सिर्फ आंसू ही रह गये थे,
आंखों में,
उसकी एक आदत की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
मुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह,
न वो समझ सका था मुझे,
न मैं ही समझ रही थी,
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
सिर्फ एक आंसू की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
आंखों में,
उसकी एक आदत की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
मुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह,
न वो समझ सका था मुझे,
न मैं ही समझ रही थी,
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
सिर्फ एक आंसू की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
मुझसे,
तो बात हुई,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह।
..............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र - सभार गुगल )
सुंदर हमेशा की तरह्।
ReplyDeleteवो जब भी मिला तन्हाई में,
ReplyDeleteमुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह।
... अत्यंत सुन्दर रचना है।
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteन वो समझ सका था मुझे,
ReplyDeleteन मैं ही समझ रही थी,
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
सिर्फ एक आंसू की तरह,
आप भावो को बड़ी खूबी से अभिव्यक्त कर लेती हैं ! और ये बड़ी बात है ! बहुत शुभकामनाएं !
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
ReplyDeleteसिर्फ एक आंसू की तरह,
....
बहुत सुन्दर भावना
बढ़ीया है।
ReplyDeleteवो जब भी मिला तन्हाई में,
ReplyDeleteमुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह।
ye line khaas pasand aayi.
न वो समझ सका था मुझे,
ReplyDeleteन मैं ही समझ रही थी,
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
सिर्फ एक आंसू की तरह,
bahut sunder....
वो जब भी मिला तन्हाई में,
ReplyDeleteमुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह,
sach mein kitna dard hai, aapne apne manobhav kalam ke zariye kaagaz par utaar kar rakh diye hain. bahut hi shaandaar rachna, badhai sweekaren.
www.merakamra.blogspot.com
प्रीति जी हमेशा की ही तरह आपने एक सुन्दर कल्पना , भाव प्रस्तुत करती कविता लिखी है । पढ़कर शुकुन मिलता है । धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete"वो जब भी मिला तन्हाई में मुझसे,
ReplyDeleteतो बात हुईएक शिकायत की तरह."
सच्चे मन से
जो भी लिखा जाता है
वो अच्छा ही होता है..
बधाई.
वाहवा तारिका जी...
ReplyDeleteबेहद सुंदर कविता के लिये बधाई....
न वो समझ सका था मुझे,
ReplyDeleteन मैं ही समझ रही थी,
वक्त ...... युही गुजर गया....
हमेशा की तरह से लाजवाब, बहुत सुन्दर भाव.
धन्यवाद
हमेशा की तरह पढना अच्छा लगा।
ReplyDeletepreeti ji
ReplyDeletedil key zazbaton ko khoobsurti sey shabdon sey aakaar diya hai. wah.
आपने बहुत अच्छा िलखा है । अापकी प्रितिक्र्या को मैने अपने ब्लाग पर िलखे नए लेख में शािमल िकया है । आप चाहें तो उसे पढकर अपनी प्रितिक्रया देकर बहस को आगे बढा सकते हैं ।
http://www.ashokvichar.blogspot.comं
न वो समझ सका था मुझे,
ReplyDeleteन मैं ही समझ रही थी,
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
सिर्फ एक आंसू की तरह!
बहुत सुंदर!
सुंदर कविता के लिये बधाई.
ReplyDeletenice one
ReplyDeletenice one
ReplyDeleteन वो समझ सका था मुझे,
ReplyDeleteन मैं ही समझ रही थी,
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
सिर्फ एक आंसू की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
मुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह।
आपकी लेखनी से रोशनाई नहीं जादू निकलता है बेहतरीन कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद मेरी नई रचना कैलंडर पढने हेतु आप सादर आमंत्रित हैं
hum bhi samajh n sake
ReplyDeleteaapke aansu
paani ki speed photogarpy ke sath kyo hain
न वो समझ सका था मुझे,
ReplyDeleteन मैं ही समझ रही थी,
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
सिर्फ एक आंसू की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
मुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह।
अहसासातों को लफ्ज़ों में ढालने की कला बहुत खुब है आपमें। जज़्बात के आईने में शब्दों का प्रतिबिम्ब मन को पूरी तरह सुकुन देता है। आपकी कविता के प्रति की गई मेहनत और बिना शातिर हुए सरल भाषा का प्रयोग ही आपकी कविता की ताकत है। बधाई।
सिर्फ आंसू ही रह गये थे,
ReplyDeleteआंखों में,
उसकी एक आदत की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
मुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह,
priti its really nice, wat a thought, that he has become a habit. congrats
preeti jee,
ReplyDeleteaaj pehlee baar apko padhaa hai, yakeen maniye age bhee ye sililaa bana rahegaa. dhanyavad.
nazar ne nazar se mulakar kar li,khamosh the dono magar bat kar li, isk kee kheti ko jab sukha dekha to aankhon ne ro ro ke barsat kar li. vaise tanhai me milna hee aslimilna hota hai kyonki jab koi dekhane wala nahi hota
ReplyDeleteन वो समझ सका था मुझे,
ReplyDeleteन मैं ही समझ रही थी,
वक्त ने भी समझाया हमें तो,
सिर्फ एक आंसू की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
मुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह।
wah ji wah behtarin kalaam......
बढ़िया लगी कविता। आज ही आपकी पिछली दो कविताऍ पढीं। जगदम्बे माँ को आपने सच्चे ह्रदय से श्रद्धा सुमन अर्पित किया है।
ReplyDeleteउससे पहले की कविता खास है-
उन्हीं रास्तों पर शायद,
वो ख्वाब फिर नजर आएंगे
अति सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है जी...। एक-एक शब्द नगीने की तरह जड़े हैं। अब रोज यहाँ आता रहूंगा।
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""
ReplyDeleteवक्त ने शिकायत की जब रुसवाई में
ReplyDeleteसिर्फ आंसू ही रह गये तन्हाई में
वक्त ने भी समझाया हमें तो
ReplyDeleteसिर्फ एक आंसू की तरह
बेहतरीन रचना है प्रीती जी
अति सुंदर.
ReplyDeletebahut sunder rachana
ReplyDeleteaap pr sarswati ki kripa he
kripua humra dustbin jhanke
regards
वो जब भी मिला तन्हाई में,
ReplyDeleteमुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह।
nice
वो जब भी मिला तन्हाई में,मुझसे,
ReplyDeleteतो बात हुई ,एक शिकायत की तरह....
कमाल है..अच्छी कविता के लिये.. बधाई
सच.....इतनी शिकायतें और उलाहने हैं हर किसी के पास कि कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि जिंदगी प्यार नहीं बल्कि सिर्फ़ शिकायते हैं ....!!
ReplyDeleteपहली बार आपको पढा .अच्छा लगा.
ReplyDeleteशुभकामनाऍ
पहली बार आपको पढा .अच्छा लगा.
ReplyDeleteशुभकामनाऍ
bahut sundar blog banaya aapane mai to dang rah gaya. kho gaya chitron me. kitane jatan se yah bana hoga . ek lamha jindagi ka yoon chhukar gujar gaya. mout ne mujhe jaise jindagi ki jholi me dal diya. khannnnnnnnannnnn.......
ReplyDeletebadhai.
Phele Baar aapko phada....kaafi sundar rachna hai aapki..dil ko chu gayee....isi tarah aap hamesha likhtee rahen.....
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