Tuesday, June 30, 2009

शु्क्र है फिर भी आये तो...........

देर लगी आने में तुमको,
शुक्र है फिरभी आये तो....
तङप रहे थे जिस मौसम को,
वो काली बदरा छायी तो।


रिमझिम-रिमझिम फुहारों में,
ठण्डी पुरवाई है संग...,
आओ भीगे इन बूंदो में,
खेले बचपन वाले रंग।



चहकें चिङिया, मोर नाचते,
हम भी होले इनके संग,
पैर थिरकते, ताल बजाते,
जब बारिश देती है, सरगम।



गर्म-गर्म चाय के प्याले,
साथ में समोसे, गर्म-गर्म,
पकौङे तल रहे, घर के अन्दर,
इंतजार कर रहे, बारिश में हम।
..............
प्रीती बङथ्वाल तारिका
(चित्र- साभार गूगल)

Monday, June 29, 2009

दबे पांव आने दो बदरा...........





हे सूरज महाराज......
गर्मी को बरसाओ ना यूं ,
पत्थर सा सिकवाओ ना यूं ,
दबे पांव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।


ना मुसकाते रहो यूं अकेले,
खङी धूप में, बिन सहेले,
तुमको होगी कसम चांदनी की,
दिन में तारे, दिखलाओ ना यूं ,
दबे पाव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।



तुमभी अगन में तपे हो,
कई बरसों के प्यासे रहे हो,
थोङा रुकलो, तो आराम कर लो,
तुमभी खुद को सुखाया करो यूं ,
दबे पांव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)

Saturday, June 27, 2009

यूं सामना खुद का खुदी से हो गया.....

सोचा न था.....,
यूं जिन्दगी से धोखा हो गया,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
रब मिल गया था सोच कर,
खुश हो लिए,
आंखे खुली तो,
रब न जाने कहां खो गया,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
दिल दर्द के,
समन्दर में डूबा जा रहा,
आंखे भी छलक कर,
खाली हो रही,
भर रहे थे,
जो उङाने बादलों में,
टूट कर वो सपना,
सौ टुकङे हो रहा,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
पत्थरों से रगङती,
उस नाम को,
जो हरकदम मेरा,
हमराज़ था,
बन रहा वो आज,
मेरी आंखो में नमी,
कलतलक,
जो दिल के पास था,
यूं सामना,
जब ख़ुद का, ख़ुदी से हो गया।।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)

Saturday, June 13, 2009

मेरा सागर........

"जिसके लिए इसबार की रचना लिखी है उसी के हाथों से बनी पेंटिंग इसबार पिक्चर में लगाई है आपको भी जरुर पसन्द आयेगी। उसने अपनी मन पसन्द चीज यानी कि कार को इस पिक्चर में बनाया है।"
प्यारी और मासूम है सूरत,
पर मन चंचल है,
सच्चे दिल का शहजादा है,
और नटखट है,
एक बात की बात बनाकर
वो रखता है,
अपनी बातों में उलझाकर
वो रखता है,
तुतलाता है बात-बात पर
गुस्साता है,
थोङा सा भी प्यार करो तो
खिल जाता है,
प्यार बहुत करता है मुझसे
वो जतलाता है,
बार-बार वो गले से मेरे लग
जाता है,
देख उसे मन की चिन्ताऐं
मिट जाती हैं,
अंधकार की सभी घटायें
छट जाती है।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"