वो खामोश नज़रों से मुझे,
अपलक निहारता,
और फिर, कुछ देर बाद,
नज़रे झुका कर चला जाता,
अपने को बहला कर,
फिर लौटता और मुझे,
फिर उसी हाल में देख कर,
सहम जाता।
अपलक निहारता,
और फिर, कुछ देर बाद,
नज़रे झुका कर चला जाता,
अपने को बहला कर,
फिर लौटता और मुझे,
फिर उसी हाल में देख कर,
सहम जाता।
ये सब देख रही थी मैं,
अपनी भीगी आंखों से,
मगर, चुप थी ये जानकर,कि
वो कहां समझ पा रहा होगा,
जो अभी सब हो रहा था,
हमारे आस-पास।
अपनी भीगी आंखों से,
मगर, चुप थी ये जानकर,कि
वो कहां समझ पा रहा होगा,
जो अभी सब हो रहा था,
हमारे आस-पास।
दिन के सांझ होने तक,
माहौल, कुछ काम में उलझा,
तभी, वो पास आकरके,
मुझसे बोला,
मम्मा बस, अब नही रोना हां....,
माहौल, कुछ काम में उलझा,
तभी, वो पास आकरके,
मुझसे बोला,
मम्मा बस, अब नही रोना हां....,
क्या ये वो ही है जिसे मेंने,
अभी नादा ही समझा था,
वो छोटा-सा, मेरा प्यारा,
ये सबकुछ समझता था।
वो सच में सब समझ रहा था।
..............
अभी नादा ही समझा था,
वो छोटा-सा, मेरा प्यारा,
ये सबकुछ समझता था।
वो सच में सब समझ रहा था।
..............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)
अभी नादा ही समझा था,
ReplyDeleteवो छोटा-सा, मेरा प्यारा,
बहुत ही भावपूर्ण अच्छी रचना . काफी दिनों बाद आपकी पोस्ट देखि तो अच्छा लगा. धन्यवाद.
behad bhavpurn rachna preeti ji wakai wo sab kuchh samajh raha tha....
ReplyDeletearsh
सुन्दर कविता
ReplyDeleteभावपूर्ण और सुंदर रचना।
ReplyDeleteकविता पढ़कर गहरी अनुभूति हुई
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
तभी, वो पास आकरके,
ReplyDeleteमुझसे बोला,
मम्मा बस, अब नही रोना हां....,
बहुत सुंदरतम रचना. शुभकामनाएं
रामराम.
bachche man ke sachche..narayan narayan
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना है।बहुत सुन्दर,.....
ReplyDeleteबच्चे सब समझ जाते हैं ... बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबच्चे सब समझते है...
ReplyDeleteबहुत ही भावुक,लेकिन सुंदर लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद
वो सब समझता है .सब .कम से कम प्यार की भाषा तो ..मुझे याद है मैंने अपने बेटे को दो हफ्तों का होने पर ही गोद में लेकर गाना सुनाकर सुलाना शुरू किया था ...ढाई साल का होने तक वो रात भर मेरे आने का इंतज़ार करता था .तब सोता था ..जानती है मै कुछ इसी बात पर लिखने वाला था ..आपने जैसे उसे शब्द दे दिए....
ReplyDeleteबच्चे मन के सच्चे ...बड़ों से ज्यादा भावुक होते हैं ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
पसंद पर क्लिक कर चूका हूँ
बच्चे सब समझते हैं बहुत सुन्दर लगी आपकी यह कविता
ReplyDeletedil ko chhuu lene wali kavita he aapki......
ReplyDeletemujhe maa yaad aagayei.....
ReplyDeletehttp://onecolumn-kaptan.blogspot.com/
ReplyDeletemere blog ko bhi dekhiye.....
aapko bhee pata hoga ek adhdhyan me pata chala he ki bachche ham bado se jyada samjhdaar hote he, bas unki abhivyakti ham jesi nahi ho paati..kher..
ReplyDeletebahut khoobsurat tarike se shabdo ko panktibadhdha kiya he aapne..
shabdo ki komalta, kavita ka marm uske artho ke saath bakhoobi utare gaye he.
bhaawna pradhaan rachna,bahut achhi lagi
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति हैं.
ReplyDeleteसुन्दर कविता! नयी फॊटो भी अच्छी लगी।
ReplyDeleteaapki rachnaya dil ko sparash karti hai
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