दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
जिसकी छाया में
सारे दिन की थकान,
छूमंतर हो जाती।
जिसके हाथों की गरमाहट,
माथे को सहलाती,
अपने होने का
एहसास कराती,
और हर मुश्किल
आसान हो जाती।
दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
कुछ कहने से पहले ही,
सब कुछ समझ जाती,
मन की इच्छाओं को,
भांप जाती,
गलती होने पर,
कभी डांटकर तो कभी, प्यार से समझाती,
दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
मां का आंचल।
जिसकी छाया में
सारे दिन की थकान,
छूमंतर हो जाती।
जिसके हाथों की गरमाहट,
माथे को सहलाती,
अपने होने का
एहसास कराती,
और हर मुश्किल
आसान हो जाती।
दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
कुछ कहने से पहले ही,
सब कुछ समझ जाती,
मन की इच्छाओं को,
भांप जाती,
गलती होने पर,
कभी डांटकर तो कभी, प्यार से समझाती,
दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)
bahot hi khubsurat kavita kahi hai aapne preetee ji... bahot bahot badhaayee aapko..achee lagee aapki ye kavita pahale ki tarah..
ReplyDeletearsh
माँ को समर्पित एक अच्छी कविता!
ReplyDeleteअच्छी कविता-बेहतर कविता........... सार्थक और सटीक कविता
ReplyDeleteमौदगिल साहब ने मन की बात कह दी. अच्छी रचना.
ReplyDeleteवाह बहुत अच्छी कविता माँ पर !
ReplyDeleteमाँ पर बहुत अच्छी सटीक कविता.
ReplyDeleteमाँ तो बस माँ है. बिन उसके सब सून
ReplyDeleteदिल ढूंढता है फिर वही,
ReplyDeleteमां का आंचल।
dil ko chhu lene wali kavita priti ji.badhaayee.
सुन्दर माँ को समर्पित अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteमातृ दिवस पर समस्त मातृ-शक्तियों को नमन एवं हार्दिक शुभकामनाऐं.
सामयिक और सुंदर कविता.
ReplyDeleteरामराम.
माँ के आँचल की तलाश हमेशा ही रहती है ..बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता आपने माँ को समर्पित की है
ReplyDeleteदिल को छुते हुए बहुत कोरे कोरे से शब्द...
ReplyDeleteसुंदर...
दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
मीत
माँ खुद एक नज़्म है....चलती फिरती...
ReplyDeleteकुछ कहने से पहले ही,
ReplyDeleteसब कुछ समझ जाती,
मन की इच्छाओं को,
भांप जाती,
गलती होने पर,
कभी डांटकर तो कभी, प्यार से समझाती,
दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
सच ये मां का आंचल ही है बहुत ही अच्छी रचना लिखी है आपने
bahut aachi rachnae hai, kabhi pahar ke is blog par bhi aao
ReplyDeletehttp://insideuttarakhand.blogspot.com