जज़्बात महोब्बत के,
सीने में धङकते हैं,
फुरसत में कभी तुम भी,
इससे सुनने आ जाना।
मैं तन्हा हूं फिर भी,
कुछ बाते करती हूं,
कभी वक्त मिले,
मुझसे,
तुम मिलने आ जाना।
रह-रह के मचलता र्है,
आंखों में जो बसता है,
वो सपना बनकर के,
तुम मुझको सुला जाना।
मैं नींद में रहकर भी,
कुछ देखा करती हूं,
तुम पास मेरे आकर,
कभी मुझको जगा जाना।
फिर खोल के जुल्फों को,
सुलझाने बैठूं तो,
तुम अपने हाथों से,
इनको सहला जाना।
इन काले केसू में,
कुछ सूनापन सा है,
एक फूल महोब्बत का,
चुपके से लगा जाना।
बारिश के मौसम में,
जब भीग रहे हो तुम,
बस अपना समझकर के,
मुझे पास बुला लेना,
मैं आदत से अपनी,
कुछ शरमा जाऊं तो,
तुम बाहों में भरकर,
मुझे गले लगा लेना।
सीने में धङकते हैं,
फुरसत में कभी तुम भी,
इससे सुनने आ जाना।
मैं तन्हा हूं फिर भी,
कुछ बाते करती हूं,
कभी वक्त मिले,
मुझसे,
तुम मिलने आ जाना।
रह-रह के मचलता र्है,
आंखों में जो बसता है,
वो सपना बनकर के,
तुम मुझको सुला जाना।
मैं नींद में रहकर भी,
कुछ देखा करती हूं,
तुम पास मेरे आकर,
कभी मुझको जगा जाना।
फिर खोल के जुल्फों को,
सुलझाने बैठूं तो,
तुम अपने हाथों से,
इनको सहला जाना।
इन काले केसू में,
कुछ सूनापन सा है,
एक फूल महोब्बत का,
चुपके से लगा जाना।
बारिश के मौसम में,
जब भीग रहे हो तुम,
बस अपना समझकर के,
मुझे पास बुला लेना,
मैं आदत से अपनी,
कुछ शरमा जाऊं तो,
तुम बाहों में भरकर,
मुझे गले लगा लेना।
............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)
vakt hee to nahin hai kisi ke pas kisi ke liye, aaj kal to apne liye vakt nahin nikal paate. nice post. narayan narayan
ReplyDeleteभाव समर्पण का लिए रचना लगी बिशेष।
ReplyDeleteकई दृश्य सुन्दर बने सुलझाते वो केश।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मन को छूती कविता ! शिल्प और अभिव्यक्ति दोनों में बेजोड़ !
ReplyDeleteकेसू या गेसू ?
बहुत सुंदर गीत .
ReplyDeleteरामराम.
MAIN TANHAA HUN FIR BHI BAATEN KARTI HUN .... WAAH KYA BAAT KAHI AAPNE PREETEE JEE BAHOT HI KHUBSURAT GEET LIKHE HAI UTNE HI KHUBSURAT HAI ISKE BOL.... GAAYEE JAANE WAALEE GEET HAI YE TO... BADHAAYEE...
ReplyDeleteARSH
वाह प्रीती जी ...प्रेम रुपी इस कविता को पढ़कर दिल खुश हो गया
ReplyDeletesubh ki shruaat aj is suder si kavita ke sath hui
ReplyDeletedhanyavad aapka
सुन्दर्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत है\बधाई।
ReplyDeleteबारिश के मौसम में,
ReplyDeleteजब भीग रहे हो तुम,
बस अपना समझकर के,
मुझे पास बुला लेना,
मैं आदत से अपनी,
कुछ शरमा जाऊं तो,
तुम बाहों में भरकर,
मुझे गले लगा लेना।
बहुत सुंदर...
मीत
अति सुन्दर!!
ReplyDeleteमन को उलझा देने वाली रचना
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
शब्द और शिल्प दोनों लाजवाब !!
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteअरसे बाद खुशनुमा रंग ......अच्छा लगा
ReplyDeleteअच्छी लगी...कोमल शब्दों में मोहक रचना
ReplyDelete... सुन्दर अभिव्यक्ति !!!!!
ReplyDeleteप्रीत के गीत...very very nice poem...
ReplyDeleteये प्यार की पंक्ति पर
हम से ना रहा गया,
दो लाइन लिख बैठा,
तेरे अफ़साने पे,
सागर ये प्यार का तुम
बस छलकाते रहना,
ये भाव जगा देगी,
हर दिल दीवाने पे,
चुनावी घमासान के बीच ऐसा प्यारा गीत.
ReplyDeleteमाहौल को खुशनुमा बना गया.
सुन्दर, खुशनुमा गीत प्रस्तुति पर आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
bahut achchhi hai par nivedan kyon?
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