Thursday, October 2, 2008

मोम की तरह,आंखों से पिघल जाएंगे

पिछले कई जख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,

शायद इस इन्तज़ार में,
कि कभी तो ये भी भर जाएंगे,
उन्हीं रास्तों पर शायद,
वो ख्वाब फिर नजर आएंगे,

जिनको खो कर वो,
एक बार तन्हा हुई थी,
न पाकर उन्हें आंखों में,
फूट-फूट कर रोयी थी,

पर इस बार न जाने क्यों,
उसे एक यंकी था,
शायद उसकी आंखों में,
वो ख्वाब, फिर कंही था,

ऐसा न हो कि,
इस बार भी वो टूट जाए,
उसके थमें आंसू,
इस बार न बिखर जाए,

इस बार जो बिखर गये तो,
कभी उठ नहीं पाएंगे,
मोम की तरह, वो भी,
आंखों से पिघल जाएंगे,

इसलिए शायद वो आज,
यूं सहमी हुई लगी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
पिछले कई ज़ख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी।
................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र - सभार गुगल )

34 comments:

  1. ऐसा न हो कि,
    इस बार भी वो टूट जाए,
    उसके थमें आंसू,
    इस बार न बिखर जाए,
    प्रीती जी बेहद खुबसूरत कविता लिखी है आपने बधाई हो

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  2. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया और पाया कि यह कविता अच्छी है। आपको बधाई और शुभकामनाएं।

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  3. वो तन्हाई, जो रास्तों पर,

    bahut achhe.. bahut hi badhiya..

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  4. प्रीति जी आप की कविता को पढ़ने पर मजबूर हो जाता हूँ। बहुत अच्छा लिख रही है आप । इस कविता की चंद लाइन दिल को छू गई ।
    " ऐसा न हो कि,
    इस बार भी वो टूट जाए,
    उसके थमें आंसू,
    इस बार न बिखर जाए,

    इस बार जो बिखर गये तो,
    कभी उठ नहीं पाएंगे,
    मोम की तरह, वो भी,
    आंखों से पिघल जाएंगे,

    आप को इस कविता के लिए बधाई । और ये बताइये कि आप के ब्लाग पर लगी तस्वीर कहां की है बहुत ही सुंदर लगी । आज जो ध्यान से देखा।

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  5. इसलिए शायद वो आज,
    यूं सहमी हुई लगी थी,
    वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
    नजरें लगाए बैठी थी,
    पिछले कई ज़ख्मों को,
    दामन में छुपाए बैठी थी।
    बहुत ही अच्छा.... आभार और शुभकामना.... तस्वीर पर मेरी भी नजर चली गयी थी..... बहुत ही सुंदर है ...कहां की है।

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  6. इसलिए शायद वो आज,
    यूं सहमी हुई लगी थी,
    वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
    नजरें लगाए बैठी थी,
    पिछले कई ज़ख्मों को,
    दामन में छुपाए बैठी थी।
    ................
    आपको बधाई और शुभकामनाएं।

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  7. आप सभी का आभार
    नीशू जी और संगीता जी मेरे ब्लॉग पर चित्र जयपुर के जलमहल का है ।

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  8. प्रीति जी,
    जिंदगी के लिए ख्वाब बहुत जरूरी हैं । ख्वाब जिंदगी को खूबसूरत बनाने में मदद रते हैं-

    पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी,
    आंखों को अभी ख्वाब छिपाने नहीं आते।

    अच्छा लिखा है आपने, प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।

    maine bhi apney blog per ek kavita likhi hai. aapki rai badi mahatavpurn hogi

    http//www.ashokvichar.blogspot.com

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  9. शायद इस इन्तज़ार में,
    कि कभी तो ये भी भर जाएंगे,
    उन्हीं रास्तों पर शायद,
    वो ख्वाब फिर नजर आएंगे,


    अति सुंदर कविता ! धन्यवाद !

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  10. पर इस बार न जाने क्यों,
    उसे एक यंकी था,
    शायद उसकी आंखों में,
    वो ख्वाब, फिर कंही था,

    बहुत सुंदर ! शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  11. पिछले कई जख्मों को,
    दामन में छुपाए बैठी थी,
    वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
    नजरें लगाए बैठी थी,

    बहुत सुंदर कविता.

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  12. apki blog ko pahli bar visit kar raha hun, par etana jaroor kahunga aap shbdon ke dhani hai, ab hamesha aaunga, dhnyabad

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  13. अच्छी रचना।बधाई आपको।

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  14. बहुत ही बढ़िया रचना निशब्द कर दिया आपने। बहुत खूब। कई कई दिनों बाद लिखती हैं आप। जल्दी जल्दी आपकी कविता पढ़ने को मिले तो अच्छा रहेगा। धन्यवाद

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  15. पर इस बार न जाने क्यों,
    उसे एक यंकी था,
    शायद उसकी आंखों में,
    वो ख्वाब, फिर कंही था,



    बेहतरीन

    वीनस केसरी

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  16. बहुत ही सुन्दर भाव,
    धन्यवाद

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  17. शानदार कविता के लिए बधाई स्वीकारें

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  18. पिछले कई जख्मों को,
    दामन में छुपाए बैठी थी,
    वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
    नजरें लगाए बैठी थी

    great words
    let me say in other form

    u got sense of expression before the word generated to fit
    regards

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  19. इसलिए शायद वो आज,
    यूं सहमी हुई लगी थी,
    वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
    नजरें लगाए बैठी थी,
    पिछले कई ज़ख्मों को,
    दामन में छुपाए बैठी थी। .......
    bahut hi sundar kavita

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  20. har bar ki tarah is bar bhi ati sundar rachana.
    sundar rachana ke sath chitro ka sundar mishran har bar ki tarah fir se bahut achchha hai.
    aapki agli rachana ke intjar me


    vishal

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  21. बहुत सुंदर....
    जारी रहे

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  22. बहुत ही अच्छी रचना है प्रीती जी.

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  23. ray to wo enge jinko kavita kee samajh ho main to bhav samjhata hun wo dil ko chhu lene wale hain aapke sagar se aise hee yah sab niklta rahe yahi kamna hai, kalyan ho

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  24. बहुत बढ़िया.आप निरन्तर अच्छा लिख रही हैं.अच्छी कविता.

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  25. भौते बडिया लिख्यों चा. आप तें धन्यवाद

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  26. भौते बडिया लिख्यों चा. आप तें धन्यवाद

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  27. बहुत खूब, अच्‍छी रचना।

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  28. bahut hi sundar tarike se kavita ko likha gaya hai.

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