पिछले कई जख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
शायद इस इन्तज़ार में,
कि कभी तो ये भी भर जाएंगे,
उन्हीं रास्तों पर शायद,
वो ख्वाब फिर नजर आएंगे,
जिनको खो कर वो,
एक बार तन्हा हुई थी,
न पाकर उन्हें आंखों में,
फूट-फूट कर रोयी थी,
पर इस बार न जाने क्यों,
उसे एक यंकी था,
शायद उसकी आंखों में,
वो ख्वाब, फिर कंही था,
ऐसा न हो कि,
इस बार भी वो टूट जाए,
उसके थमें आंसू,
इस बार न बिखर जाए,
इस बार जो बिखर गये तो,
कभी उठ नहीं पाएंगे,
मोम की तरह, वो भी,
आंखों से पिघल जाएंगे,
इसलिए शायद वो आज,
यूं सहमी हुई लगी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
पिछले कई ज़ख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी।
दामन में छुपाए बैठी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
शायद इस इन्तज़ार में,
कि कभी तो ये भी भर जाएंगे,
उन्हीं रास्तों पर शायद,
वो ख्वाब फिर नजर आएंगे,
जिनको खो कर वो,
एक बार तन्हा हुई थी,
न पाकर उन्हें आंखों में,
फूट-फूट कर रोयी थी,
पर इस बार न जाने क्यों,
उसे एक यंकी था,
शायद उसकी आंखों में,
वो ख्वाब, फिर कंही था,
ऐसा न हो कि,
इस बार भी वो टूट जाए,
उसके थमें आंसू,
इस बार न बिखर जाए,
इस बार जो बिखर गये तो,
कभी उठ नहीं पाएंगे,
मोम की तरह, वो भी,
आंखों से पिघल जाएंगे,
इसलिए शायद वो आज,
यूं सहमी हुई लगी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
पिछले कई ज़ख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी।
................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र - सभार गुगल )
ऐसा न हो कि,
ReplyDeleteइस बार भी वो टूट जाए,
उसके थमें आंसू,
इस बार न बिखर जाए,
प्रीती जी बेहद खुबसूरत कविता लिखी है आपने बधाई हो
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया और पाया कि यह कविता अच्छी है। आपको बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteवो तन्हाई, जो रास्तों पर,
ReplyDeletebahut achhe.. bahut hi badhiya..
प्रीति जी आप की कविता को पढ़ने पर मजबूर हो जाता हूँ। बहुत अच्छा लिख रही है आप । इस कविता की चंद लाइन दिल को छू गई ।
ReplyDelete" ऐसा न हो कि,
इस बार भी वो टूट जाए,
उसके थमें आंसू,
इस बार न बिखर जाए,
इस बार जो बिखर गये तो,
कभी उठ नहीं पाएंगे,
मोम की तरह, वो भी,
आंखों से पिघल जाएंगे,
आप को इस कविता के लिए बधाई । और ये बताइये कि आप के ब्लाग पर लगी तस्वीर कहां की है बहुत ही सुंदर लगी । आज जो ध्यान से देखा।
इसलिए शायद वो आज,
ReplyDeleteयूं सहमी हुई लगी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
पिछले कई ज़ख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी।
बहुत ही अच्छा.... आभार और शुभकामना.... तस्वीर पर मेरी भी नजर चली गयी थी..... बहुत ही सुंदर है ...कहां की है।
इसलिए शायद वो आज,
ReplyDeleteयूं सहमी हुई लगी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
पिछले कई ज़ख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी।
................
आपको बधाई और शुभकामनाएं।
आप सभी का आभार
ReplyDeleteनीशू जी और संगीता जी मेरे ब्लॉग पर चित्र जयपुर के जलमहल का है ।
प्रीति जी,
ReplyDeleteजिंदगी के लिए ख्वाब बहुत जरूरी हैं । ख्वाब जिंदगी को खूबसूरत बनाने में मदद रते हैं-
पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी,
आंखों को अभी ख्वाब छिपाने नहीं आते।
अच्छा लिखा है आपने, प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।
maine bhi apney blog per ek kavita likhi hai. aapki rai badi mahatavpurn hogi
http//www.ashokvichar.blogspot.com
bahut khobsurat
ReplyDeleteशायद इस इन्तज़ार में,
ReplyDeleteकि कभी तो ये भी भर जाएंगे,
उन्हीं रास्तों पर शायद,
वो ख्वाब फिर नजर आएंगे,
अति सुंदर कविता ! धन्यवाद !
पर इस बार न जाने क्यों,
ReplyDeleteउसे एक यंकी था,
शायद उसकी आंखों में,
वो ख्वाब, फिर कंही था,
बहुत सुंदर ! शुभकामनाएं !
पिछले कई जख्मों को,
ReplyDeleteदामन में छुपाए बैठी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
बहुत सुंदर कविता.
apki blog ko pahli bar visit kar raha hun, par etana jaroor kahunga aap shbdon ke dhani hai, ab hamesha aaunga, dhnyabad
ReplyDeleteअच्छी रचना।बधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना निशब्द कर दिया आपने। बहुत खूब। कई कई दिनों बाद लिखती हैं आप। जल्दी जल्दी आपकी कविता पढ़ने को मिले तो अच्छा रहेगा। धन्यवाद
ReplyDeleteपर इस बार न जाने क्यों,
ReplyDeleteउसे एक यंकी था,
शायद उसकी आंखों में,
वो ख्वाब, फिर कंही था,
बेहतरीन
वीनस केसरी
बहुत ही सुन्दर भाव,
ReplyDeleteधन्यवाद
शानदार कविता के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteपिछले कई जख्मों को,
ReplyDeleteदामन में छुपाए बैठी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी
great words
let me say in other form
u got sense of expression before the word generated to fit
regards
इसलिए शायद वो आज,
ReplyDeleteयूं सहमी हुई लगी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
पिछले कई ज़ख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी। .......
bahut hi sundar kavita
har bar ki tarah is bar bhi ati sundar rachana.
ReplyDeletesundar rachana ke sath chitro ka sundar mishran har bar ki tarah fir se bahut achchha hai.
aapki agli rachana ke intjar me
vishal
Bahut badiya.
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteजारी रहे
बहुत ही अच्छी रचना है प्रीती जी.
ReplyDeleteअच्छी रचना है.
ReplyDeleteachhi kavita hai
ReplyDeleteaapko badhai.....
ray to wo enge jinko kavita kee samajh ho main to bhav samjhata hun wo dil ko chhu lene wale hain aapke sagar se aise hee yah sab niklta rahe yahi kamna hai, kalyan ho
ReplyDeletevery nice.....writing
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.आप निरन्तर अच्छा लिख रही हैं.अच्छी कविता.
ReplyDeleteभौते बडिया लिख्यों चा. आप तें धन्यवाद
ReplyDeleteभौते बडिया लिख्यों चा. आप तें धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूब, अच्छी रचना।
ReplyDeletebahut hi sundar tarike se kavita ko likha gaya hai.
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