जिन्दगी अब मुझे,
यूं भाती नहीं,
कितना भी आंसुओं को रोक लें,
हंसी आती नहीं,
यूं भाती नहीं,
कितना भी आंसुओं को रोक लें,
हंसी आती नहीं,
हर मोङ पर सिर्फ,
दर्द और तन्हाईयां हैं,
जिधर भी नज़र डाले,
तङपती परछाइयां हैं,
दर्द और तन्हाईयां हैं,
जिधर भी नज़र डाले,
तङपती परछाइयां हैं,
वो भी (परछाइयां) मुझे देखकर,
मुझसे ही दूर जाती रहीं,
कितना भी आंसुओं को रोक लें,
हंसी आती नहीं,
जिन्दगी अब मुझे,
यूं भाती नहीं।
...........
मुझसे ही दूर जाती रहीं,
कितना भी आंसुओं को रोक लें,
हंसी आती नहीं,
जिन्दगी अब मुझे,
यूं भाती नहीं।
...........
प्रीती बङथ्वाल तारिका
(चित्र-साभार गूगल)
hasana wahi janta hai jo khulkar ro sakta ho, aansu kitane bhee ho aap smile la sakti hai chehare par. narayan narayan
ReplyDelete"कहाँ कहाँ न खु़शी को ढूँढा
ReplyDeleteमिली मेरे दिल के ही मकां में"
खु़शी अपने ही अंदर है...
जिन्दगी अब मुझे,
ReplyDeleteयूं भाती नहीं,
कितना भी आंसुओं को रोक लें,
हंसी आती नहीं,
bahut badhiya bhavapoorn Rachana . dhanyawad.
दर्द और तन्हाईयां हैं,
ReplyDeleteजिधर भी नज़र डाले,
बहुत सटीकता से अभिव्यक्त किया आपने ! माहोल ही ऐसा हो गया है !
रामराम !
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ReplyDeleteसही कह रही हैं आप। ऐसे मे कोई कैसे हंस सकता है?
ReplyDeleteअत्यधिक गंभीर /ये जिंदगी है ही ऐसी /जिधर भी नजर डालो तड़पती परछाईया है और नजर भी डाल कौन रहा है जो आंसुओं को रोक कर भी हंस नहीं पारहा हैऔर उस बेचारे कोभी हर मोड़ पर दर्द और तन्हाईयाँ ही मिल रही हैं /""जिन्दगी भाती नहीं है ""मगर क्या कीजियेगा एक बहुत पुराना गाना है -दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा -जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा / इसलिए मांगने से जो मौत मिल जाती ,कौन जीता इस जमाने में /बहुत भावुक अनुभूति शब्दों में व्यक्त हुई है /तन्हाईया और परछाइयाँ का प्रयोग उत्तम बन पड़ा है
ReplyDeleteआप सभी का धन्यवाद ।
ReplyDeleteदर्द से सराबोर अभिव्यक्ति...
ReplyDelete---मीत
आपने सबका धन्यवाद् भी कर दिया..
ReplyDeleteहमारा इन्तजार भी न किया...
भले ही दो दिन देर से आयें पर,
आयेंगे जरूर,
आपने जरा भी नहीं सोचा....
बहोत खूब प्रीती जी बहोत ही बढिया लिखा है आपने ...
ReplyDeleteसंवेदनशील पोस्ट!
ReplyDeleteकितना भी आंसुओं को रोक लें,
ReplyDeleteहंसी आती नहीं,
सच कहा आपने...सब की हालत एक सी है...आज का दर्द बयां करती रचना...
नीरज
जिन्दगी इतनी बुरी है, का विश्वास नहीं होता. और यदि कल्पना ही करनी है, तो विषयों की कमी भी नहीं दिखती. खैर, आपकी रचना पसंद आयी. :) कभी 'आधा खाली', आधा भरे - इसी प्रार्थना में.
ReplyDeleteअच्छा िलखा है आपने । भावों को प्रभावशाली ढंग से अिभव्यक्त िकया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-उदूॆ की जमीन से फूटी गजल की काव्यधारा । समय हो तो पढें और प्रतिक्रिया भी दें-
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
बिलकुल सही लिखा आप ने....
ReplyDeleteधन्यवाद
वो भी (परछाइयां) मुझे देखकर,
ReplyDeleteमुझसे ही दूर जाती रहीं,
कितना भी आंसुओं को रोक लें,
हंसी आती नहीं
bahut khub...dard ko bahut khubi se abhiwyaqt kiya hai
bahut hi badhiya hai.
ReplyDeleteभाव विभोर कर दिया!
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति-
ReplyDeleteहर मोङ पर सिर्फ,
दर्द और तन्हाईयां हैं,
जिधर भी नज़र डाले,
तङपती परछाइयां हैं,
बेहतरीन रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteaap ki rachnaayen bahut acchi hai .
ReplyDeleteitni acchi kavita ke liye badhai..
regards,
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
बहुत सुन्दर गीत है।्बधाई।
ReplyDeleteहर मोङ पर सिर्फ,
ReplyDeleteदर्द और तन्हाईयां हैं,
जिधर भी नज़र डाले,
तङपती परछाइयां हैं,
बहुत सुंदर बधाई
4 panktiyo ke baad
ReplyDelete"वो भी (परछाइयां) मुझे देखकर,
मुझसे ही दूर जाती रहीं,"
isakee tarz pe do panktiyaan hoti to takneeki drishti se badi sahshakt lagti kavita...flow ka mazaa aa jaat...bas soch hai meri :)
जिन्दगी अब मुझे,
ReplyDeleteयूं भाती नहीं।
..........lekin bhaani to padegi... hai naa.....??
acchi hai....ye bhi rachnaa... beshak bahut jyaada acchi nahin...
waaqai mein zindagi kai mod aise aate hain ki kuch samajh mein nahi aata...aur zindagi khud aap se door chali jati hai...... nice write up...... thanx for sharing.....
ReplyDeleteregards.
aaj pahli bar aapke blog par aayi hun
ReplyDeleteaapki har rachna bahut hi bhavpurna hai
zindagi ke dard ko bahut hi sundar dhang se ukera hai aapne.