कहना है आसान,
मगर....,
वो शब्द नहीं आते,
दिल दे दिया उन्हें,
यही हम....,
कह नहीं पाते।
दबा कर दातं में,
दुपट्टे का वो कोना,
लटों को....,
उंगलियों में फिर घुमाते,
छुपाये ख्वाब को..,
न देखे कोई भी..,
वो परदे के पीछे,
चेहरा यूं छुपाते।
न मांगे फिर दुआ...,
कोई हम ख़ुदा से,
बस वो एक ख्वाब ये,
सच सा बना दे,
न बोले हम,
मगर वो, सब समझले,
जो दिल हम दे चुके हैं,
कब का उनको,
वो दिल,
वो कबूल करले...,
चुपके चुपके........चुपके चुपके।
...............
प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र – साभार गूगल)
बेहतरीन!! बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteवो दिल,
ReplyDeleteवो कबूल करले...,
चुपके चुपके........चुपके चुपके।
दिल से दिल की जब गुफ़्तगू होगी. कबूल होना ही है.
बहुत सुन्दर भाव
बधाई हो इस शानदार रचना के लिए। आप यूं ही लिखती रहे। यही शुभकामनाएं
ReplyDeleteशानदार रचना ,शुभकामनाएं
ReplyDeleteदबा कर दातं में,
ReplyDeleteदुपट्टे का वो कोना,
लटों को....,
उंगलियों में फिर घुमाते,
छुपाये ख्वाब को..,
न देखे कोई भी..,
वो परदे के पीछे,
चेहरा यूं छुपाते
वाह मीरा जी समझ गये कि बहुत सुन्दर लिखती हैं आप । बधाई इस कविता के लिये।
खूबसूरती से लिखे एहसास.....सुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया कविता लिखी आप ना बहुत बहुत धानयाबाद
ReplyDeleteबधाई हो इस शानदार रचना के लिए। शुभकामनाएं !
ReplyDeleteकहना है आसान,
ReplyDeleteमगर....,
वो शब्द नहीं आते
सही कहा
जो भावों को सुंदर शब्दो मे व्यक्त कर पाते है
भाग्य शाली होते हैं
वरना कितनों के भाव मन मे ही रह जाते है
खूबसूरत रचना
शुभ कामनाए
बड़िया रचना...भावों को बड़ी सुंदरता से शब्दों में ढाला है आपने.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ...शुभ कामनाए ......
ReplyDeleteक्या क्या अजीब रंग बदलती है जिंदगी
हर लम्हे नये रूप में ढलती है जिंदगी
चलता है तू तो कदमों की आहट के साथ-साथ
पांव दबा के चुपके से चलती है जिंदगी
सांसों की धूप में जिस्म की लौ आग वफा की
एक शमां की मानिंद पिघलती है जिंदगी।