मन ख्वाब का पिटारा
उङता है डोलता है,
मिलती हैं,जबभी पलकें,
गुप-चुप सा, बोलता है।
मैं ख्वाब का समन्दर,
तुम खुल के सांस लेना,
बुनना उस खुशी को,
जिसकी भी हो तमन्ना।
उस मीठी-सी हंसी में,
सुकूं है, कई पलों का,
चलो आज खुल के हंस ले
दिल की है ये तमन्ना।
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प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र – साभार गूगल)