हम जो सोचे वही हो,
ये 'जरुरी' तो नहीं,
आज जो है वो कल भी हो,
ये 'जरुरी' तो नहीं।
सांसे कब किसे थाम ले,
जिन्दगी बन कर,
जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
ये 'जरुरी' तो नहीं।
खिले एक फूल जब,
भंवरा भी एक खिल जाता,
रात को बंद हो,
सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।
वो आईना जो,
हर सूरत को दिखलाता,
दिल भी दिखाये, 'तारिका'
ये 'जरुरी' तो नहीं।
ये 'जरुरी' तो नहीं,
आज जो है वो कल भी हो,
ये 'जरुरी' तो नहीं।
सांसे कब किसे थाम ले,
जिन्दगी बन कर,
जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
ये 'जरुरी' तो नहीं।
खिले एक फूल जब,
भंवरा भी एक खिल जाता,
रात को बंद हो,
सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।
वो आईना जो,
हर सूरत को दिखलाता,
दिल भी दिखाये, 'तारिका'
ये 'जरुरी' तो नहीं।
.............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र - साभार गूगल)
kyon udas ho jo koyal is bar na kuki bagiya me, gujar gya ye mousam to kya baki abhi madhumas bahut hain.
ReplyDeletenarayan narayan
अच्छा लिखा है। बधाई!
ReplyDeleteसांसे कब किसे थाम ले,
ReplyDeleteजिन्दगी बन कर,
जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
ये 'जरुरी' तो नहीं।
-बहुत बढ़िया, ऐसे ही लिखती रहो..अच्छा लिख रही हो. शुभकामनाऐं.
खिले एक फूल जब,
ReplyDeleteभंवरा भी एक खिल जाता,
रात को बंद हो,
सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।
बहुत खूबसूरत ! शुभकामनाएं !
अच्छे भाव हैं-
ReplyDeleteवो आईना जो,
हर सूरत को दिखलाता,
दिल भी दिखाये, 'तारिका'
ये 'जरुरी' तो नहीं।
सुन्दर लेखन के लिए आपको ढेरो बधाई....
ReplyDeleteबहुत खूब्।
ReplyDeleteखिले एक फूल जब,
ReplyDeleteभंवरा भी एक खिल जाता,
रात को बंद हो,
सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।
बहुत उम्दा।
सुन्दर भावनात्मक रचना.. जिन्दगी के फ़लस्फ़े के करीब.
ReplyDeleteपलकों पर भी चिराग जले हैं खुशी के साथ
ऐसे भी कुछ मजाक हुये जिन्दगी के साथ
यूं तो हजार गम थे मगर इस के बाबजूद
उनका भी गम उठा लिया हमने खुसी के साथ
आपकी लिखावट बहुत सहजता लिए हुए होती है... बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteवैसे ये हेडर में जो तस्वीर है वो कहा की है? क्या जयपुर है?
हम जो सोचे वही हो,
ReplyDeleteये जरूरी तो नही,
आज जो है... बहुत प्रभावशाली ,सुंदर लेखन के लिये बधाई...
वो आईना जो,
ReplyDeleteहर सूरत को दिखलाता,
दिल भी दिखाये, 'तारिका'
ये 'जरुरी' तो नहीं।
हाँ यह बात तो बिल्कुल सच है!
बहुत खूब
ReplyDeleteWaah ! bahut sundar rachna hai.
ReplyDeleteबहुत खुब ,अति सुन्दर.
ReplyDeleteधन्यवाद
जगजीत सिंह की वो बेहतरीन गजल याद आ गई...
ReplyDeleteउम्र जलवों में बसर हो ये जरूरी तो नही.....
शेख झुककर करता तो है सजदे .उसकी दुआओं में असर हो ये जरूरी तो नही.....
आपने वही से प्रेरणा ले कर लिखा है ?
हम जो सोचे वही हो,
ReplyDeleteये 'जरुरी' तो नहीं,
आज जो है वो कल भी हो,
ये 'जरुरी' तो नहीं।
bahut sundar rachna.Badhaai.
सांसे कब किसे थाम ले,
ReplyDeleteजिन्दगी बन कर,
जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
ये 'जरुरी' तो नहीं।
bahut khoob...
लाजवाब अभिव्यक्ति...वाह...
ReplyDeleteनीरज
वो आइना जो हर हसीं सूरत को दिखलाये
ReplyDeleteज़रूरी नहीं कि तारिका का दिल भी ललचाये
सांसे कब किसे थाम ले,
ReplyDeleteजिन्दगी बन कर,
जिन्दगी भी सांसे थाम ले,
ये 'जरुरी' तो नहीं।
ऐसे ही लिखते रहिये
सचमुच अद्भुत
प्रीती जी,
ReplyDeleteसुंदर भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक आभार.
निम्न पंक्तियाँ में भौरां कैद हो कर रह गया.....................
खिले एक फूल जब,
भंवरा भी एक खिल जाता,
रात को बंद हो,
सुबह वो मिले, ये 'जरुरी' तो नहीं।
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत अच्छा िलखा है आपने । किवता में भाव की बहुत संुदर अिभव्यिक्त है । अपने ब्लाग पर मैने समसामियक मुद्दे पर एक लेख िलखा है । समय हो तो उसे भी पढे और अपनी राय भी दें
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
Ye baat hai, Bahut behtar Taarika, ye huee na baat. Sahitya srujan men sahitya ke meethe ras ka paan karne milta hai na. Bahut sundar prastuti. Carry on.
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