टकराये खुद से ही हम।...high emotions...
बहुत सुंदर और गहरे भाव
ReplyDeleteI like it.
ReplyDeleteभावपूर्ण,अति सुंदर रचना,
ReplyDeleteभाव भारी इस रचना को,
सागर की संरचना को,
"खुद को ही न पहचान सके,
जब टकराये खुद से ही हम।"
कितना अच्छा भाव दिया है,
जितना बोलूं उतना कम|
namaskar ,
ReplyDeleteaapne itni acchi baat likhi hai ki kya kahun .. virah ke saare rang maujud hai aapki kavita men..
itni acchi kavita ke liye badhai ..
meri nayi kavita padhiyenga , aapke comments se mujhe khushi hongi ..
www.poemsofvijay.blogspot.com
Sunder Kavita....Badhai...
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ और यकीन जानिए अच्छा लग रहा है................कवितायें सुंदर भावाभिव्यक्ति से परिपूर्ण हैं. स्वयं भी थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ....इसलिए कह रहा हूँ....
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
Preeti ji, main yaha aaj pehli baar aayi, man prasann ho gaya aapki rachna padh ke. Bahut hi sunder kavita hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिवयक्ति
ReplyDelete"जब-जब याद करें वो लम्हें,
आंखें भूल गई ज्योती,
टूटे माला के मनको-सी,
टपक रहे मन के मोती"
शुभकामनाओ सहित
www.barthwal-barthwal.blogspot.com
दीवारों मे चिन जाए यादें,
ReplyDeleteकोई तो ऐसा जतन करें,
मासूम-सा दिल है,
बहल जाएगा, ऐ “तारिका”
फिर कुछ मीठा सुन करके।
बेहद खूबसूरत...
मीत
दिल की बातों को बखूबी बयां किया है आपने। बधाई।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
खुद को ही न पहचान सके,
ReplyDeleteजब टकराये खुद से ही हम।
बहुत सुन्दर पन्क्तियां हैं |
बधाई।
BAHUT HI GEHRE BHAVON KE SATH LIKHI GAI RACHNA ........
ReplyDeleteEK EK SHABD BOLTA HAI.
BAHUT HI UMDA LEKHNI.......
अक्षय-मन
सपने रह-रह तङपाते हैं,
ReplyDeleteअफसाने....बस बन जाते हैं,
जैसे कोरे कागज में रखी हो,
अपनी कोरी बात कोई।
BAHUT BADHIYA KRITI HAI....
ITNI SUNDAR KRITI K LIYE SADHUVAAD...