पाप करो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो,
खाओ पियो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
ऐश करो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो,
गंद करो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
शहर का कचरा लाकर,
गंगा मैया पर छोङ दो,
फूंक दो मुझको, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो,
हर-हर गंगे बोल, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
गंगा मैया पर छोङ दो,
खाओ पियो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
ऐश करो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो,
गंद करो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
शहर का कचरा लाकर,
गंगा मैया पर छोङ दो,
फूंक दो मुझको, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो,
हर-हर गंगे बोल, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
...............
प्रीती बङथ्वाल ‘तारिका’
(चित्र-साभार गूगल)
अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteशहर के सारे गंदे नालों को,
गंगा मैया से जोड़ दो।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत जोरदार कटाक्ष ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteयथार्थ के बिल्कुल करीब. बनारस में रहकर गंगा की दुर्दशा मैंने भी देखी है और 'भड़ास' के माध्यम से उसे व्यक्त भी किया है.
ReplyDeleteस्वागत आपका मेरे ब्लॉग पर भी.
हर-हर गंगे बोल, बाकि,
ReplyDeleteगंगा मैया पर छोङ दो।।
its really truth...
good keep it up...
बहुत सही, गंगा मैय्या की जय!
ReplyDeletebahut sunder rachna hai aapki......blog bhi bahut sunder hai.. badhai
ReplyDeleteगंगा मैया की वास्तवित प्रस्तुति। आशा है अब गंगा मैया का राष्टीय नदी का दर्रजा देने से सुध्ार ोगा
ReplyDeleteशहर का कचरा लाकर,
ReplyDeleteगंगा मैया पर छोङ दो,
" very well said, nice thoughts.."
regards
pahli baar aapke blog par aaya aur aapki kavita padhi, achche bhav hain.
ReplyDeleteबहुत लाज़बाब व्यंग सरल शब्दों में गंभीर बात आपकी कविता शैल्ले अत्यन्त मनमोहक है
ReplyDelete=प्रदीप मनोरिया
09425132060
बहुत ही सुंदर लिखा आप ने .
ReplyDeleteधन्यवाद
bahut achcha kataksh.
ReplyDeleteबढ़िया लिखा
ReplyDeleteaapki soch bahut prabal hai........
ReplyDeleteप्रीति जी,
ReplyDeleteबुरे कामों का बुरा नतीजा तो भोगना ही पड़ेगा.
हर-हर गंगे बोल, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
कौन क्या कर्म कर रहा है, किस भावः से कर रहा है, गंगा मैया तो ये भी देखती रहती है. कालांतर में फल भी उसी के अनुरूप प्राप्त होते हैं.
कृष्ण ने भी गीता में कर्म को ही प्राथिमिकता दी है, फल कालांतर की वस्तु है.
गंगा मैया पवित्र रूप में ही उत्सर्जित होती है, और उसे गन्दा आज के तथाकथित पढ़े-लिखे, तथाकथित सभ्य कहलाने वाले, अर्थतंत्र के स्तम्भ बनने वाले औद्योगिक घरानों के कर्ता-धरता, शहरों की व्यवस्था को चलने वाले व्यवस्थापक, आदि ही तो इसके लिए जिम्मेदार हैं. इनमें से शायद ही कोई तबका अनपढ़ हो जिसे समझाने के जरूरत है.
गंगा मैया को गन्दा कह कर उसका मखौल भी तो यही तबका उडाता है.
बेचारे गाँव के श्रद्धालु आज भी गंगा मैया में बिना किसी गंदी भावना के लाखों की संख्या में स्नान करते हैं, सच्चे मन की श्रद्धा रखने वालों को ही तो गंगा मैया संरक्षण प्रदान करती है.ऐसे ही श्रद्धालु लोगसच्चे मन से उवाचते है हैं " हर-हर गंगे"
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत नपे तुले शब्दों में सटीक बात कही आपने ! धन्यवाद !
ReplyDeleteगंगा जैसी पावन नदी की व्यथा बहुत सार्थक रूप में बयां की है आपने...सच है हमने अपने स्वार्थ के चलते इश्वर के इस अनुपम उपहार की क्या दुर्गति की है...
ReplyDeleteनीरज
हर..हर..गंगे....भई आपने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा...कल हम भी गंगा नहाने जाने वाले थे...उससे पहले ही आपने हमारी पोल-पट्टी खोल दी...मगर आपको पता कैसे चला कि हम वहाँ जाने वाले है......बहुत ही सरल मगर पैनी कविता लिखी है आपने...(सॉरी छूरी मारी है आपने....)
ReplyDeleteउपरोध वाक़ई पुख़्ता पेश किया हैं। दुर्भाग्यवश आज हालात यूं है, की जो जी में आया करों और गंगामैय्या पर छोड़ दो। शायद गंगामैय्या को आवाज़ होती तो बाक़ायदा इन्ही लब्ज़ोंमें अपनी व्यथा बयां करती।
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