Friday, August 7, 2009

कहीं खोया हुआ अपना, वो सामान मिल जाए............






कहीं खामोश पन्नों पे,
बीते लम्हों की कहानी,
बदलते वक्त की हसरत,
बदलती जिन्दगानी।



मुसाफिर भी बने इसमें,
हमसफर भी बनने आये,
मुकद्दर में ही, न था जो,
वो, दर से ही लौट आये।



पत्थर के मकां भी थे,
मिट्टी की मजारें भी,
दरारें उसमें भी उतनी ही,
दरारें इसमें थी जितनी।



पिघलती रूह में अक्सर,
अक्श अपना दिखाई दें,
मचलते दिल की वो हसरत,
दबी चीखें सुनाई दें।



फिर से, यूं ही चलेंगे हम,
लेके अपने, ख्वाबों का पिटारा,
शायद यूं ही “तारिका”
कोई खोया हुआ अपना,
कहीं सामान मिल जाए।
.............
प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र - साभार गूगल)

15 comments:

  1. दरारें उसमें भी उतनी ही,
    दरारें इसमें थी जितनी।

    खूबसूरत भावभिव्क्ति प्रीति जी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. फिर से, यूं ही चलेंगे हम,
    लेके अपने, ख्वाबों का पिटारा,
    शायद यूं ही “तारिका”
    कोई खोया हुआ अपना,
    कहीं सामान मिल जाए।

    --बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई!!!

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  3. पिघलती रूह में अक्सर,
    अक्श अपना दिखाई दें,
    मचलते दिल की वो हसरत,
    दबी चीखें सुनाई दें।

    बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  4. फिर से, यूं ही चलेंगे हम,
    लेके अपने, ख्वाबों का पिटारा,
    शायद यूं ही “तारिका”
    कोई खोया हुआ अपना,
    कहीं सामान मिल जाए
    बहुत सुन्दर दिल को छूती भावमय अभिव्यक्ति के लिये आभार्

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  5. पिघलती रूह में अक्सर,
    अक्श अपना दिखाई दें,
    मचलते दिल की वो हसरत,
    दबी चीखें सुनाई दें।

    बहुत सुंदर.

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  6. फिर से, यूं ही चलेंगे हम,
    लेके अपने, ख्वाबों का पिटारा,
    शायद यूं ही “तारिका”
    कोई खोया हुआ अपना,
    कहीं सामान मिल जाए।
    बहुत सुंदर नज्म है....
    मीत

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  7. बहुत अच्छी रचना है
    ---
    'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!

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  8. Tarikaji, Aap ne jivan ke safar me apne pair hi nahi anubhvo ko bhi pakaya hain... aap ko ujjval bhavishya ki shubkamnae....

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  9. मचलते दिल की वो हसरत,
    दबी चीखें सुनाई दें।
    शब्दो के इस आयाम को सलाम

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  10. bahot hi khub kahi hai aapne preetee ji ... bahot hi khubsurat... upar ki tasveer aur bhi badhiya hai bahot bahot badhaayee


    arsh

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  11. amazing poem ji

    aapne to shabdo ke dwara jaadu kar diya .. itni pyaari rachna dil ko chooti hui hai ... badhai ...


    vijay

    pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com

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  12. पिघलती रूह में अक्सर,
    अक्श अपना दिखाई दें,
    मचलते दिल की वो हसरत,
    दबी चीखें सुनाई दें।


    bahut hi khoobsoorat kavita........shabdon ki maalaa ko bahut hi nafasat se piroya gaya hai........ badhai...........


    Preetiji........... bahut dinon se aap mere blog pe nahin aaye? Kyun?

    Regards............

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  13. मुसाफिर भी बने इसमें,
    हमसफर भी बनने आये,
    मुकद्दर में ही, न था जो,
    वो, दर से ही लौट आये।

    preeti ji ek shabd kahunga "LAAZBAAB"
    baar baar padhane ka man karata hai is kavita ko..

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  14. wow kya likhte ho aap. aisa lagta hai jaise aapke kalam me jadu hai koi. very nice.

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