देर लगी आने में तुमको,
शुक्र है फिरभी आये तो....
तङप रहे थे जिस मौसम को,
वो काली बदरा छायी तो।
रिमझिम-रिमझिम फुहारों में,
ठण्डी पुरवाई है संग...,
आओ भीगे इन बूंदो में,
खेले बचपन वाले रंग।
चहकें चिङिया, मोर नाचते,
हम भी होले इनके संग,
पैर थिरकते, ताल बजाते,
जब बारिश देती है, सरगम।
गर्म-गर्म चाय के प्याले,
साथ में समोसे, गर्म-गर्म,
पकौङे तल रहे, घर के अन्दर,
इंतजार कर रहे, बारिश में हम।
शुक्र है फिरभी आये तो....
तङप रहे थे जिस मौसम को,
वो काली बदरा छायी तो।
रिमझिम-रिमझिम फुहारों में,
ठण्डी पुरवाई है संग...,
आओ भीगे इन बूंदो में,
खेले बचपन वाले रंग।
चहकें चिङिया, मोर नाचते,
हम भी होले इनके संग,
पैर थिरकते, ताल बजाते,
जब बारिश देती है, सरगम।
गर्म-गर्म चाय के प्याले,
साथ में समोसे, गर्म-गर्म,
पकौङे तल रहे, घर के अन्दर,
इंतजार कर रहे, बारिश में हम।
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प्रीती बङथ्वाल तारिका
(चित्र- साभार गूगल)