Friday, November 7, 2008

ये 'जरुरी' तो नहीं...

हम जो सोचे वही हो,
ये 'जरुरी' तो नहीं,
आज जो है वो कल भी हो,
ये 'जरुरी' तो नहीं।

सांसे कब किसे थाम ले,
जिन्दगी बन कर,
जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
ये 'जरुरी' तो नहीं।

खिले एक फूल जब,
भंवरा भी एक खिल जाता,
रात को बंद हो,
सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।

वो आईना जो,
हर सूरत को दिखलाता,
दिल भी दिखाये, 'तारिका'
ये 'जरुरी' तो नहीं।
.............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र - साभार गूगल)

24 comments:

  1. kyon udas ho jo koyal is bar na kuki bagiya me, gujar gya ye mousam to kya baki abhi madhumas bahut hain.
    narayan narayan

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  2. अच्छा लिखा है। बधाई!

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  3. सांसे कब किसे थाम ले,
    जिन्दगी बन कर,
    जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
    ये 'जरुरी' तो नहीं।


    -बहुत बढ़िया, ऐसे ही लिखती रहो..अच्छा लिख रही हो. शुभकामनाऐं.

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  4. खिले एक फूल जब,
    भंवरा भी एक खिल जाता,
    रात को बंद हो,
    सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।
    बहुत खूबसूरत ! शुभकामनाएं !

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  5. अच्‍छे भाव हैं-
    वो आईना जो,
    हर सूरत को दिखलाता,
    दिल भी दिखाये, 'तारिका'
    ये 'जरुरी' तो नहीं।

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  6. सुन्दर लेखन के लिए आपको ढेरो बधाई....

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  7. खिले एक फूल जब,
    भंवरा भी एक खिल जाता,
    रात को बंद हो,
    सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।

    बहुत उम्दा।

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  8. सुन्दर भावनात्मक रचना.. जिन्दगी के फ़लस्फ़े के करीब.

    पलकों पर भी चिराग जले हैं खुशी के साथ
    ऐसे भी कुछ मजाक हुये जिन्दगी के साथ
    यूं तो हजार गम थे मगर इस के बाबजूद
    उनका भी गम उठा लिया हमने खुसी के साथ

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  9. आपकी लिखावट बहुत सहजता लिए हुए होती है... बहुत बढ़िया...
    वैसे ये हेडर में जो तस्वीर है वो कहा की है? क्या जयपुर है?

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  10. हम जो सोचे वही हो,
    ये जरूरी तो नही,
    आज जो है... बहुत प्रभावशाली ,सुंदर लेखन के लिये बधाई...

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  11. वो आईना जो,
    हर सूरत को दिखलाता,
    दिल भी दिखाये, 'तारिका'
    ये 'जरुरी' तो नहीं।

    हाँ यह बात तो बिल्कुल सच है!

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  12. बहुत खुब ,अति सुन्दर.
    धन्यवाद

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  13. जगजीत सिंह की वो बेहतरीन गजल याद आ गई...
    उम्र जलवों में बसर हो ये जरूरी तो नही.....
    शेख झुककर करता तो है सजदे .उसकी दुआओं में असर हो ये जरूरी तो नही.....
    आपने वही से प्रेरणा ले कर लिखा है ?

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  14. हम जो सोचे वही हो,
    ये 'जरुरी' तो नहीं,
    आज जो है वो कल भी हो,
    ये 'जरुरी' तो नहीं।
    bahut sundar rachna.Badhaai.

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  15. सांसे कब किसे थाम ले,
    जिन्दगी बन कर,
    जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
    ये 'जरुरी' तो नहीं।
    bahut khoob...

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  16. लाजवाब अभिव्यक्ति...वाह...
    नीरज

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  17. वो आइना जो हर हसीं सूरत को दिखलाये
    ज़रूरी नहीं कि तारिका का दिल भी ललचाये

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  18. सांसे कब किसे थाम ले,
    जिन्दगी बन कर,
    जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
    ये 'जरुरी' तो नहीं।
    ऐसे ही लिखते रहिये
    सचमुच अद्भुत

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  19. प्रीती जी,
    सुंदर भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक आभार.
    निम्न पंक्तियाँ में भौरां कैद हो कर रह गया.....................

    खिले एक फूल जब,
    भंवरा भी एक खिल जाता,
    रात को बंद हो,
    सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  20. बहुत अच्छा िलखा है आपने । किवता में भाव की बहुत संुदर अिभव्यिक्त है । अपने ब्लाग पर मैने समसामियक मुद्दे पर एक लेख िलखा है । समय हो तो उसे भी पढे और अपनी राय भी दें
    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  21. Ye baat hai, Bahut behtar Taarika, ye huee na baat. Sahitya srujan men sahitya ke meethe ras ka paan karne milta hai na. Bahut sundar prastuti. Carry on.

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