महकते रंग गुल में,
गुलज़ार होते हैं,
मचलते ख़्वाब,
स्वप्न के पार होते हैं,
ना जाने क्यों,
मोहब्बत इम्तहां लेती,
जो भी डूबते इसमें,
वही कुर्बान होते हैं,
बङी खूबी से गिरते हैं,
ये पतझङ के जो पत्ते हैं,
नाम पत्ता रखा इनका,
रंग खो कर भी सवरते हैं,
जाम कोई भी हो साक़ी,
नशा वो दे ही देती है,
और ये इश्क का जलवा,
दवा भी जाम जैसी है,
...........
प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र – साभार गूगल)
Good.........
ReplyDeletepahali baar blog par aaya ,,,,aapki ye rachna bahut achhi lagi ...samay milane par pichhali bhi padhunga...bahut-bahut shubhkaamnaye
ReplyDeleteआपकी रचनाये अत्यंत ही भावुक होती है ...
ReplyDeleteशुक्रिया इतनी खुबसूरत रचनाये उपलब्ध कराने के लिए...
आपकी रचना उम्दा है।
ReplyDeleteइस तरह लिखती रहे यही शुभकामनाएं।
वाह प्रीति जी अच्छी रचना है.
ReplyDeletekhoob very well said
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद बेहतरीन रचना पढ़ने मिली...आभार
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteजाम कोई भी हो साक़ी,
ReplyDeleteनशा वो दे ही देती है,
और ये इश्क का जलवा,
दवा भी जाम जैसी है....
क्या बात है ...!!
बहुत बढ़िया रचना..पूरे तीन महिने बाद नजर आईं..सब ठीक ठाक तो है.
ReplyDeleteआपकी रचनाये अत्यंत ही भावुक होती है ...
ReplyDeleteग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeleteना जाने क्यों,
ReplyDeleteमोहब्बत इम्तहां लेती,
जो भी डूबते इसमें,
वही कुर्बान होते हैं,
orsam...
keep it up..
महकते रंग गुल में,
ReplyDeleteगुलज़ार होते हैं,
मचलते ख़्वाब,
स्वप्न के पार होते हैं,
हैलो प्रीति जी
सुंदर रचना है काफी समय बाद आई
बढ़िया समन्वय है भाषा का, एक ही कविता मे हिन्दी और उर्दू के
शब्दो का अच्छा प्रयोग करती है आप
शुभकामनाएं
"इतनी कृपा करी है प्रभु ने , किसको किसको याद करूं मैं
ReplyDeleteकरुणा सागर उनसा पाया अब किससे फ़रियाद करूं मैं
अब केवल है यही याचना शक्तिबुद्धि मुझको दो दाता
कह पाऊँ मैं सारे जग से तेरी कृपा दान की गाथा
बहुत ही खूबसूरत रचना है...
ReplyDelete...पढ़ कर आनंद आया...
वाह! सुन्दर!
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना .... पहली बार आपकी पोस्ट पर आया.. पिछली पड़ना शेष है..
ReplyDelete