ज़िन्दगी बनी ख़्वाब कभी,
ख़्वाब कभी ज़िन्दगी बनी,
जब कभी भी तलाश की,
मैं खुद को ढूढ़ती रही।
एक साया दिख के क्यों?
बार-बार ओझल हुआ,
मैं सोच में उलझी हुई, कि
‘वो’ कोई अपना-तो नहीं।
जीवन नहीं लंबा सफर,
ये जान कर भी, मोह में,
उङ गये पंछी को...बस,
मैं पुकारती रही...बस पुकारती रही।
ख़्वाब कभी ज़िन्दगी बनी,
जब कभी भी तलाश की,
मैं खुद को ढूढ़ती रही।
एक साया दिख के क्यों?
बार-बार ओझल हुआ,
मैं सोच में उलझी हुई, कि
‘वो’ कोई अपना-तो नहीं।
जीवन नहीं लंबा सफर,
ये जान कर भी, मोह में,
उङ गये पंछी को...बस,
मैं पुकारती रही...बस पुकारती रही।
............
(काफी दिन हो चले हैं कि लिखना एक दम छूट सा गया है। जब कोई अपना, बहुत अपना हमसे दूर बहुत दूर चला जाता है तो हर भाव चरम पर होते हैं। फिर से अब जिंदगी को राह पर तो चलना ही होगा और हमें उसके साथ। इसी कोशिश में तारिका।)
प्रीती बङथ्वाल ‘तारिका’
प्रीती बङथ्वाल ‘तारिका’
(चित्र-साभार गूगल)
सुंदर लिखा है. ऐसे ही कोई मुझे भी छोड़ गया.. मैं पुकारता रहा पर उसने जवाब नहीं दिया बस दूर बादलों में मुस्कुराता रहा...
ReplyDeleteमीत
arse baad magar der aaye durust aaye ... bahot badhiya likha hai aapne ... kisi apne ka dur jaane ka dard kya hota hai main samajh sakta hun.... dur badalon se ab bhi jhankata hai....
ReplyDeletearsh
भावप्रद रचना जो बिछोड के रंग में रंगी हुयी है..
ReplyDeleteआप की रचना पढ कर पुरानी फ़िल्म का एक गीत याद आ गया.
मैं ये सोच कर उसके दर से उठा था
कि वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको
कदम ऐसे अन्दाज से उठ रहे थे
कि आवाज दे कर बुला लेगी मुझको...
आपने यह गीत सुना होगा
सुन्दर रचना के लिये बधाई
बहुत दिनों बाद आपको पढने का अवसर मिला है...लिखना मत छोडिये...ये अपने मन के भाव को अभिव्यक्त करने का सबसे बढ़िया साधन है...ऐसी ही सुंदर मन भावन रचनाएँ रचती रहिये....
ReplyDeleteनीरज
Lagi Rahiye Preeti ji.
ReplyDeletebas pukarti rahi ...bas pukarti rahi ...waah bahut sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है...
ReplyDeleteजीवन नहीं लंबा सफर,
ReplyDeleteये जान कर भी, मोह में,
उङ गये पंछी को...बस,
मैं पुकारती रही...बस पुकारती रही।
aate hi hamen pukaar liya....bahut sundar,dil ko chhuti rachna
वाह !!! बहुत ही सुंदर.....हमेशा की तरह....
ReplyDeleteबहते पानी सा भावों को बहते रहने दीजिय कीजिये,लेखन को रोक इस प्रवाह को अवरुद्ध न कीजिये......
जीवन नहीं लंबा सफर,
ReplyDeleteये जान कर भी, मोह में,
उङ गये पंछी को...बस,
मैं पुकारती रही...बस पुकारती रही
बहुत दिनों बाद दिखी .जो कारण कहा वो कविता में दिख भी रहा है...दुःख आपको परखता भी है जीवन का एक हिस्सा भी...
एक साया दिख के क्यों?
ReplyDeleteबार-बार ओझल हुआ,
मैं सोच में उलझी हुई, कि
‘वो’ कोई अपना-तो नहीं।
aap vakai achcha likhti he..
jesa ki aapne likha likhna chhoot gayaa....
mujhe lagta he likh kar ham apni dooriyo ko kam kar sakte he..apne gam apne dukh apni pidaao ko vyakt kar santosh ka ahsaas kar sakte he..
aapki kalam chalti rahe..
क्या ही बेहतरीन कविता रची है तारिका फिर आपने! पर एक गुज़ारिश है के जल्द आया करें ब्ला॓ग पर। मिस किया करते हैं बहना आपको हम सब।
ReplyDeletevery nice ...
ReplyDelete-tarun
http://tarun-world.blogspot.com
bahut gahre bhav.......aatma ki pukar hai.
ReplyDeleteसुन्दर अति सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
जीवन नहीं लंबा सफर,
ReplyDeleteये जान कर भी, मोह में,
उङ गये पंछी को...बस,
मैं पुकारती रही...बस पुकारती रही।
बहुत गहन और मार्मिक अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
रामराम.
ज़िन्दगी बनी ख़्वाब कभी,
ReplyDeleteख़्वाब कभी ज़िन्दगी बनी,
जब कभी भी तलाश की,
मैं खुद को ढूढ़ती रही।
बहुत ही सुंदर बेहतरीन ख्वाब....
अति सुंदर रचना.
धन्यवाद