सोचा न था.....,
यूं जिन्दगी से धोखा हो गया,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
रब मिल गया था सोच कर,
खुश हो लिए,
आंखे खुली तो,
रब न जाने कहां खो गया,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
दिल दर्द के,
समन्दर में डूबा जा रहा,
आंखे भी छलक कर,
खाली हो रही,
भर रहे थे,
जो उङाने बादलों में,
टूट कर वो सपना,
सौ टुकङे हो रहा,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
पत्थरों से रगङती,
उस नाम को,
जो हरकदम मेरा,
हमराज़ था,
बन रहा वो आज,
मेरी आंखो में नमी,
कलतलक,
जो दिल के पास था,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
.............
.............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)
प्रीती जी बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा है...लगता है पिछले दिनों व्यस्त रहीं...खैर...बहुत अच्छी और भावपूर्ण रचना प्रस्तुत करने पर हार्दिक बधाई...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteहमराज़ था,
ReplyDeleteबन रहा वो आज,
मेरी आंखो में नमी,
कलतलक,
जो दिल के पास था,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
बहुत सुंदर...
मीत
प्रीती जी अरसे बाद आपको पढा और क्या खूब लिखा है आपने बेहद ही भावनापूर्ण रचना बहोत बहोत बधाई....मगर इतने दिनों की छुट्टी अछि नहीं ...
ReplyDeleteअर्श
सोचा न था.....,
ReplyDeleteयूं जिन्दगी से धोखा हो गया,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
बहुत सुंदर लिखा आप ने . काफ़ी दिनो बाद आप आई.
धन्यवाद
wah..............
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ReplyDeletebahut hi achha likha aapne....
ReplyDeletepadkar ek alag hi anubhuti ka ehsaas hua/....
सुन्दर रचना
ReplyDeleteअच्छा लगता है आपका पढना
ReplyDeleteलम्बा ही गायब हो गईं आप तो!!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना के साथ पुनः स्वागत!!
बहुत दिनों के बाद आपको पढ़ा है शायद आप काफी दिन से नहीं लिख रहीं थी। बेहतर हो कि आप जल्दी जल्दी लिखा करें। यूं गेप करना अच्छा नहीं।
ReplyDeleteजहां तक इस कविता का जिक्र करूं तो ये दिल से लिखी दिल तक पहुंचने वाली कविता। जो भी पढ़ेगा ये पंक्तियां उसके दिल से जाकर दिमाग पर असर करेंगी। बहुत अच्छी रचना।
Tarikaji, Namaste.... rachna or majbut or khubsurat ban sakti he...
ReplyDelete"Bhar rahe the jo udane badlo main"
it should be Bhar raha tha jo udaan badlo main -
gour farmaiyega... Shukria...