सोचा न था.....,
यूं जिन्दगी से धोखा हो गया,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
रब मिल गया था सोच कर,
खुश हो लिए,
आंखे खुली तो,
रब न जाने कहां खो गया,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
दिल दर्द के,
समन्दर में डूबा जा रहा,
आंखे भी छलक कर,
खाली हो रही,
भर रहे थे,
जो उङाने बादलों में,
टूट कर वो सपना,
सौ टुकङे हो रहा,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
पत्थरों से रगङती,
उस नाम को,
जो हरकदम मेरा,
हमराज़ था,
बन रहा वो आज,
मेरी आंखो में नमी,
कलतलक,
जो दिल के पास था,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)