ख्वाब और जिन्दगी दोनों,
साथ हैं मगर,
रास्ते दोनों के,
जुदा हो गये,
एक बन्द आंखों के तले,
हंसते थे,
दूसरे खुली पलकों पे,
फिदा हो गये,
फिर भी रास्ते दोनों के,
क्यों जुदा हो गये।
.............
साथ हैं मगर,
रास्ते दोनों के,
जुदा हो गये,
एक बन्द आंखों के तले,
हंसते थे,
दूसरे खुली पलकों पे,
फिदा हो गये,
फिर भी रास्ते दोनों के,
क्यों जुदा हो गये।
.............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र-सभार गुगल )
ख्वाब और जिन्दगी दोनों,
ReplyDeleteसाथ हैं मगर,
रास्ते दोनों के,
जुदा हो गये,
kitna khoobsurat likha hai
बहुत कमाल की रचना...लाजवाब भावः...आप के ब्लॉग पर आना हमेशा अच्छा लगता है....जल महल का चित्र घर की याद दिलाता है...
ReplyDeleteनीरज
फिर भी रास्ते दोनों के,
ReplyDeleteक्यों जुदा हो गये।
बड़ा दार्शनिक सवाल है ! जहाँ एक खत्म होता है , दूसरा वहाँ से शुरू होता है !
बहुत सुंदर रचना ! बधाई !
अहसास का समंदर है आपकी रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन..
बधाई.
कुछ सवालों के जवाब नहीं होते!
ReplyDeletesweet and simple. :)
ReplyDeleteएक बन्द आंखों के तले,
ReplyDeleteहंसते थे,
दूसरे खुली पलकों पे,
फिदा हो गये,
कमल की बात कही है आपने बहोत सुंदर भाव ...
कच्चे धागों के रिश्तों को साफगोई के साथ बयां किया है आपने। सवाल है लेकिन जबाव भी इसी के इर्द-गिर्द है।
ReplyDeleteएक छोटी सी कविता, लेकिन हक्कीकत के कितने पास.बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteधन्यवाद
गागर में सागर भर दिया है आपने...
ReplyDeleteवाह!! बहुत खूब!!
ReplyDeleteरास्ते बस जुदा हैं-मंजिल एक ही है. :)
bahut khoob, sundar rachna hai
ReplyDeletepushp
achchha lagaa aapki rachna padhke,
ReplyDeletechhoti lekin mahatvpoorn
aapka
vijay tiwari kislay
वाह वाह तारिका जी (अब हम प्रीतीजी नहीं कहेंगे) बहुत खूब रचना बन पड़ी है. क्या कहना !
ReplyDeleteमगर यदि और असरदार करना हो और आप बुरा न माने तो इसे इस तरह कह कर देखिये ज़रा ---
ख़्वाब और हक़ीक़त हैं दोस्त मगर, रास्ते दोनों के जुदा हो गऐ.
ये मुंदी पलकों के तले हँसते थे, वो खुली पलकों पे फ़िदा हो गऐ.
"तारिका" इस बात पे हैरान है के, क्यूँ ये दोनों यूँ अलहदा हो गऐ.
अच्छा लगा के नहीं ? बतलाइएगा ! यदि हाँ, तो बिना झिझक पोस्ट पर फिर चढ़ाइएगा.
---आपका बवाल
सुन्दर।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब। कम शब्दों में बहुत कुछ कह देती है आप।
ReplyDeleteख्वाब और जिन्दगी दोनों,
साथ हैं मगर,
रास्ते दोनों के,
जुदा हो गये,
इनके रास्ते क्यों जुदा हो गए,सही प्रशन हैं पर उत्तर कहाँ हैं ?बहुत ही सुंदर रचना .
ReplyDeleteआपने बहूत सुंदर लिखा है धन्यवाद जो आपने मेरा ब्लॉग पड़ा आप मेरा समय बदल रह है जरूर पढिये गा और अपनी राय दिजेयगा
ReplyDeleteरास्ते जुदा हुए इसलिए...
ReplyDeleteक्योंकि ज़िन्दगी ख्वाब है, ख्वाब है ज़िन्दगी...
एक की मंजिल है मौत और दूसरे को टूटना है
bahut sundar Preeti ji
ReplyDeleteNew Post :
खो देना चहती हूँ तुम्हें..
एक बन्द आंखों के तले,
ReplyDeleteहंसते थे,
दूसरे खुली पलकों पे,
फिदा हो गये,
अत्यन्त दिल को छूने वाली रचना
milna-bichhudna,roshani-andhera,din-rat, sukh- dukh, yog-viyog. zindgi ko khubsurat banae ke alag alag nam hai. kalyan ho balike
ReplyDeletenarayan narayan
ख्वाब और जिन्दगी दोनों,
ReplyDeleteसाथ हैं मगर,
रास्ते दोनों के,
जुदा हो गये,
एक बन्द आंखों के तले,
हंसते थे,
दूसरे खुली पलकों पे,
फिदा हो गये,
फिर भी रास्ते दोनों के,
क्यों जुदा हो गये।
Bahut achcha likha hai.Badhai.
guptasandhya.blogspot.com
zindagi ek khwaab hai ya kwaab hai ye zindagi...
ReplyDeletesawalon pe sawal hain kya sirf sawal hai ye zindagi....
bahut hi sundar likha hai..
ek anjana sa dost akshay-mann
हा..हा...हा..हा...मगर ख्वाब और जिन्दगी एक साथ कहाँ हैं......ख़्वाबों को कहीं और जाना होता है...और जिन्दगी तो खैर.....मगर विचार भी खुबसूरत से ख़्वाबों की तरह आते हैं....और प्यारा सा कोई पैगाम देकर चले जाते हैं....जिन्दगी चलती रहती है.....और ख्वाब ...भटकते.....हा..हा...हा..हा.....बुरा ना माने...होली नहीं है......
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